Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

June 2025
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
June 19, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

मित्रता का अद्वितीय उदाहरण है, श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता – पंडित रेवा शंकर शास्त्री।।
मित्रता निस्वार्थ होना चाइए।

स्थान मध्य प्रदेश लोकेशन सिलवानी बक्सी

नरेन्द्र राय ब्यूरो चीफ

एंकर रायसेन जिले कि तहसील सिलवानी अंचल के ग्राम बक्सी में प्रहलाद सिंह ,अरविंद्र सिंह पटेल परिवार के द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस पर, कथा व्यास पंडित रेवा शंकर शास्त्री ने कहा जगत में जब मित्रता की बात की जाएगी तो श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता से बढ़कर, दूसरा अद्वितीय उदाहरण हमें प्राप्त नहीं होगा।। भगवान श्री कृष्ण के हृदय में अनंत करुणा का निवास है, वह करुणासागर हैं और अपने मित्र सुदामा की दीन दशा को देखकर, उस समय जो करुणा का प्रस्तुतीकरण भगवान श्री कृष्ण के नेत्रों से हुआ, वह अद्वितीय है । सुदामा की दीन दशा को देखकर, करुणा सागर भगवान के ह्रदय में व्याप्त करुणा उनके नेत्रों से जलधारा के रूप में बह गई , जिसे देखकर द्वारिका वासी धन्य हो गए । भगवान श्री कृष्ण के बाल अवस्था के मित्र, सुदामा जब उनसे मिलने के लिए द्वारिका आते हैं ,तो उस समय का दृश्य देखकर हमारे, अंतःकरण को करुणा सागर के अंदर समाहित संवेदना ,स्नेह और सहयोग की दिव्य भावना के दर्शन हमें होते हैं, मित्र को कष्ट में देखकर, भगवान श्री कृष्ण के हृदय में कितनी वेदना होती है और वह सुदामा को गले से लगा कर रोने लगते हैं, श्री कृष्ण चूंकि ब्राह्मण हैं, सनातन परंपरा में ब्राह्मण का बहुत सम्मान किया जाता है, तो उन्होंने अतिथि सत्कार के लिए सुदामा के पैरों को पखारा ,जब वह जल से पैर धोने के लिए उत्सुक थे, लेकिन उनके दीन दशा को देखकर ,उन्होंने जल से पैर ना धो कर, अपने नेत्रों की जलधारा से उनके पैर स्वयं ही धुल गये। एक दूसरे का सहयोग करना, यदि मित्र कष्ट में है,तो उसको दूर करना, यदि देखकर जो दुखी नहीं होते हैं ,उन मित्रों के मुख को देखने से बहुत बड़ा पाप लगता है। ऐसे स्वार्थी मित्रों को दूर से ही त्याग देना चाहिए, वास्तविक सच्चा मित्र वही है ,जो अपने मित्र के सुख में सुखी हो ,और उसके दुख में दुखी हो । उन मित्रों से सावधान रहने की आवश्यकता है ,जो सामने तो बहुत मधुर भाषा में बात करते हैं, लेकिन अलग होने पर बुराई, निंदा ,चुगली करने लगते हैं। हमारे यहां यह पद्धतियां हो गई हैं, कि मित्रता स्वार्थ में की जा रही है और स्वार्थ की पूर्ति होने के बाद ,मित्रता का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता है। लोग अपने मित्र को उपयोग करके, अलग कर देते हैं। स्वार्थी व्यक्तियों से मित्रता कदापि नहीं करना चाहिए। मित्रता इसलिए नहीं की जाती है, कि हम इससे कोई काम करवा लें। मित्रता का धर्म है, पवित्रता मित्रता में होनी चाहिए ।जहां चरित्र की पवित्रता होगी, जहां विचारों की पवित्रता होगी, वहां वहीं पर मित्रता होगी। समान व्यवसाय वाले लोगों में मित्रता स्वभाविक है, लेकिन समान विचारधारा में ,समान व्यवसाय में, मित्रता में किसी तरह का स्वार्थ नहीं आना चाहिए ।यदि स्वार्थ है ,तो पवित्र मित्रता का कोई औचित्य नहीं रह जाता है ।युवा पीढ़ी अनेक लोगों से प्राय: मित्रता कर लेती हें और उनके सानिध्य में पूरी तरह से अपना समय नष्ट करती है, जबकि उनमें एक आज भी सच्चा मित्र हमको दिखाई नहीं देता है ।वह सब समय नष्ट करने वाले साथी हो सकते हैं ,मित्र नहीं हो सकते। जो हमारे हित का सबसे पहले ध्यान रखें। श्रीमद् भागवत कथा के आयोजक द्वारा सभी का आभार प्रदर्शन किया गया।।