लक्ष्मण को लगा शक्ति बाण, व्याकुल हुए श्रीराम
अंगद ने राम से बैर त्याग सीता को वापस करने की दी सलाह
शूरवीर भी नहीं हिला पाए अंगद का पांव
रामलीला के 9वे दिनबरामेश्वर स्थापना, अंगद-रावण संवाद और लक्ष्मण मूर्छा का मंचन
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बैतूल। रावण के दरबार में शांति दूत के रूप में पहुंचे अंगद ने राम से बैर त्याग सीता को वापस करने की सलाह दी, लेकिन रावण को सलाह समझ में नहीं आई। तब अंगद ने रावण के दरबार में अपना पैर जमा कर चुनौती देते हुए कहा कि दरबार में यदि कोई मेरा पैर हटा देगा तो श्री राम की सेना बिना युद्ध किए खाली हाथ लौट जाएगी। पूरे दरबारी जोर लगाते हैं। इसके बाद भी कोई वीर अंगद का पैर तक नहीं हिला सका। अंत में स्वयं रावण उठता है, तो अंगद अपना पैर हटा कर कहते हैं कि मेरा पैर क्यों पढ़ते हो जाकर श्री राम के चरण पकड़ो तो कल्याण होगा। अंगद ने लौट कर श्रीराम से सारा वृतांत बताया और युद्ध की दुंदुभी बज उठती है।
श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित रामलीला में सोमवार को रामेश्वर स्थापना, अंगद-रावण संवाद और लक्ष्मण मूर्छा का मंचन किया गया। लक्ष्मण को तीर लगने का दृश्य और हनुमान का वायुमार्ग से संजीवनी बूटी लाना शानदार और कौतूहल भरा रहा। इन दृश्यों के संयोजन में आदर्श इंद्रलोक रामलीला मंडल खजूरी जिला सीधी के पारंगत कलाकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामलीला देखने के लिए आधी रात तक लोगों की भीड़ जमा रही।
–लंका कूच करने की मंत्रणा–
लंका से लौटने पर हनुमान जी प्रभु श्रीराम को सूचना देते हैं कि सीता जी लंका में ही हैं। इस पर राम सेना के सभी शूरवीर लंका कूच करने को लेकर मंत्रणा करते हैं। इस बीच रास्ते में सबसे बडी बाधा समुद्र होता है। भगवान राम समुद्र से उनकी सेना को पार कराने के लिए मार्ग प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। इसके लिए वे रामेश्वर स्थापना कर पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बावजूद जब मार्ग नहीं मिलता तो लक्ष्मण जी तैश में आकर एक ही तीर में पूरे समुद्र को सूखा डालने की बात कहते हैं। श्रीराम उन्हें ऐसा करने से मना करते हैं। ऐसे में कुशल शिल्पी नल-नील आगे आते हैं। उनकी विशेषता होती है कि वे जिस भी पत्थर को हाथ लगाते हैं, वो पत्थर पानी में डूबता नहीं। वे एक-एक पत्थर पर श्रीराम लिखते जाते हैं और समुद्र में जमाते जाते हैं। इस तरह लंका तक सेतु तैयार हो जाता है। इसके बाद भी रावण को अंतिम अवसर देने के लिए अंगद को दूत के रूप में मैत्री प्रस्ताव लेकर लंका भिजवाया जाता है। रावण की ओर से सेनापति मेघनाथ और लक्ष्मण में घनघोर युद्ध होता है। अंत में मायावी मेघनाथ के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं। इससे श्री राम व्याकुल होकर शोक में डूब जाते हैं। रामदल में भी शोक की लहर दौड़ जाती है। लंका के वैध राज सुषेन ने बताया कि लक्ष्मण का उपचार अत्यंत मुश्किल है। अगली सुबह तक द्रोणागिरी पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर पिलाने के बाद ही लक्ष्मण के प्राण बच सकते हैं। यह सुनकर पवन सुत हनुमान बूटी लाने चल देते हैं।
-रामलीला में आज
-मेघनाथ कुंभकरण वध
-राम रावण युद्ध
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