सरदारपुर – राजोद नगरी श्रेत्र एवं आस पास के गांवों में अलग – अलग नशा करने वाले नशेड़ीयो की तादाद चिंताजनक रूप में बढ़ रही है। युवा वर्ग के ऐसे नशेड़ीयो को आज देख हर कोई चिंता जता रहा है। पर किसी के पास कोई रोक थाम का उपाय नहीं है और फ्रिकमंद लोग केवल पुलिस को कोसते हुए अपनी बात कह कर रुक जाते हैं। कुछ समय से नशेड़ियों के बारे में बारीकी से अध्ययन करने व निगाह रखने पर यह बात उभर कर सामने आई है कि हर वर्ग के युवा नशे की गिरफ्त में आ रहें हैं। फिर भी मध्यम व गरीब वर्ग के युवकों की संख्या अन्य वर्ग के लोगों की तुलना में काफी अधिक है कोई युवक अपने संगी साथियों के इस लत में पड़ने के बाद वह भी चपेट में आ जाता है तो कोई ऐसे लोगों की सोहबत करने के बाद इस दलदल में धंसता चला जाता है। जबकि ग़रीब वर्ग के मजदुर पेशा युवक जब अनैतिक तरीके से ज़रूरत से कुछ अधिक कमाने लगते हैं और ग़लत रास्तों से अनाप शनाप पैसा जेब में आने लगता है तो वो शराब के साथ साथ नशें के अन्य साधनों का भी उपयोग करने लगते हैं और तब धीरे धीरे ऐसी स्थिति बनती है कि वे चाहते हुए भी इस दलदल से निकल नहीं पाते हैं और इसकी गिरफ्त में आने के बाद जब नशा करना रोज की आदत बन जाती है तों वे शरीर व मन से भी खत्म होने लगते हैं तथा परिवार व समाज से अपने आप कट जाते हैं।नशे के दौरान अपराध किए जातें हैं नशे के दौरान अपराध किए जाने से जब एक बार पकड़े जाने पर जेल से जब की हवा खा लेते हैं तो उन्हें फिर दोबारा कटघरे में जाना आसान लगता है और वे किसी के रोकने से रूकते नहीं है। गरीब व मध्यम वर्ग के ऐसे युवकों की शारीरिक व मानसिक स्थिति आज सबसे अधिक डाबाडोल हो रही है। गुटखा पाउच के आदी होने के बाद वे बिना नशे के कोई काम नहीं कर पाते। न उन्हें किसी तरह की सुध रहती है। कोई काम करने से पहले उन्हें नशा करना आवश्यक हो जाता है और इसके अभाव में ना तो उनका शरीर कम कर पता है और ना ही दिमाग नहीं घर से बाहर निकाल सकते हैं नशे की हालत में ही कोई भी अपराध करने से हिचकिचाते नहीं है और तब उन पर छोटा-मोटा अपराध करने के बाद कोई भी व्यक्ति रहम खा कर छोड़ देता है यही नहीं पुलिस के लिए भी ऐसे अपराधी काफी बढ़ सिरदर्द साबित होते हैं और वह भी ऐसे नशाखोरों को पकड़ने के बजाय उनकी और से आंखें मुंद लेते हैं। पुलिस न तों में अपने यहां पकड़कर रख पाती है और न हीं जेल भेज पाती है। क्योंकि ऐसे नशा खोर जेल वालों के लिए भी बहुत बड़ी मुसीबत साबित होते हैं। जब एक बार ऐसे युवक नशे में गिरफ्त में आ जाते हैं तब उन्हें बिना नशा किए चैन नहीं पड़ती और वे बुरी तरह तड़पने लगते हैं। ऐसे नशाखोरों को जेल में नशा उपलब्ध कराना भी आसान नहीं होता। इतना अवश्य है कि इस तरह के नशेड़ी घर परिवार व समाज से अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं।नशा करने के बाद अंध गति से दो पहिया वहानो से करतब दिखाते नज़र आतें हैं। और शाम होते ही बाईकों से रेश लगाना भी मार्केट से चालू हो जाते हैं।
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