
कर्नल देव आनंद लोहामरोड़,
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की नई दिल्ली यात्रा दक्षिण एशिया की कूटनीति में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखी जा रही है। अफगानिस्तान सरकार के इस सबसे वरिष्ठ प्रतिनिधि का भारत आगमन उस समय हुआ जब विश्व समुदाय अब भी तालिबान शासन को वैध मान्यता देने से परहेज़ कर रहा है। अगस्त 2021 में सत्ता संभालने के बाद तालिबान ने खुद को “इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान” घोषित किया था, परंतु महिलाओं के अधिकारों के हनन, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और आतंकवादी संगठनों से संबंधों के कारण अधिकांश देशों ने इसे वैध शासन के रूप में स्वीकार नहीं किया।
हालांकि स्थिति में परिवर्तन तब आया जब 3 जुलाई 2025 को रूस तालिबान को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला पहला देश बना। इसके बाद चीन, ईरान, कतर, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों ने भी तालिबान शासन से “व्यावहारिक संबंध” कायम रखे, जबकि भारत, अमेरिका और यूरोपीय देश अब भी मानवीय सहयोग तक ही सीमित हैं। इसी पृष्ठभूमि में मौलवी अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की भारत यात्रा को एक “सावधानीपूर्वक कूटनीतिक प्रयोग” माना जा रहा है, जिसमें भारत ने औपचारिक मान्यता के बिना ही अफगानिस्तान के साथ अपने संवाद के द्वार खोले।
भारत यात्रा से पहले उन्होंने 7 और 8 अक्टूबर 2025 को रूस का दौरा किया, जहाँ मॉस्को में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने भाग लिया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लैवरोव ने की। सम्मेलन का केंद्र अफगानिस्तान की स्थिरता, आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे विषय रहे। लैवरोव ने इस अवसर पर कहा कि रूस अफगानिस्तान की भूमि पर किसी तीसरे देश की सैन्य उपस्थिति का विरोध करता है। मुत्ताक़ी ने अपने वक्तव्य में आश्वासन दिया कि अफगानिस्तान की भूमि किसी विदेशी या आतंकवादी संगठन के उपयोग में नहीं लाई जाएगी। रूस पहले ही तालिबान को मान्यता दे चुका था, इसलिए यह सम्मेलन तालिबान की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को और मजबूत करने वाला साबित हुआ। रूस में हुई यह बैठक भारत यात्रा की एक प्रस्तावना के समान थी, जिसने दिखाया कि तालिबान अब अपने कूटनीतिक दायरे को सीमित क्षेत्रीय संवादों से आगे बढ़ाकर बड़े शक्ति-संतुलन वाले मंचों तक ले जाना चाहता है।
मौलवी अमीर ख़ान मुत्ताक़ी 9 अक्टूबर 2025 को नई दिल्ली पहुँचे। यह तालिबान सरकार के किसी वरिष्ठ प्रतिनिधि की भारत की पहली उच्चस्तरीय यात्रा थी। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा न केवल कूटनीतिक संवाद का एक चरण है, बल्कि पिछले दो दशकों से चले आ रहे भारत- अफगानिस्तान के गहरे संबंधों की नवीन पुनर्पुष्टि भी है। यह यात्रा उस ऐतिहासिक मित्रता की निरंतरता है, जिसकी नींव भारत ने 2001 के बाद अपने 3 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 25,000 करोड़ रुपये) के निवेश के माध्यम से रखी थी। भारत ने सालमा बांध (अफगान-इंडिया फ्रेंडशिप डैम), काबुल संसद भवन, ज़रान्ज-देलेराम राजमार्ग, स्कूलों, अस्पतालों, और सड़क नेटवर्क जैसी परियोजनाओं के ज़रिए वहाँ की जनता के जीवन को सीधा सशक्त किया। ये परियोजनाएँ केवल विकास का प्रतीक नहीं, बल्कि भारत-अफगान “जन से जन” संबंधों की सबसे मजबूत नींव बन गईं।भारत मानता है कि अफगानिस्तान की स्थिरता, शांति और समृद्धि पूरे दक्षिण और मध्य एशिया की स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
10 अक्टूबर 2025 को दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय वार्ता हुई और इसके बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया। इस वक्तव्य में भारत ने अफगानिस्तान की जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए स्वास्थ्य, शिक्षा और पुनर्निर्माण के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की बात कही। भारत ने अफगानिस्तान को 20 एम्बुलेंस देने और काबुल स्थित शिशु स्वास्थ्य संस्थान सहित कई चिकित्सा परियोजनाओं में तकनीकी सहयोग प्रदान करने का वादा किया। साथ ही यह घोषणा की कि भारत जल्द ही काबुल स्थित अपने “टेक्निकल मिशन” को उन्नत कर पूर्ण दूतावास (एम्बेसी) का रूप देगा। सुरक्षा के क्षेत्र में सबसे अहम सहमति यह रही कि अफगानिस्तान अपनी भूमि को भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए उपयोग नहीं होने देगा। तालिबान सरकार ने 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा करते हुए भारत को भरोसा दिलाया कि उसकी धरती किसी आतंकी संगठन को शरण नहीं देगी। भारत ने हाल ही में आए नंगरहार और कुनार प्रांतों के भूकंप-पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त की और मानवीय सहायता जारी रखने की बात कही। वार्ता में व्यापारिक सहयोग भी एक प्रमुख विषय रहा, जिसमें अफगान सूखे मेवे, मसाले, केसर और जड़ी-बूटियों के आयात को प्रोत्साहन देने तथा भारत से औषधीय सामग्री और निर्माण उत्पादों के निर्यात को सुगम बनाने पर सहमति बनी। दोनों पक्षों ने व्यापारिक संपर्क, सीमा शुल्क सहयोग और बैंकिंग व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर भी सहमति जताई।
इस सहयोग का सामरिक आयाम भी उतना ही महत्वपूर्ण है। भारत और अफगानिस्तान के बीच मजबूत रिश्ते अब चाबहार पोर्ट और वाखान कॉरिडोर के माध्यम से न केवल आर्थिक बल्कि भू-रणनीतिक दृष्टि से भी गहराई प्राप्त कर रहे हैं। चाबहार बंदरगाह भारत को पाकिस्तान की भू-राजनीतिक बाधाओं से मुक्त कर सीधे अफगानिस्तान और आगे मध्य एशियाई देशों तक पहुंचने का अवसर देता है। वहीं वाखान कॉरिडोर भविष्य में एक ऐसे “एशियाई संपर्क गलियारे” की भूमिका निभा सकता है, जो भारत को ईरान, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और रूस तक व्यापारिक और ऊर्जा के मार्ग से जोड़ देगा। यह नेटवर्क भारत की ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार विस्तार, और सामरिक स्वतंत्रता — तीनों को मजबूती प्रदान करता है।
भारत और अफगानिस्तान के बीच हुए इन समझौतों और वार्ताओं ने क्षेत्रीय राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दिया है। रूस द्वारा तालिबान को मान्यता मिलने और अब भारत के साथ हुए इस संवाद ने तालिबान को अंतरराष्ट्रीय वैधता की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाया है। भारत ने बिना औपचारिक मान्यता के भी यह स्पष्ट किया है कि वह दक्षिण एशिया में स्थिरता और आतंकवाद-विरोधी सहयोग के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएगा। यह यात्रा भारत की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह पाकिस्तान और चीन की अफगानिस्तान में बढ़ती दखलंदाज़ी को संतुलित करना चाहता है। साथ ही यह संकेत भी देती है कि नई दिल्ली अब काबुल के साथ मानवीय संबंधों के अलावा रणनीतिक हितों को भी सशक्त करना चाहती है।
अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति के दृष्टिकोण से यह यात्रा बेहद अहम मानी जा रही है। रूस, चीन और भारत — तीनों की सक्रियता यह दर्शाती है कि अफगानिस्तान अब केवल एक संकटग्रस्त राष्ट्र नहीं बल्कि क्षेत्रीय संतुलन का केंद्र बन रहा है। भारत का यह रुख पश्चिमी देशों को भी संकेत देता है कि दक्षिण एशिया में अब प्राथमिकता स्थिरता, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को दी जा रही है। इस तरह मुत्ताक़ी की भारत यात्रा न केवल तालिबान शासन की वैश्विक वैधता की ओर एक कदम है, बल्कि दक्षिण और मध्य एशिया की कूटनीति में एक नई वास्तविकता की शुरुआत भी है।अफगानिस्तान भारत के लिए केवल एक पड़ोसी नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक सेतु, ऊर्जा गलियारे का द्वार, और साझा समृद्धि का प्रतीक है।
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