मुनि श्री निष्कम्प सागर जी
पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार ने श्रीफल भेंट किया
आष्टा /किरण रांका
साधना का पथ सरल नही माना जाता जबकि वास्तविकता यह है कि सरलता धारण करना साधु का प्रथम गुण है । धर्म का मर्म समझना बाद की विषय वस्तु है धर्म को धारण करना पहला कर्त्तव्य है । साधु और श्रावक दोनों ही अपने अपने नियमों से बंधे होते हैं । साधु नियमबद्धता का उपदेश देते हैं और प्रतिबद्धता से पालन भी करते हैं । साधु संतों की चर्या अथवा शास्त्र सम्मत जीवन शैली ही उनके उपदेशक होने को सार्थकता प्रदान करती है । करनी बगैर कथनी का कोई प्रभाव नही होता । श्रेष्ठ श्रावक या भक्त वही है जो विवेक पूर्वक अपने परिवार परिवेश और पंथ के लिए कर्त्तव्य पालन को तत्पर रहता है । श्रद्धा और भक्ति में अंधानुकरण नही होना चाहिये अंधभक्ति समाज के लिए घातक होती है । यह आशीर्वचन किला मन्दिर में आचार्य शिरोमणि विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि निष्कम्प सागर जी महाराज ने दिए । मुनि श्री ने पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार तथा वस्त्र व्यापारी संघ के सदस्यों से चर्चा में कहा कि समाज मे सभी तरह के लोग होते हैं यदि आप अपनी स्वीकार्यता बढ़ाते रहेंगे तो निश्चित ही अपने कार्यक्षेत्र में प्रगति करेंगे । अध्यात्म का क्षेत्र हो या व्यवसाय उद्यम का अथवा राजनीति और समाज सेवा हो हर जगह गुणवत्ता ही महत्वपूर्ण होती है । प्रतिष्ठा के लिए भी प्रतिस्पर्धा जरूरी है लेकिन प्रतिष्ठा तभी हासिल होती है जब हमारे कर्म में परमार्थ का गुण और भाव निहित हो ।
मुनिश्री निष्कम्प सागर जी महाराज ने स्वाध्याय के लिए पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार , कपड़ा एशोषिसेशन के पूर्व अध्यक्ष राजू श्रीमोड़, दिगम्बर जैन समाज के पूर्व अध्यक्ष यतेंद्र जैन भुरू , उत्कृष्ट श्रावक अनिल प्रगति , मुनि सेवा समिति के पूर्वाध्यक्ष सुनील प्रगति , संतोष जैन भंवरा ,धर्मेंद्र श्रीमोड़ सहित उपस्थित श्रावको को स्वरचित साहित्य प्रदान किया।
इसके पूर्व श्रावको ने मुनिसंघ के दर्शन लाभ लेकर उन्हें श्रीफल भेंट करके शीतकालीन वाचना का आग्रह किया

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