शेख़ आसिफ़ रिपोर्टर
यह दुर्भाग्य की बात है कि 14 अगस्त 1947 को देश विभाजन और 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद सिंधी (हिन्दुओं) ने खुली हवा में सांस तो ली, लेकिन उन्हें इस आजादी की बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी। आज की परिस्थिति में एक ही उपाय है कि सिंधी भाषा को रोजगार से जोड़ा जाए, साथ ही घर परिवार में अपने बच्चों से अभिभावकगण मातृ भाषा में बात करें। ताकि आने वाली पीढ़ी सिंधी संस्कृति एवं मान्यताओं से जुड़ी रहे। उक्त उद्गार राष्ट्रीय सिंधी समाज शाखा खंडवा प्रदेश प्रवक्ता निर्मल मंगवानी ने 10 अप्रैल सिंधीयत दिवस की पूर्व संध्या पर युवाओं के लिए व्यक्त किए। श्री मंगवानी ने अपने उद्बोधन में यह भी कहा कि 10 अप्रैल 1967 को सिंधी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में मान्यता मिली थी। सन 70 और 80 के दशक तक जो सिंधी भाषी सिंधी अरबी लिखना, पढ़ना जानते थे, उनकी संख्या तेजी से घटती गई। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों ने रही सही कसर पूरी कर दी। घर परिवार में सिंधी के स्थान पर हिन्दी ओर अंग्रेजी में बोला जाने लगा है। प्राह देखने में आ रहा है कि चाहे केन्द्र सरकार के अधीन राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद हो अथवा राज्यों की सिंधी साहित्य अकादमियां वे भी सिंधी कवि सम्मेलन, साहित्य गोष्ठियों व सेमिनार तक सीमित रह गई हैं, जिसमें करोड़ों की राशि तो फूंकी जा रही है लेकिन भाषा के विकास एवं बोलचाल के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहे है। ऐसे में सिंधी भाषा के विकास की बात करना बेमानी होकर रह गया है। राष्ट्रीय सिंधी समाज प्रदेश प्रवक्ता श्री मंगवानी ने सिंधीयत दिवस पर समाजजनों एवं अभिभावकों से संकल्प लेकर अपने बच्चों एवं परिवार से मातृ भाषा में बात करने की अपील की है।

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