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Dharmendra Singh

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October 19, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

सुप्रीमकोर्ट अधिवक्ता नूपुर धमीजा(इंदौर)

चैक जारीकर्ता की सहमति के बिना चैक पर प्रविष्टियां लिखना वर्जित हैं।

इरफ़ान अंसारी रिपोर्टर

प्फायनेंस कंपनी, बैंक अक्सर हस्ताक्षर युक्त चैक लेकर रख लेते हैं और बाद में उसी चैक पर नाम, रकम और दिनांक अंकित करने बाउंस करवा लेते हैं और अदालत में एक मुकदमा आ जाता हैं। मोटर फायनेंस कंपनी ऋण देते समय हस्ताक्षर युक्त चैक लेकर रख लेती हैं। चैक जारीकर्ता को पता भी नहीं चलता हैं और चैक भुगतान के लिए पेष हो जाता हैं। चैक बाउंस कानून की धारा 87 एक बचाव उपलब्ध करवाती हैं जो कि चैक जारीकर्ता को अपराधिक दायित्व से मुक्ति प्रदान करती हैं। चैक में किया गया किसी भी तरह का परिवर्तन चैक को शून्य बना देता हैं। चैक दूसरा जारी करना ही एक मात्र उपाय रह जाता हैैं। परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 में दाखिल परिवाद पत्र चैक के निष्पादन के विषय पर खामोष होता हैं। परिवाद पत्र में मात्र यह कथन होता हैं कि आरोपी के द्वारा हस्ताक्षर युक्त चैक जारी किया गया था। चैक बाउंस कानून में धारा 139 एवं 118 में उपधारणाएं तब उत्पन्न होती हैं जबकि चैक का निष्पादन प्रमाणित कर दिया गया हैं। कानून में चैक के निष्पाद को लेकर कोई उपधारणा परिवादी के पक्ष में उपलब्ध नहीं हैं। इसी तरह से धनराशि की उपलब्धता या धनराशि के अंतरण को लेकर कोई उपधारणा उपलब्ध नहीं हैं। न्यायालय यह उपधारणा नहीं करती हैं कि चैक धारक आर्थिक रूप से सक्षम हैं। न्यायालय में विचाराधीन एक मामले में आरोपी यह कहता हैं कि मात्र हस्ताक्षर युक्त चैक पूर्व में जारी किया गया था जिस पर नाम, रकम और दिनांक अपनी मनमर्जी की अंकित करके दुरूपयोग किया गया हैं। परिवादी उत्तर देता हैं कि जिस समय चैक दिया गया था, उस समय सहमति प्राप्त कर ली गई थी। इसका अर्थ यह हुआ कि साल दो साल बाद जब चैक पर नाम, रकम और दिनांक अंकित की गई थी, तब कोई सहमति नहीं ली गई थी। इसलिए यह तात्विक परिवर्तन की श्रेणी में आता हैं और चैक शून्य हो जाता हैं। परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 87 के अंतर्गत चैक पर किसी भी तरह का परिवर्तन किए जाने के लिए परस्पर सहमति आवष्यक हैं, अन्यथा प्रश्नगत चैक शून्य हैं। चैक पर नाम, रकम एवं दिनांक लिखने का अधिकार चैक धारक को कानून की धारा 20 में दिया गया हैं लेकिन परिस्थितियॉ चैक के दुरूपयोग की तरफ संकेत करती हैं तो उपधारणा खंडित हो जाती हैं। भारतीय साक्ष्य विधि 1872 की धारा 73 इस संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। चैक बाउंस के मामलों में आरोपी को बचाव पहले दिन से लेना चाहिए जबकि चैक जारीकर्ता को मांग सूचना पत्र प्राप्त हुआ था। चैक के दुरूपयोग के मामलों में मांग सूचना पत्र का जवाब धारा 20 एवं 87 को ध्यान में रखकर दिया जाता हैं। चैक बाउंस के मांग सूचना पत्र नोटिस का जवाब अवश्य ही देना चाहिए, चैक जारीकर्ता को अपना बचाव प्रकट करना चाहिए। अक्सर परिवादी मांग सूचना पत्र का जवाब परिवाद पत्र के साथ न्यायालय में पेश नहीं करता हैं तो आरोपी को पेश करना चाहिए, इसका लाभ प्राप्त होता हैं। चैक बाउंस कानून के मामलों में अन्य सिविल या क्रिमिनल मामलों की तरह प्रतिपरीक्षण नहीं किया जाता हैं बल्कि प्रतिपरीक्षण की एक विशिष्ट शैली होती हैं। चैक बाउंस के मामलों में आरोपी की ओर से पैरवी करने के अभ्यस्थ अधिवक्ता को पता रहता हैं कि बचाव क्या लिया जाना चाहिए? न्याय दृष्टांत कौन से प्रस्तुत किए जाने चाहिए? चैक बाउंस कानून की क्लीष्टता के कारण आरोपी की ओर से न्याय दृष्टांतो पर आधारित लिखित तर्क प्रस्तुत करना आवश्यक हो जाता हैं तभी दोषमुक्ति की उम्मीद की जा सकती हैं। चैक बाउंस कानून 1881 से अब तक भारत में विकसित हो रहा हैं लेकिन यह अभी तक यह एक विकसित कानून नहीं हैं, भारत के विभिन्न राज्यों की हाई कोर्ट के एक ही विषय पर अलग अलग अभिमत हैं। इसलिए दोषसिद्धि अथवा दोषमुक्ति को लेकर कोई भविष्यवाणी किसी भी मामले में नहीं की जा सकती हैं।