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Dharmendra Singh

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सच दिखाने की हिम्मत

खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता”. .. सिंधु जल संधि संशोधन का समय आ गया है : कर्नल लोहामरोड़
जयपुर, 26 सितंबर 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि पर हुई बैठक के दौरान कहा था कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”। इसी विचार को क्रियान्वित करते हुए पाकिस्तान को रावि नदी के पानी का पाकिस्तान की ओर प्रवाह को पूरी तरह रोक दिए जाना राष्ट्रहित का फैसला है और इस कदम की देश का हर नागरिक स्वागत करता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा एवं देश के आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ कदम माना जाना जा रहा है। शाहपुर कंडी बैराज भारत के पंजाब के पठानकोट जिले में रावी नदी पर एक बांध है जो 25 फरवरी 2024 को बनकर तैयार हो गया है। बांध बनकर तैयार होने के बाद पाकिस्तान जाने वाला रावी नदी के पानी के प्रवाह को पूरी तरह से रोक दिया गया है. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि की गई थी। समझौते के तहत दोनों देशों के बीच सिंधु नदी और उसकी अन्य सहायक नदियों से पानी की आपूर्ति का बंटवारा नियंत्रित किया जाना तय किया गया था। संधि के तहत रावी, सतलुज और ब्यास के पानी पर भारत का पूरा अधिकार होगा , जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार होगा. सिंधु और उसकी सहायक नदियों से भारत को लगभग 19.5 प्रतिशत तो पाकिस्तान को लगभग 80 प्रतिशत पानी मिलता है।
भारत पूर्व में अपने हिस्से की तीन नदियों पर कई भंडारण कार्य का सफलतापूर्वक निर्माण कर चुका है, जिनमें सतलज पर भाखड़ा बांध, व्यास पर पोंगऔर पंढोह बांध, और रावी पर थीन (रणजीतसागर). इन परियोजनाओं के साथ-साथ ब्यास सतलज लिंक और इंदिरा गांधी नहर परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं ने भारत को पूर्वी नदियों के जल के लगभग पूरे हिस्से का 95% पानी का उपयोग कर पा रहा था . भंडारण के अभाव में रावी नदी से लगभग 2 मिलियन एकड़-फीट पानी अभी भी बिना उपयोगनदीष माधवपुर के नीचे पाकिस्तान की ओर बह रहा था। रावी नदी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बहती है। इसका उद्गम भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में रोहतांग दर्रे के पास होता है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, और पंजाब से होकर यह नदी पाकिस्तान में प्रवेश करती है। यह हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से होकर बहती है।
1979 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर सरकारों ने पाकिस्तान का पानी रोकने के लिए रंजीत सागर बांध और डाउनस्ट्रीम शाहपुर कंडी बैराज बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते पर जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और उनके पंजाब समकक्ष प्रकाश सिंह बादल ने हस्ताक्षर किए थे। 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परियोजना की नींव रखी । यद्यपि रणजीत सागर बांध का निर्माण 2001 में पूरा हो गया था, शाहपुर कंडी बैराज नहीं बन सका और रावी नदी का पानी पाकिस्तान में बहता रहा. 2008 में शाहपुर कंडी परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था, लेकिन निर्माण कार्य 2013 में शुरू हुआ. 2014 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच विवादों के कारण परियोजना फिर से रुक गई थी. 2018 में केंद्र ने मध्यस्थता की और दोनों राज्यों के बीच समझौता कराया. इसके बाद बांध का काम शुरू हुआ। अब लंबे समय से पूरा होने का इंतजार कर रहे शाहपुर कंडी बांध का निर्माण पूरा होने के साथ रावी नदी से पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को रोक दिया गया है। रावी का पानी रोकने के लिए शाहपुर कंडी बांध के गेट बंद कर दिए गए हैं और इसके साथ ही बांध में जल भंडारण आरंभ हो गया है। बांध में करीब 400 फुट तक जलस्तर पहुंचने के बाद ही पानी सिंचाई के लिए दिया जाएगा।
55.5 मीटर ऊंचा शाहपुरकंडी बांध एक बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना का हिस्सा है । जिसमें 206 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाली दो जल विद्युत परियोजनाएं शामिल हैं. यह रंजीत सागर बांध परियोजना से 11 किमी नीचे रावी नदी पर बनाया गया है. बांध के पानी से जम्मू-कश्मीर के अलावा पंजाब और राजस्थान को भी मदद मिलेगी. अब पाकिस्तान को जाने वाला रावी नदी का 12 हजार क्यूसेक (प्रति वर्ष) पानी बंद हो जाएगा। इस पानी से अब जम्मू-कश्मीर और पंजाब की 37 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। इसमें से 32 हजार हेक्टेयर जम्मू-कश्मीर में ही है। बांध से पैदा होने वाली पनबिजली का 20 फीसदी हिस्सा जम्मू-कश्मीर को भी मिल सकेगा । शाहपुर कंडी बांध के पूरा होने के साथ, भारत अब रावी नदी के जल संसाधनों का लाभ उठा सकता है, जो जम्मू-कश्मीर और पंजाब में कृषि और आर्थिक विकास में योगदान देगा.
इसके साथ-साथ यह भी कहना होगा कि भारत अपने सामरिक हितों की सुरक्षा की वचनबद्धता को कायम करते हुए “खून और अपनी एक साथ नहीं बह सकता” भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विचार को भी दर्शाता है । यह भारत के दुश्मन देश को साफ संदेश है कि भारत के अधिकार और हितों की रक्षा करने के लिए हर कदम उठाया जाएगा। 1960 की सिंधु जल संधि भारत के हितों की रक्षा नहीं करती है। दोनों देशों के हिस्से में तीन-तीन नदियों का पानी बांटा गया जिसके अंतर्गत सिंधु ,झेलम और चेनाब नदी का पानी पाकिस्तान और रवि, व्यास और सतलज नदी का पानी भारत के हिस्से में दिया गया , जो सुनने में न्याय संगत लगता है लेकिन गहन अध्ययन करने पर पता चलता है कि किस प्रकार भारत के हितों की अन देखी हुई जिसके अंतर्गत पाकिस्तान को पूरे पानी का 80% आवंटित किया गया और भारत को मात्र 20% पानी को इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई है। लगता है यह भी कोई भारत के विभाजन के साथ जुड़ी देश को और अधिक कमजोर करने की साजिश रही होगी।

कर्नल देव आनंद