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June 19, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 के प्रावधान क्या हैं?

पत्रकार इऱफान अन्सारी

भारत के हर नगर, तहसील से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध साहूकारी का कारोबार चलता हैं। समाज के कमजोर एवं मजदूर वर्ग के लोगो को अवैध साहूकार धनराषि देते समय हस्ताक्षर युक्त चैंक लेकर रख लेते हैं बाद में चैक के जरिए कालाधन की वसूली करते हैं। इस तरह से चैंक कालाधन अर्थात् अघोषित रकम की वसूली का जरिया बना हुआ हैं।

न्यायालय में चैंक बाउंस के एैसे भी मामले चल रहे हैं जिसमें प्रथम दृष्ट्या अपराध गठित नहीं होता हैं। चैंक अनादरण का कारण अपर्याप्त निधि नहीं बताया गया हैं बल्कि अन्य कारण क्र0 88 बताया गया हैं। चैक अनादरण का कारण धारा 138 के दायरें में नहीं बाता हैं। एैसी दषा में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 263 का अवलंबन लेकर आपत्ति दाखिल करना चाहिए और परिवाद पत्र की प्रचलनषीलता पर एक आपत्ति दाखिल करना चाहिए।

चैंक अनादरण के कुछ मामलें तो बैंक की लापरवाही के कारण चल रहे हैं। चैंक अनादरण का कारण अपर्याप्त निधि 2018 में बताया जा रहा हैं जबकि 2015 में बैंक खाता डोरमेंट खाता की श्रेणी में बैंक द्वारा डाल कर बंद कर दिया गया हैं। चैंक पर अंकित दिनांक एवं हस्ताक्षर का मिलान तक बैंक करते नहीं हैं और अपर्याप्त निधि का ज्ञापन जारी कर देते हैं।

चैंक अनादरण के मामला हैं और बैंक ने खाता बंद बताया हैं। परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 में बंद खाता का चैंक को सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कानून के दायरें में ला दिया हैं। प्रत्येक बैंक खाता बंद का मामला धारा 138 के दायरें में नहीं आता हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता हैं। मसलन प्रत्येक बैंक की एक व्यापारिक नीति होती हैं जिसके तहत खाता धारक को न्यूनतम धनराषि रखना और समय समय पर लेन देन करना आवष्यक होता हैं। प्राईवेट बैंक में 05 हजार रूपए की धनराषि रखना अनिर्वाय हैं। खाता धारक ने करीब 06 माह तक न्यूनतम धनराषि नहीं जमा रखी हैं और लेन देन भी नहीं किया हैं। इस दषा में बैंक व्यापारिक नीति में तहत बैंक खाता को डोमेंट खाता की श्रेणी में डालकर बंद कर देता हैं। कुछ अपराधिक मामलों में पुलिस आरोपी का बैंक खाता पर लेन देन पर रोक लगा देती हैं। एैसा खाता का अनादरित चैक धारा 138 के दायरें के बाहर हैं। बैंक स्टैट मैंट से खाता बंद होने की जॉच की जा सकती हैं। बैंक अधिकारी के न्यायालय में कथन करवाए जा सकते हैं।
चैंक बाउंस कानून की धारा 138 की परिभाषा में लिखा हैं कि खाता धारक द्वारा बैंक खाता संधारित किया जाना चाहिए। चैक खाता धारक द्वारा संधारित होना चाहिए तब धारा 138 का अपराध गठित होता हैं।

यहॉ पर एक प्रष्न उठता हैं कि खाता धारक द्वारा बैंक खाता बंद करवा दिया गया हैं और चैक जारी कर दिया हैं, तब क्या होगा? खाता धारक द्वारा जानबूझकर डोमेंट खाता का चैंक जारी कर दिया गया हैं तब क्या होगा? चैक जारी करने के बाद खाता बंद करना धारा 138 का अपराध हैं। चैंक जारीकर्ता द्वारा डोरमेंट बंद खाता का चैंक जारी करना धारा 420 भारतीय दण्ड विधान का अपराध हैं।
चैंक अनादरण का ज्ञापन बैंक यंत्रवत् जारी करते हैं। बैंक खाता डोरमेंट हैं फिर भी अपर्याप्त राषि लिखकर अनादरण का ज्ञापन जारी करते हैं, चैंक अनादरण का गलत कारण बताते हैं तब इस दषा में उपभोक्ता संरक्षण कानून का सहारा आरोपी को लेना चाहिए।
चैंक का दुरूपयोग होता हैं तो मांग सूचना पत्र प्राप्त होते ही आरोपी को पुलिस में चैंक के दुरूपयोग की षिकायत आवष्यक दस्तावेजी साक्ष्य के साथ में करना चाहिए। पुलिस के लिए यह धारा 406 भारतीय दण्ड विधान का अपराध हैं। इस संबंध में परिवाद पत्र पेष करना चाहिए।

चैंक बाउंस के मामला आरोपी के हमेषा बहुत महंगा साबित होता हैं। चैंक दुरूपयोग प्रमाणित करने के लिए पुलिस में रिपोर्ट करना आवष्यक हैं, सूचना का अधिकार कानून में जॉच प्रतिवेदन प्राप्त करना आवष्यक हैं, परिवाद पत्र प्रस्तुत करना आवष्यक हैं, हस्तलेख विषेषज्ञ से जॉच करवाना आवष्यक हैं, बचाव साक्ष्य में स्वयं का एवं पुलिस तथा हस्तलेख विषेषज्ञ का परीक्षण करवाना आवष्यक हैं। इसके बाद दोषमुक्ति की कल्पना की जा सकती हैं।
चैंक बाउंस के मामलों में मांग सूचना पत्र का जवाब अवष्य देना चाहिए। चैंक बाउंस कानून में आरोपी की ओर से पैरवी के अभ्यस्थ अधिवक्ता का चयन करना चाहिए। चैंक बाउंस में आरोपी की ओर से पैरवी करने का अर्थ हैं कि नदी के प्रवाह के विपरीत तैरना। कानून भले ही यह कहता हैं कि आरोपी को संभाव्य प्रतिरक्षा करनी हैं लेकिन विचारण न्यायालय संदेह से परे बचाव सिद्ध करने की अपेक्षा आरोपी से करती हैं।

चैंक अनादरण के मामले में आरोपी को पहले दिन से जबकि मांग सूचना पत्र प्राप्त हुआ हैं, अपना बचाव तैयार कर लेना चाहिए और दोषमुक्ति की तरफ ध्यान देना चाहिए। अधिवक्ता का चयन सावधानी से करना चाहिए क्योंकि चैंक बाउंस के मामलों में अन्य सिविल एवं क्रिमिनल मामलों की तरह पैरवी नहीं की जाती हैं। चैंक बाउंस के मामलों में प्रतिपरीक्षण की एक विषिष्ट शैली होती हैं। चैंक बाउंस के मामलों में अंतिम तर्क सदैव न्यायदृष्टांतो पर आधारित लिखित तर्क पेष करना चाहिए। परिवादी की ओर से पैरवी करने के अभ्यस्थ अधिवक्ता का चयन कभी नहीं करना चाहिए बल्कि आरोपी की ओर से पैरवी करने के अभ्यस्थ अधिवक्ता का ही चयन करना चाहिए।

लीगल अपडेट
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता
नूपुर धमीजा (इंदौर मध्य प्रदेश)