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Dharmendra Singh

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June 2025
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June 20, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

एस पाटीदार रिपोर्टर

VO :-बैकुंठ (चतुर्दशी) दिन हरि -हर मिलन बंक नाथ मंदिर में महिलाओं द्वारा मनाया गया । यानी इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है। इसलिए यह दिन शिव एवं विष्णु के उपासक भक्ति करते है।

पौराणिक मान्यता
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बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त होता है।हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वे बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ
अतुल: भगवान विष्णु तथा शिव जी के “ऎक्य” का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने “कमल नयन” नाम और “पुण्डरी काक्ष” नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं।
भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं। वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी “बैकुण्ठ चौदस” के नाम से जानी जाएगी।

भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं। इस दिन स्वर्ग के द्वार खुल जाते है।

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