Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

June 2025
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
June 21, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

विशाल भौरसे रिपोर्टर

लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष राजीव खण्डेलवाल ने कहा हैकी

नोएडा के दो थाना क्षेत्र की सेक्टर 43-बी फेज में ग्रैंड ओमेक्स सोसायटी के टॉवर एलेक्जेंड्रा के फ्लैट डी-003 में रहने वाले तथाकथित भाजपा नेता श्रीकांत त्यागी के द्वारा उक्त सोसायटी की ही निवासी, एक संभ्रांत महिला के साथ अभद्रता की शुक्रवार पांच अगस्त की घटना का वीडियो वायरल होने के बाद उत्तर प्रदेश की नोएडा पुलिस तुरंत एक्शन (हरकत) में आई। “तथाकथित भाजपा नेता” इसलिए कह रहा हूं कि भाजपा के तमाम नेताओं द्वारा उसे भाजपाई मानने से या उससे कोई संबंध होने से इंकार
कर उसके पार्टी का प्राथमिक सदस्य तक न होने का दावा किया गया। भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चा की 208 की राष्ट्रीय कार्यसमिति के (। वर्ष के लिए) सदस्य या उसकी युवा विभाग की राष्ट्रीय संयोजक होने का पत्र वायरल होने पर किसान मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने खंडन किया। युवा विभाग जैसा खंड/पद भाजपा के किसान मोर्चे में हैं ही नही हैं। बावजूद इन सबके मीडिया भाजपाई नेताओं के साथ श्रीकांत त्यागी की अनेक फोटो होने के कारण समस्त मीडिया उसे भाजपाई गालीबाज नेता ही बता रही है। अब तुम्हीं मुद्दई, तुम्हीं शाहिद, तुम्हीं मुंसिफ ठहरे, तो फिर अदालत की जरूरत किसे है”। भाजपा के इंकार के पश्चात भी इस तकनीकी व तथ्यात्मक रूप से गलत बात को मीडिया द्वारा लगातार प्रसारित करने के बावजूद भाजपा के मीडिया सेल ने न तो मीडिया की आलोचना की और न ही इस गलत बयानी के लिए कानूनी कार्रवाई करने का संकेत दिया। क्या एक “संभ्रात रसूखदार नागरिक” भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं के साथ फोटो नहीं खिंचवा सकता है? सिर्फ
भाजपा कार्यकर्ता ही फोटो खिचवा सकते हैं? क्या यह एक नागरिक के अधिकार पर कुठाराघात नहीं हैं?

घटना के तुरंत बाद घटना का वीडियो वायरल होने के पश्चात पुलिस को मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी। इससे यह सिद्ध होता है कि मीडिया भी कई बार कानून के समान डर पैदा कर (क्योंकि बिना ड़र के कानून का पालन संभव होता दिखता नहीं है) कानून का पालन करवा लेता है, जो सामान्यतः नहीं होता है, क्योंकि “डर के आगे जीत है”।
इसलिए मीडिया भी कई बार कानून की शक्ल ले लेता है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। उपरोक्त घटना की बारीकियों से विस्तृत विवेचना कीजिए, उक्त तथ्य अपने
आप सिद्ध हो जायेगें।

सर्वप्रथम घटना के तुरंत बाद की गई रिपोर्ट पर “तेल देखो तेल की धार देखने” वाली पुलिस द्वारा गाली-गलौज के मारपीट का प्रकरण दर्ज किया गया, परंतु तुरंत-फुरंत कोई कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि तब तक हथेली पर सरसों जमाने वाला” मीडिया सामने नहीं आया था। “मीडिया’ के कानून के पर्यायवाची होने का यह पहला संदेश है। घटना का वीडियो तेजी से वायरल होने के बाद ही पुलिस सामने आई और प्रेसवार्ता कर यह कहा कि घटना में जो कुछ दिख रहा
है, उसमें आरोपी साफ तौर पर महिला के साथ अभद्रता करता हुआ दिख रहा है। आवश्यक तुरंत कार्रवाई की जा रही है। भला हो उत्तर प्रदेश पुलिस का, जो पूर्व में कई अन्य इसी तरह की या इससे भी गंभीर घटनाओं के अवसर पर यह कहते थकती नहीं थी कि, हम वीडियो की सत्यता की जाँच करेंगे, तदोपरांत वीडियो में छेड़छाड़ न पाये जाने पर कानूनन्‌ कार्रवाई की जायेगी। कम से कम यहां पुलिस ने वीडियो की जांच करने का कथन या संकेत तो नहीं दिया। यह यूपी पुलिस का त्वरित निर्णय की कार्रवाई को दर्शाता है?

उत्तर प्रदेश सरकार के त्वरित निर्णय के इसी क्रम में नोएडा सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा के 48 घंटों में आरोपी को गिरफ्तार के कथन के साथ ही ”नौ दिन में अढ़ाई कोस चलने वाले” प्रशासन ने 24 घंटे के भीतर ही आरोपी के भवन के अतिक्रमित भाग व निर्माण को बुलडोजर से
तुड़वाकर त्वरित कार्रवाई कर दी गई, जो उनके हाथ में थी। यह त्वरित निर्णय हमें आज की न्याय व्यवस्था में प्राय: नहीं
मिलता है। न्याय में देरी होने के कारण ही न्यायपालिका बदनाम है। इसलिए न कोई जांच, न नोटिस, न कोई सुनवाई का अवसर न दलील न वकील” और जेट की गति से बुलडोजर (क्योंकि बुलडोजर की स्वयं की गति तो बहुत कम होती है) चलाने की कार्रवाई कर दी गई। यह उत्तर प्रदेश सरकार व पुलिस की न्याय के प्रति तीव्रता का जीता जागता उदाहरण है। तथापि तथ्य व सच्चाई यह भी है कि वर्ष सितंबर 209 में ही अतिक्रमण को लेकर नोएडा अधिकारियों के समक्ष सोसायटी के निवासियों ने श्रीकांत
त्यागी के विरूद्ध शिकायत की थी, परन्तु वह “नक्कारखाने में तूती की आवाज’ साबित हुई और उपरोक्त घटना के होने तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। मजबूरन सोसाइटी के निवासियों ने इस स्थिति को ही अपनी नियति व भाग्य मान लिया। तत्पश्चात आरोपी के विरूद्ध 48 घंटे के भीतर ही धारा
354 के साथ गैंगस्टर एक्ट लगाकर, भगोड़ा घोषित कर, 25 हजार रू. का इनाम घोषित कर दिया गया। त्यागी की 5 लग्जरी गाड़ियों को जब्त कर लिया गया। संपत्ति कुर्क करने
की कार्रवाई करने की भी घोषणा की गई। भंगेल स्थित अचल संपत्ति की अतिक्रमित दुकानें जो किराए पर दी गई हैं, के विरुद्ध भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाने की बात भी कही गई। जीएसटी का छापा भी पड़ा। तत्पश्चात “कालस्य कुटिला गतिरू” जनता का गुस्सा शांत करने के लिए थाना प्रभारी व चार अन्य कांस्टेबल को सस्पेंड किया गया। (जो अमूमन मीडिया द्वारा ट्रायल की जाने वाली हर घटना के साख” बचाने के लिए प्राय: होता है।) मतलब सांसद द्वारा दी गई समय सीमा के अंदर मीडिया के कानून के हंटर के डर से जो भी कार्रवाई उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकार क्षैत्र मे थी, आनन -फानन कर दी गई।

झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले निर्धन व्यक्ति की झुग्गी पर किसी गुंडे द्वारा अनाधिकृत कब्जा करने की स्थिति में भी क्या पुलिस की तत्परता ऐसी ही दिखाई देती? इसका जवाब पुलिस वालों के पास भले ही न हो परंतु सार्वजनिक “सामान्य ज्ञान” में तो है ही। त्यागी के विरुद्ध पुलिस द्वारा उपरोक्त त्वरित कार्रवाई के बावजूद उसके रसूख के कई तत्व, साक्ष्य मिलते हैं। प्रथम उसके पास वर्ष 203 से चार सरकारी गनर (सुरक्षा) किसने उपलब्ध कराई थी, जो वर्ष फरवरी 2020 में पत्नी के साथ विवाद की सुर्खियों के आने के बाद वापिस ले ली गई थी। नंबर दो, गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने न्यायालय से पुलिस रिमांड नहीं मांगा और नंबर तीन त्यागी द्वारा महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार के लिए उसके द्वारा पुलिस को दिए गए बयान में मांगी गई माफी की पुलिस द्वारा सार्वजनिक जानकारी।

निश्चित रूप से आरोपी का व्यवहार घोरआपत्ति जनक एवं महिला विरोधी था। अतसांसद महेश शर्मा के 48 घंटे में गिरफ्तारी होने के कथन के बाद भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई तब भी आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की इतनी दबाव दबिश होने लगी कि डर कर आरोपी को “मरता क्या न करता’ न्यायालय में आत्म समर्पण करने लिए आवेदन देना पड़ गया। अतः पुलिस का यह दबाव लगभग गिरफ्तारी जैसा ही है। और अंततः परिणाम स्वरूप घटना के पांचवे दिन
आरोपी को गिरफ्तार कर ही लिया गया। इससे पुलिस का यह दावा तो मजबूत होता है कि जो उसके हाथ में है, अतिक्रमण तोड़ना, वह आनन-आफन में त्वरित कर दिया गया। परन्तु सजा देना उसके हाथ में नहीं होता है। “राजहंस बिनु को करे नीर क्षीर बिलगाव”। अतः यदि तुरंत या समय
सीमा में गिरफ्तारी नहीं भी हो पाई हो, तब भी वर्तमान न्याय व्यवस्था के चलते गिरफ्तारी होने पर भी उसे तुरंत सजा तो
नहीं हो जाती? अतः गिरफ्तारी में कुछ देरी होने पर राजनीतिक हंगामा तो मत कीजिए। पुलिस पर राजनीति के तहत तो आरोप मत। लगाइये। कम से कम पुललेस की इस त्वारत कार्रवाई के लिए तो उसकी पीठ तो थपथपा दीजिये? राजनीति तो हमारे देश की नीति रहित जिंदगी में इतनी घुलमिल गई है कि अच्छे और बुरे का अंतर समस्त राजनीतिक दल भूल चुके है। सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप लगाने की शैली ही देश की राजनीति नीति को हटाकर विकसित होती जा रही है। देश का यह दुर्भाग्य है।

एक और महत्वपूर्ण प्रश्न इस घटना से गंभीर रूप से यह भी उत्पन्न होता है कि श्रीकांत त्यागी जैसे व्यक्ति इतने रसूखदार कैसे बन जाते है? पुलिस से गनर कैसे प्राप्त हो जाता है? क्या “स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती’ का सिद्धांत यहां भी लागू होता है? जब उपरोक्त तरह की ऐसी कोई घटना घटित हो जाती है, तो तब शासन प्रशासन की साख बचाने के लिए मजबूरन ऐसे व्यक्तियों को बलि का बकरा” बनाकर बलि ले ली जाती है। परन्तु वह समस्त ‘“तंत्र’ जो रसूखदारो को बनाता है, उनका “हुक्का भरता है स्वयं बचा रहता है, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। यही नहीं! जनता भी इस मूल
प्रश्न/मुद्दे पर जाना नहीं चाहती है, तभी तो बुलडोजर चलने”पर सोसाइटी के लोग मिठाई बांटकर, गाजे बाजे बजाकर,“योगी जी जिंदाबाद” के नारे लगाकर खुशी का
इजहार करते है। परन्तु वर्ष 209 से 2022 तक इस रसूखदार के विरुद्ध की गई कई शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई न होने के लिये सरकार व पुलिस का संरक्षण या अकर्मण्यता को सोसायटी के रहवासी भूलकर भोले हो जाते हैं । जनता की हो गई ऐसी नियती के लिए आखिर जिम्मेदार कोन ?