श्रीमती एस . पाटीदार रिपोर्टर
श्री श्री 1008 सन्त शिरोमणी श्री गजानन जी महाराज ,श्री अम्बिका आश्रम, श्रीधाम बालीपुर के पद चिन्हो पर चलते हुए उनके शिष्य श्री श्री योगेश जी महाराज द्वारा श्रावणी पुर्णिमा पर ऊंकारेश्वर मे ब्राह्मणो के साथ मिल कर जनेऊ बदली ।
श्री योगेश जी महाराज ने बताया कि प्राचीन काल में श्रावणी उपा कर्म का ज्यादा महत्व था। बालकों को गुरुकुल भेजा जाता था ।उन्हें द्विज बनाया जाता था। उसमें वैदिक संस्कार डाले जाते थे। हेमाद्रि स्नान गुरु के सानिध्य में गौ दुग्ध, दही,घृत,दुर्वा , गोबर, गोमूत्र पवित्रा, कुशा, शहद, गंगाजल से स्नान कर वर्ष भर में जाने -अनजाने मे हुए पापों का प्रायश्चित कर जीवन को सकारात्मक दिशा देते हैं ।
नवीन जनेऊ धारण कर आत्म संयम का संस्कार होना माना जाता है ।सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, स्मृति ,छंद और ऋषि को घृत आहुति से होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास मे आने वाली पूर्णिमा श्रावणी पूर्णिमा कहलाती है ।दस विधि स्नान करने से पितरों व आत्म शुद्धि होती है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि इसी दिन से वेदों का पाठ करना शुरू करते हैं । श्रावणी उपाकर्म में प्रायश्चित, संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय पक्ष है।
दस विधि स्नान कर पितरों तथा आत्म कल्याण के लिए मंत्रों के साथ हवन, यज्ञ में आहुतियां दी जाती है। पितृ तर्पण ऋषि तर्पण भी किया जाता है । श्रावणी पर्व ब्रह्माण के , ऋषित्व के अभिवर्धन का पर्व है।
🕉️विष्णु:विष्णु,: विष्णु: श्रीमद्भागवतो महापुरुषाय कर पं. बंटी महाराज एवम पं. दुर्गा शंकर तारे कथावाचक सनावद द्वारा श्रावणी कार्य करवाया गया।
भारतीय संस्कृति में द्विजत्व और ब्राह्मणों का संबंध साधना की ऊंच्च कक्षा से जुड़े संबोधन हैं । श्रावणी का अर्थ – सुनने योग्य ।धर्म को समझना। वेदों को श्रुति कहा जाता है ।हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता अनुसार सावन महीने को खासकर देवों के देव महादेव का मास माना जाता है ।व्रत रखने से देहिक ,मानसिक ,आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुनर्जीवन प्राप्त करना और अध्यात्मिक रूप से मजबूत होना है। तत्पश्चात मां नर्मदा एवं गुरुदेव की आरती कर भंडारा हुआ।
उक्त जानकारी सत गुरू सेवा समिति के अध्यापक जगदीश चंद्र पाटी दार ने दी।
इन्दौर से दानवीर गोलु शुक्ला सपरिवार सहित उपस्थित होकर आरती की गई।
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