आष्टा /किरण रांका
यह आयोजन रविवार, 10 अगस्त 2025 को होगा संपन्न।
आष्टा (सीहोर)। बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ इस वर्ष भी भुजरिया महापर्व का आयोजन कुशवाह समाज दर्जीपुरा पंचायत आष्टा द्वारा किया जाएगा। यह आयोजन रविवार, 10 अगस्त 2025 को होगा। दोपहर 3 बजे से प्रारंभ होने वाला चल समारोह दर्जीपुरा स्थित शास्री स्कूल के पास से बैंड बाजे ढोल नगाड़े के साथ पुरुष वर्ग डंडे लड़ते हुए एवं मातृशक्ति सर पर भुजरिया रखकर हर्षोल्लास के साथ गीत गाते हुए नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए मां पार्वती के तट पर विसर्जन कर सम्पन्न होगा।
आयोजन समिति ने सभी धर्मप्रेमी बंधुओं से अधिक से अधिक संख्या में शामिल होकर पर्व की शोभा बढ़ाने का आग्रह किया है।
आयोजन समिति के पदाधिकारी
अध्यक्ष निखिल (शुभम) कुशवाह ने बताया कि यह पर्व सामाजिक एकता और सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण का प्रतीक है।
अध्यक्षा नरेंद्र कुशवाह (कुशवाह समाज दर्जीपुरा आष्टा एवं सह अध्यक्ष हिन्दू सकल समाज), अध्यक्ष दलकिशोर कुशवाह (पटेल कुशवाह समाज), उपाध्यक्ष विजय कुशवाह और सचिव सुज्जल (लल्ला) कुशवाह ने भी सभी से समय पर पहुंचने की अपील की है।
कुशवाह समाज दर्जीपुरा पंचायत आष्टा ने बताया कि भुजरिया महापर्व नगर में धार्मिक वातावरण और सामूहिक उत्साह का माहौल बनाएगा, जिसमें समाज के साथ-साथ नगरवासी भी उत्साहपूर्वक भाग लेंगे।
क्यों मनाया जाता हे भुजरियां पर्व
मालवा में भुजरिया त्यौहार अच्छी बारिश, अच्छी फसल, सुख-शांति और आपसी भाईचारे की कामना के लिए मनाया जाता है, और यह एक सामाजिक परंपरा भी है जिसमें लोग एक-दूसरे को भुजरिया बाँटकर शुभकामनाएं देते हैं और आशीर्वाद लेते हैं। यह त्यौहार श्रावण माह की पूर्णिमा के बाद मनाया जाता है, और भुजरिया का अर्थ है नई फसल।
सुख-समृद्धि का प्रतीक: भुजरिया नई फसल का प्रतीक मानी जाती हैं। इसे एक-दूसरे को देकर लोग धन-धान्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
आपसी भाईचारे और सामाजिक जुड़ाव: भुजरिया पर्व आपसी सद्भाव, प्यार और भाईचारे को बढ़ावा देता है, क्योंकि लोग एक-दूसरे को भुजरिया देते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व: एक कथा के अनुसार, यह त्यौहार आल्हा-ऊदल के समय से जुड़ा है जब उनकी बहन चंदा ने मायके आकर नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था।
त्यौहार के दौरान होने वाली रस्में:
श्रावण मास में घरों में गेहूं की भुजरिया बोई जाती हैं।
रक्षाबंधन के अगले दिन इन भुजरियों की पूजा की जाती है।
लोग इन भुजरियों को एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं देते हैं और बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं।
अंत में, इन भुजरियों को जल स्रोतों में विसर्जित किया जाता है।
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