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June 2025
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June 19, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

कमलेश कावड़कर रिपोर्टर

भैंसदेही नगर से सटे ग्राम चिचोली ढाना मैं चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ संगीतमय का समापन शुक्रवार को सुदामा चरित्र के वर्णन के साथ हुआ। शुक्रवार को भागवताचार्य पंडित श्री उमाशंकर अग्निहोत्री द्वारा सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए।

भागवताचार्य पंडित श्री उमाशंकर अग्निहोत्री ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया। कहने लगे कि तुम अपने मित्र से बिना मिले ही वापस जा रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण को सुदामा के गले लगा देखकर प्रहरी और नगरवासी अचंभित हो गए। भगवान कृष्ण-सुदामा को अपने साथ रथ पर बैठाकर महल के अंदर लेकर पहुंचे और मित्र को सिंहासन पर बैठाकर खुद नीचे बैठ गए। भगवान श्रीकृष्ण को नीचे बैठा देखकर उनकी रानियां भी दंग रह गई, कि कौन है जिन्हें भगवान सिंहासन पर बैठाकर खुद नीचे बैठे हैं। भगवान कृष्ण ने आंसुओं से मित्र के पैर धोए और पैर से कांटे निकाले। यह दृश्य देखकर महल में उपस्थित लोग भावुक हो गए। कथा के अंत मे भागवत पुराण की आरती उतारी तत्पश्चात पूर्णाहुति के साथ भंडारे का भी आयोजन किया गया ग्राम चिचोली ढाना एवं भैंसदेही नगर सहित दूरदराज से आए हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की।