Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

August 2025
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
25262728293031
August 7, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

जब बचपन में बिछुड़े मित्रों का फिर से हुआ मिलन…..

ग्वालियर 20 दिसम्बर 2023/ वल्लभ संप्रदाय के मूर्धन्य संत एवं कृष्ण भक्ति की गायकी में निपुण सूरदास जी और गान महर्षि तानसेन के बीच बचपन में ही घनिष्ठ मित्रता हो गई थी। दोनों ने अपने जन्म स्थान ग्वालियर में ध्रुपद गायकी का ककहरा सीखा। सूरदास जी ने ग्वालियर के तत्कालीन महान संगीतज्ञ बैजू बाबरा से गुरू-शिष्य परंपरा के तहत ध्रुपद गायकी सीखी थी। समय के साथ सूरदासजी ने बृज की राह पकड़ी तो तानसेन राजा रामचंद्र की राजसभा बांधवगढ़ होते हुए आगरा पहुँचे और मुगल बादशाह अकबर के दरबार में नवरत्न में शामिल होकर सुर सम्राट तानसेन के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
पावन बृज की धरा पर कृष्ण भक्ति में डूबे सूरदास को वल्लभाचार्य जी ने अष्टछाप में सम्मिलित कर प्रतिष्ठित स्थान दिया। कालान्तर में वृद्धावस्था को प्राप्त कर चुके सूरदासजी एक दिन खड़ाऊ से खटपट करते और हाथ में लकुटिया थामे फतेहपुर सीकरी में मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पहुँचे। तानसेन के जरिए अकबर ने सूरदास जी की महिमा सुन रखी थी। अकबर ने उन्हें जागीर और प्रतिष्ठित राजकीय पद देने का आग्रह किया। पर सूरदासजी ने इस प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। सूरदास ने कृष्ण भक्ति के कुछ पद गाकर अकबर को सुनाए और यह बूढ़ा बाबा खटपट करता हुआ पुन: गोकुल पहुँच गया।
तानसेन की बृज यात्रा के दौरान बचपन में बिछड़े मित्रों सूरदासजी और तानसेन का आत्मीय मिलन हुआ था। उस समय तानसेन ने भाव विभोर होकर सूरदास जी की प्रशंसा में एक दोहा सुनाया। जिसके बोल थे –

किधौं सूर कौ सर लग्यौ, किधौं सूर की पीर ।
किधौं सूर कौ पद लग्यौ, तन-मन धुनत सरीर ॥

यह दोहा सुनकर सूरदासजी कहाँ रूकने वाले थे उन्होंने बड़े मार्मिक भाव से अपने बचपन के मित्र गान मनीषी तानसेन की प्रशंसा करते हुए कालजयी दोहा गाकर सुनाया। जिसके बोल हैं –

विधना यह जिय जानिकैं, सेसहिं दिए न कान ।
धरा मेरू सब डोलते, सुन तानसेन की तान ॥

तानसेन की बृज यात्रा के बारे में विन्सेण्ट स्मिथ ने अपनी पुस्तक “अकबर द ग्रेट मुगल” में उल्लेख किया है। साथ ही डॉ. हरिहर निवास द्विवेदी द्वारा रचित “तानसेन” पुस्तक में भी सूरदास जी और सुर सम्राट तानसेन की मित्रता का उल्लेख मिलता है।

हितेन्द्र सिंह भदौरिया