सादर प्रकाशनार्थ – गुना (म.प्र.)
14 अक्टूबर 2025
अर्जुन भगवान के विश्वरूप का दर्शन करके अत्यंत विस्मित एवं विनीत भाव से निवेदन करता है कि — “हे प्रभो!
अब मैं आपके सौम्य रूप का दर्शन करना चाहता हूँ।” तब भगवान श्रीकृष्ण कृपालु होकर अर्जुन को अपना सौम्य रूप दिखाते हैं। यह दर्शन केवल अनन्य भक्ति के माध्यम से ही संभव है। भगवान के दर्शन चर्मचक्षु से नहीं अपितु श्रद्धा, समर्पण और सच्ची भक्ति से ही प्राप्त होते है। श्रीमद् भगवत गीता की मान कर सभीजन सर्वत्र आसक्ति और बैर भाव का त्याग कर भगवान का ही दर्शन करते हुए समस्त कर्मों को भगवान में अर्पित कर व्यवहार करें तो लूटपाट भ्रष्टाचार आदि जैसे नकारात्मक कार्य समाप्त हो जाए सर्वत्र शांति और समरसता ही व्याप्त होगी ।
उक्त आशय के विचार आयोजन के यजमान श्री सुभाष त्रिवेदी ने विकास नगर स्थित सिद्धेश्वरी माता के मंदिर पर आयोजित गीता स्वाध्याय में व्यक्त किये। वे विश्वरूप दर्शन योग नामक 11वे अध्याय के अंतिम 11 श्लोक के संबंध में बोल रहे थे इस अवसर पर सुभाषित सुनाते हुए श्री केशव बैरागी ने कहा कि जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता वास करते हैं अर्थात व सद्बुद्धि होती है और जहां उनका सम्मान नहीं होता वहां सारे काम निष्फल हो जाते हैं । प्रेरक प्रसंग के माध्यम से श्री नरेंद्र भारद्वाज ने गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के जीवन की घटना सुनते हुए स्पष्ट किया कि कैसे शांत व्यक्तित्व अन्य अशांत व्यक्ति को भी शांत कर सकता है। अमृत वचन सुनते हुए श्रीसंतोष ओझा ने कहा कि ज्ञान और भक्ति के समन्वय से ही जीवन में संतुलन संभव है। गीत के माध्यम से पंडित ओमप्रकाश पाराशर ने गीता स्वाध्याय करने की प्रेरणा दी। आगामी रविवार को गीता स्वाध्याय सिद्धेश्वरी माता मंदिर पर ही दोपहर 3:00 बजे से आयोजित किया जाएगा इसके यजमान पंडित जितेंद्र शर्मा ने सभी धर्म प्रेमी जनों से गीता स्वाध्याय सत्संग में पधारने का अनुरोध किया ।
प्रेषक
मनोज शर्मा
गीतासंस्कृत स्वाध्याय मंडल
विश्वगीताप्रतिष्ठानम्
गुना
90398 71197
सादर प्रकाशनार्थ – गुना (म.प्र.)
14 अक्टूबर 2025
अर्जुन भगवान के विश्वरूप का दर्शन करके अत्यंत विस्मित एवं विनीत भाव से निवेदन करता है कि — “हे प्रभो! अब मैं आपके सौम्य रूप का दर्शन करना चाहता हूँ।” तब भगवान श्रीकृष्ण कृपालु होकर अर्जुन को अपना सौम्य रूप दिखाते हैं। यह दर्शन केवल अनन्य भक्ति के माध्यम से ही संभव है। भगवान के दर्शन चर्मचक्षु से नहीं अपितु श्रद्धा, समर्पण और सच्ची भक्ति से ही प्राप्त होते है। श्रीमद् भगवत गीता की मान कर सभीजन सर्वत्र आसक्ति और बैर भाव का त्याग कर भगवान का ही दर्शन करते हुए समस्त कर्मों को भगवान में अर्पित कर व्यवहार करें तो लूटपाट भ्रष्टाचार आदि जैसे नकारात्मक कार्य समाप्त हो जाए सर्वत्र शांति और समरसता ही व्याप्त होगी ।
उक्त आशय के विचार आयोजन के यजमान श्री सुभाष त्रिवेदी ने विकास नगर स्थित सिद्धेश्वरी माता के मंदिर पर आयोजित गीता स्वाध्याय में व्यक्त किये। वे विश्वरूप दर्शन योग नामक 11वे अध्याय के अंतिम 11 श्लोक के संबंध में बोल रहे थे इस अवसर पर सुभाषित सुनाते हुए श्री केशव बैरागी ने कहा कि जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता वास करते हैं अर्थात व सद्बुद्धि होती है और जहां उनका सम्मान नहीं होता वहां सारे काम निष्फल हो जाते हैं । प्रेरक प्रसंग के माध्यम से श्री नरेंद्र भारद्वाज ने गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के जीवन की घटना सुनते हुए स्पष्ट किया कि कैसे शांत व्यक्तित्व अन्य अशांत व्यक्ति को भी शांत कर सकता है। अमृत वचन सुनते हुए श्रीसंतोष ओझा ने कहा कि ज्ञान और भक्ति के समन्वय से ही जीवन में संतुलन संभव है। गीत के माध्यम से पंडित ओमप्रकाश पाराशर ने गीता स्वाध्याय करने की प्रेरणा दी। आगामी रविवार को गीता स्वाध्याय सिद्धेश्वरी माता मंदिर पर ही दोपहर 3:00 बजे से आयोजित किया जाएगा इसके यजमान पंडित जितेंद्र शर्मा ने सभी धर्म प्रेमी जनों से गीता स्वाध्याय सत्संग में पधारने का अनुरोध किया ।
प्रेषक
मनोज शर्मा
गीतासंस्कृत स्वाध्याय मंडल
विश्वगीताप्रतिष्ठानम्
गुना
90398 71197
Manoj Sharma news reporter
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