. इस गांव में बने मुड़ा तालाब में तीन सौ से अधिक मगरमच्छ रहते हैं,,,,,,,।
न्यूज़ 24×7 इंडिया.
रिपोर्ट:_ ब्यूरो चीफ संतोष कुमार लहरें जिला जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़ दिनांक 22/ 12/ 2023 लिहाजा इसे क्रोकोडाइल पार्क के नाम पर प्रसिद्धि मिली. इस पार्क को साल 2006 में बनाया गया.खास बात ये है कि, तालाब में रहने वाले मगरमच्छों को इसी गांव से पकड़कर डाला गया है
कोकोडाइल पार्क की कहानीजांजगीर चाम्पा :जिले का कोटामी सोनार गांव को मगरमच्छों ने पहचान दिलाई है. इस गांव में मगरमच्छों का बसेरा कब से है ये कोई नहीं जानता.लेकिन ग्रामीणों की माने तो इस गांव के तालाबों में, बरसों से मगरमच्छ रहते आए हैं.लेकिन यहां के मगरमच्छों ने आज तक किसी भी इंसान को परेशान नहीं किया. लोग बड़े ही सहजता के साथ यहां नहाते हैं. इसके अलावा लोग मवेशियों को नहलाने का काम तालाब में बिना डरे करते हैं. लेकिन साल 2005 में मगरमच्छ ने एक बच्ची को शिकार बना लिया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने वनविभाग की मदद से मगरमच्छ अभ्यारण्य बनाया.
मगरमच्छ को मानते हैं देवता : इस गांव के लोग मगरमच्छ को देवता मानते हैं. पुरातन काल से ग्रामीण गांव में मगरमच्छों की पूजा करते आ रहे हैं. इंसान और मगरमच्छ इस गांव में एक साथ रहते आए हैं. लेकिन एक घटना ने लोगों का नजरिया बदला. फिर भी इस गांव को इन्हीं मगरमच्छों ने विदेशों तक पहचान दिलाई है.कब बना क्रोकोडाइल पार्क :क्रोकोडाइल पार्क स्थापित होने में तत्कालीन कलेक्टर सोनमणि बोरा की अहम भूमिका रही है. क्योंकि 85 एकड़ के मुड़ा तालाब को खाली करना और उसे झील का स्वरुप देना, आसान काम नहीं था. कलेक्टर ने जनसहयोग से मुड़ा तालाब को झील में तब्दील किया. इसके बाद गांव के युवाओं को क्रोकोडाइल का रेस्क्यू करने की ट्रेनिंग दी गई. यहां के युवाओं ने गांव से 100 मगरमच्छों को पकड़कर तालाब में ना सिर्फ शिफ्ट किया. बल्कि जाली से तालाब को घेरकर उन्हें बाहर निकलने से रोका.
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प्रजनन के लिए है अनुकूल वातावरण :कोटमी सोनार के तालाबों में पहले से ही मगरमच्छ हैं. लेकिन अब मुड़ा तालाब इनका नया ठिकाना बन चुका है. जिसके कारण इन्हें वंशवृद्धि करने में आसानी हो रही है. क्रोकोडाइल पार्क में कई टीले और टापू हैं. जहां मगरमच्छ प्रजनन करते हैं. मगरमच्छ मार्च, अप्रैल माह में तालाब के किनारे अंडा देते हैं. फिर अंडे को सुरक्षित रखने के लिए मगरमच्छ तालाब के उपरी सतह पर ही रहते है. मई जून माह में गरज के साथ होने वाली बारिश से अंडे फूटते हैं और मगरमच्छ के बच्चे बाहर आते हैं. लेकिन अधिकांश बच्चे दूसरे मगरमच्छों का शिकार बन जाता हैं।
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