Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

October 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
October 18, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

जैश-ए-मोहम्मद की नई चाल — महिला विंग का गठन और बदलती आतंक रणनीति का खतरनाक संकेत..

कर्नल देव आनंद लोहामरोड

पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने हाल ही में एक नया और चौंकाने वाला कदम उठाते हुए 8 अक्टूबर 2025 को बहावलपुर के मार्कज़ उस्मान-ओ-अली में अपनी पहली महिला इकाई “जमात-उल-मुमिनात” (Jamaat-ul-Mominaat) के गठन की आधिकारिक घोषणा की। इस नई शाखा का नेतृत्व जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मौलाना मसूद अजहर की बहन सादिया अजहर को सौंपा गया है। इसकी भर्ती प्रक्रिया बहावलपुर स्थित जैश के प्रमुख केंद्र मार्कज़ उस्मान-ओ-अली से शुरू की गई और इसे कराची, मुज़फ्फराबाद, कोटली, हरिपुर और मनसेहरा तक फैलाया गया। माना जा रहा है कि इस महिला इकाई के गठन का उद्देश्य आतंकवादी नेटवर्क को सामाजिक और धार्मिक रूप से विस्तारित करना, तथा भारत द्वारा संचालित हालिया आतंक-विरोधी अभियानों — विशेष रूप से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ — का मनोवैज्ञानिक प्रतिकार करना है।

सूत्रों के अनुसार, इस निर्णय को संगठन के प्रमुख मसूद अजहर और उसके भाई ताहला अल-सैफ़ ने मिलकर लिया। इस इकाई को विशेष रूप से सोशल मीडिया प्रचार, जासूसी, हनी-ट्रैप गतिविधियों और आत्मघाती अभियानों के लिए प्रशिक्षित किए जाने की योजना बनाई गई है। यह संकेत देता है कि आतंकवाद का चेहरा अब और अधिक जटिल, अप्रत्याशित और खतरनाक हो रहा है।

यह महिला ब्रिगेड पाकिस्तान की व्यापक आतंक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जिसके तहत आतंकवाद को अब सामाजिक, धार्मिक और लैंगिक (gender-based) विस्तार दिया जा रहा है। खबरों के मुताबिक, इस संगठन में शामिल की जा रही महिलाएं मुख्यतः आर्थिक रूप से कमजोर, कम शिक्षित और कई मामलों में आतंकवादी कमांडरों की पत्नियां या रिश्तेदार हैं। इन्हें धार्मिक ब्रेनवॉशिंग के जरिए “जिहाद” के नाम पर आत्मघाती मिशनों, खुफिया कार्यों और साइबर प्रचार अभियानों के लिए तैयार किया जा रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के निरंतर दबाव — जैसे कि सर्जिकल स्ट्राइक, ड्रोन हमले, और आतंकी फंडिंग चैनलों पर नकेल — ने जैश की पारंपरिक गतिविधियों को गंभीर रूप से कमजोर किया है। नतीजतन, संगठन अब नई भर्ती रणनीतियाँ अपनाने पर मजबूर हुआ है। महिलाओं को शामिल करने का यह कदम एक सोची-समझी चाल है, ताकि वे समाज में घुल-मिलकर खुफिया नेटवर्क, प्रचार अभियानों और मनोवैज्ञानिक युद्ध के नए आयाम खड़े कर सकें।

कई रिपोर्टों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि इस विंग के गठन में मसूद अजहर के परिवार की सक्रिय भूमिका रही है, जिससे यह साफ होता है कि यह कोई प्रयोगात्मक प्रयास नहीं बल्कि संगठन की शीर्ष नेतृत्व द्वारा स्वीकृत रणनीतिक नीति है। जैश समझ चुका है कि आधुनिक आतंकवाद केवल हथियारों से नहीं, बल्कि मानव-मनोविज्ञान, प्रचार और सामाजिक विभाजन से भी लड़ा जा सकता है।

इस महिला इकाई की स्थापना ऐसे समय में हुई है जब भारत का “ऑपरेशन सिंदूर” पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक और प्रभावशाली मोर्चा साबित हुआ। इस अभियान के बाद जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-मुजाहिदीन जैसे संगठनों को जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान-आधारित ठिकानों पर भारी नुकसान उठाना पड़ा। कई आतंकी अड्डे ध्वस्त हुए, फंडिंग के रास्ते बंद किए गए, और स्थानीय समर्थन में भारी गिरावट आई। ऐसे में जैश की यह महिला इकाई एक तरह से काउंटर-नैरेटिव (Counter-Narrative) तैयार करने की कोशिश है। संगठन चाहता है कि महिला उपस्थिति के सहारे वह समाज में सहानुभूति पैदा करे और आतंक-विरोधी अभियानों को “धर्म और सम्मान पर हमला” बताकर वैचारिक समर्थन जुटाए।

यह कदम भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई और जटिल चुनौती लेकर आया है। महिलाओं की भागीदारी से सुरक्षा जांच में कई व्यावहारिक व संवैधानिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। बुर्का और पारंपरिक परिधान का प्रयोग एक ओर धार्मिक अधिकारों से जुड़ा विषय है, लेकिन आतंक संगठन इन्हीं सामाजिक भावनाओं का दुरुपयोग कर सुरक्षा से बचने का प्रयास करते हैं। इसलिए सुरक्षा एजेंसियों को अब नई तकनीक, बायोमेट्रिक सिस्टम, और व्यवहार-आधारित ट्रैकिंग तकनीक अपनाने की जरूरत है।

इसके अतिरिक्त यह भी आशंका है कि इस महिला विंग को आत्मघाती दस्ते (Suicide Squad) के रूप में प्रशिक्षित किया जा सकता है, जैसा पहले हमास, अल-शबाब और ISIS जैसे संगठनों में देखा गया। हालांकि अभी तक इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिले कि जैश ने महिलाओं को आत्मघाती हमलों में भेजने की घोषणा की है, लेकिन आतंकवाद के इतिहास को देखते हुए इस संभावना को नजरअंदाज करना खतरनाक होगा।

इस नई इकाई का एक और बड़ा खतरा “हनी ट्रैप और साइबर-जिहाद” के रूप में उभर सकता है। आतंक संगठन महिलाओं का उपयोग भावनात्मक या संबंधों के ज़रिए खुफिया जानकारी प्राप्त करने, सुरक्षा अधिकारियों को फंसाने और मानसिक दबाव बनाने के लिए कर सकते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर नकली प्रोफाइल और धार्मिक प्रचार के जरिए भ्रम फैलाना भी इस रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। इस तरह के अभियानों से समाज में अविश्वास, भय और सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है। इसलिए सुरक्षा एजेंसियों को ऐसी स्थितियों में साक्ष्य-आधारित, संवेदनशील और पेशेवर दृष्टिकोण अपनाना होगा ताकि किसी निर्दोष व्यक्ति या समुदाय पर अन्याय न हो।

प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, इस महिला विंग की भर्ती बहावलपुर, कराची, हरिपुर, मुज़फ्फराबाद और कोटली जैसे क्षेत्रों में हुई है — ये वे इलाके हैं जहाँ पहले से जैश के धार्मिक और प्रशिक्षण केंद्र सक्रिय रहे हैं। कई स्थानीय मस्जिदों और मदरसों में महिलाओं को “धर्म की रक्षा और जिहाद में योगदान” का भावनात्मक पाठ पढ़ाया जा रहा है। यह इकाई न केवल आतंकी अभियानों के लिए, बल्कि प्रचार अभियानों, सोशल मीडिया नेटवर्किंग और फंडिंग चैनलों के संचालन के लिए भी प्रशिक्षित की जा रही है।

भारत के लिए यह स्थिति अत्यंत गंभीर है। महिला आतंकवाद की रोकथाम के लिए कुछ ठोस रणनीतियाँ आवश्यक हैं — जैसे कि सुरक्षा एजेंसियों के बीच रियल-टाइम डाटा शेयरिंग, महिला नाम से चलने वाले कट्टरपंथी सोशल मीडिया अकाउंट्स की सक्रिय निगरानी, समुदाय आधारित जागरूकता अभियान, और महिला सुरक्षा अधिकारियों की संख्या बढ़ाना ताकि धार्मिक भावनाओं का सम्मान रखते हुए तलाशी व पूछताछ की जा सके। साथ ही, फेक न्यूज और भ्रामक रिपोर्टिंग पर भी सख्त नियंत्रण आवश्यक है, ताकि आतंक संगठन भ्रम फैलाने में सफल न हो सकें।

जैश-ए-मोहम्मद द्वारा महिला विंग का गठन केवल संगठन की मजबूरी नहीं बल्कि उसकी एक सुसंगठित रणनीतिक चाल है। यह कदम दर्शाता है कि आतंकवाद अब अपने स्वरूप को समाज के भीतर गहराई तक फैलाने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। भारत के लिए यह खतरा केवल सीमा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के अंदरूनी ढांचे तक पहुंच चुका है। इसलिए यह आवश्यक है कि भारत इस परिवर्तन को केवल एक घटना नहीं, बल्कि भविष्य के आतंकवादी परिदृश्य की चेतावनी के रूप में देखे।

महिलाओं की भागीदारी आतंकवाद की लड़ाई में नया मोर्चा खोल सकती है — यह लड़ाई अब केवल बंदूक और गोले से नहीं, बल्कि मनोविज्ञान, प्रचार और सामाजिक भ्रम के माध्यम से लड़ी जाएगी। भारत को अब इस “सॉफ्ट जिहाद” के खिलाफ उसी दृढ़ता, संयम और रणनीतिक कौशल के साथ लड़ना होगा, जैसा उसने सीमा पर “ऑपरेशन सिंदूर” में प्रदर्शित किया था। दुनिया के सामने यह एक और सबूत है कि पाकिस्तान अब भी आतंकवाद को अपने “रणनीतिक उपकरण” के रूप में इस्तेमाल करने की नीति से पीछे नहीं हटा है — चाहे इसके लिए उसे अपने समाज की महिलाओं को ही मोहरा क्यों न बनाना पड़े।