Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

July 2025
M T W T F S S
 123456
78910111213
14151617181920
21222324252627
28293031  
July 19, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

पत्रकारिता का जुनून और हकीकत की कठिन राह

लेखक:- हरिशंकर पाराशर

पत्रकारिता का संसार एक अनोखा आलम है, जहां जुनून और हकीकत का टकराव हर पल एक नई कहानी रचता है। पत्रकारिता एक नशा है, एक ऐसी लत जो किसी को छोड़ती नहीं। यह वह खुमारी है जो शराब को भी मात दे देती है। शराब का नशा कुछ घंटों में उतर जाता है, मगर पत्रकारिता का जुनून जीवन भर साथ चलता है। जवानी खप जाती है, बुढ़ापा भी बीत जाता है, फिर भी पत्रकार अपनी कलम की रोशनी जलाए, सत्य की खोज में भटकता रहता है। पत्रकारिता में न कोई रिटायरमेंट होती है, न कोई थकान; बस एक अनवरत संघर्ष है, जो हर दिन एक नई चुनौती लाता है।
नौकरीपेशा पत्रकार दिन भर खबरों की तलाश में भटकता है या विज्ञापनों के पीछे भागता है, ताकि तनख्वाह की गाड़ी चलती रहे। वहीं, स्वतंत्र प्रकाशक अपने पत्रकारों की टोह में व्यस्त रहता है, और पत्रकार? वह किसी चाय की दुकान पर बैठा, कुटिल मुस्कान के साथ अगली खबर की रणनीति बनाता है, दोस्त के कंधे पर हाथ रख, मयखाने की ओर बढ़ जाता है।
पत्रकारों के नाम पर ढेरों संगठन चल रहे हैं। ये संगठन पत्रकारों की सुरक्षा, जीवन बीमा, और बुजुर्ग पत्रकारों की पेंशन जैसे मुद्दों पर सरकार से सवाल करते हैं। कुछ संगठन वास्तव में पत्रकारों के हित में काम करते हैं, मगर अधिकांश केवल स्वयंभू अध्यक्षों की स्वार्थपूर्ति के लिए बने हैं। गांव-कस्बों के पत्रकार कुछ पैसे देकर इन संगठनों से जुड़कर सुरक्षित महसूस करते हैं। इन संगठनों में पुरस्कारों की बंदरबांट होती है, जहां नारियल, शाल, और स्मृति चिन्ह बांटे जाते हैं, और पत्रकार अपने खयाली पुलाव पकाते रहते हैं।
पत्रकारिता में दोस्ती, करुणा, या हमदर्दी का स्थान नहीं। पत्रकार का सच्चा साथी शायद कोई गैर-पत्रकार ही हो सकता है, जिसके साथ वह तालाब के किनारे या मयखाने में अपने मन की बात कह सके। सच्चा पत्रकार सत्य और तथ्य की राह पर चलता है, भ्रष्टाचार, छल-कपट और जनविरोधी नीतियों को उजागर करता है। लेकिन अब पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। झोला लटकाए पत्रकारों का दौर गया; अब महंगी डिग्रियों के साथ बड़े मीडिया हाउसों में गुलामी का दौर है। पत्रकारिता अब जुनून नहीं, करियर बन चुकी है।
आज का दौर ब्रेकिंग न्यूज का है, जहां नेताजी का सब्जी खरीदना या गंगा में नहाना खबर बन जाता है। पत्रकारिता अब सत्य को सामने लाने के बजाय, खबरों को दबाने का धंधा बन चुकी है। बड़े मीडिया हाउस कॉर्पोरेट में तब्दील हो गए हैं, जहां लाभ-हानि ही सब कुछ है। खबरें दिखाने या छिपाने का फैसला पैसे के आधार पर होता है। संवेदना, करुणा, या सहानुभूति जैसे शब्द अब इस व्यापार में गायब हैं।
पत्रकारिता का पतन इतना हो चुका है कि “पत्रकार” शब्द से अब दलाली और भयादोहन की बू आने लगी है। इस पवित्र पेशे को औसत दर्जे के लोगों ने जीविकोपार्जन का साधन बना लिया है। शिक्षक और पत्रकार, दोनों ही क्षेत्र अब उन लोगों के हवाले हैं, जिनमें न तो गहरा ज्ञान है, न लेखन की कला, और न ही सामाजिक-राजनीतिक समझ। पहले जहां नेता और सेलेब्रिटी पत्रकारों का सम्मान करते थे, वहीं आज पत्रकार भीड़ में भिखारियों की तरह नेताओं के पीछे भागते हैं।
फिर भी, कुछ पत्रकार आज भी रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हैं। आजादी के बाद से खोजी पत्रकारिता ने कई बार सत्ता को हिलाकर रख दिया। महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ और ‘हरिजन’ के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की। लोकमान्य तिलक ने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ से राष्ट्रीयता का अलख जगाया। गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ के माध्यम से किसानों और मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी। आजादी के बाद भी सुचेता दलाल ने हर्षद मेहता के घोटाले का पर्दाफाश किया, तो ‘द हिंदू‘ ने बोफोर्स घोटाले को उजागर किया। तहलका ने रक्षा सौदों की काली सच्चाई सामने लाई, और इंडियन एक्सप्रेस ने सीमेंट घोटाले का खुलासा कर अरुण शौरी को रातोंरात नायक बना दिया।
आज पत्रकारिता एक कठिन मोड़ पर खड़ी है। पत्रकार अपनी कमजोरियों को परिवार की जिम्मेदारियों का बहाना बनाते हैं, मगर यह सच नहीं। पत्रकारिता पेशा नहीं, एक मिशन है। जैसे क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए सब कुछ दांव पर लगाया, वैसे ही सच्चे पत्रकार का धर्म है कि वह भ्रष्ट नेताओं, नौकरशाहों, और कॉर्पोरेट के गठजोड़ से जनता को बचाए। पत्रकारिता का लक्ष्य है देश को प्रगति, समृद्धि, और खुशहाली की राह पर ले जाना। यही पत्रकारिता का असली धर्म है।