सरिता पाटीदार रिपोर्टर

स्नान दान श्राद्ध पूर्णिमा, भाद्रपद पूर्णिमा होने के कारण गोकुलधाम गौशाला का रथ, “गऊ माता का रथ “आज मनावर के जैन बिल्डिंग ,जौहरी कॉलोनी में प्रवेश कर लोगों से दान की अपेक्षा की गई ।दान भी मिला । गेहूं, आटा, दाल, सब्जी ,सब्जी के कतरन एवम खाद्य सामग्री जो मनुष्य को उपयोग में ली जाती है उसी तरह गाय को भी खाद्य सामग्री की जरुरत पडती है।स्वच्छता के बारे में भी बताया गया।
गोकुलधाम गौशाला समीति के उपाध्यक्ष श्री जगदीश पाटीदार ने बताया कि शास्त्रों में कहावत है कि जो गौ माता के खुर से उडी धूल को सिर पर धारण करता है वह मानो तीर्थो के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है ।गाय का दूध गुणात्मक दृष्टि से अच्छा होता है।
प्राचीन ग्रंथों में सुरभि, कामधेनु समुद्र मंथन के 14 रत्नो मे से पदमा ,कपिला आदि गायो का महत्व बताया गया है।
हमारा पूरा जीवन गाय पर आधारित है। शिव मंदिर में काली गाय के दर्शन मात्र से कालसर्प योग का निवारण हो जाता है। गाय के पीछे के पैरों के खुरो के दर्शन करने मात्र से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है।
गाय की प्रदक्षिणा करने से चारों धाम के दर्शन का लाभ प्राप्त होता है ,क्योंकि गाय के पैरो चारों धाम है। जिस प्रकार पीपल का वृक्ष, तुलसी का पौधा आक्सीजन छोड़ते हैं ।वैसे ही एक छोटा चम्मच देसी गाय का घी जलते हुए कंडे पर डाला जाए तो एक टन आक्सीजन बनती है । इसलिए हमारे यहां हवन, अग्नि ,होम में गाय का ही घी उपयोग में लिया जाता है ।
धर्म ग्रंथों में लिखा है गाय ही विश्व की माता है ।गौ माता जब धुप से निकलती है तो सूर्य का प्रकाश गौ माता की रीढ की हड्डी पर पढ़ने से घर्षण द्वारा केरोटीन नाम का पदार्थ बनता है।।यह पदार्थ ही दूध मे मिलकर हल्का -पीला नजर आता है । मानव समाज में भी ” मां “शब्द कहना गाय से सीखा है । जब गौ वत्स रंम्भाता है तो “मां ” शब्द गुंजायमान होता है। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि रची थी तो सबसे पहले गाय को ही पृथ्वी पर भेजा था। मां शब्द का उच्चारण करता है। मां शब्द की उत्पत्ति भी गोवंश से हुई है।
गोकुलधाम गौशाला समिति के जितेंद्र सोनी ,जगदीश पाटीदार, लक्ष्मण मुकाती ,लोकेश पाटीदार,निलेश जैन, हरिओम पाटीदार, विकास शर्मा, गिरीश,संदीप उपस्थित थे।
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