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Dharmendra Singh

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June 2025
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June 19, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

इरफ़ान अंसारी रिपोर्टर

परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 अवैध साहूकारों के लिए वरदान साबित हुई हैं जो कि 01 लाख 50 रू0 की अधोषित धनराषि का ऋण देते हैं, 03 फीसदी मासिक ब्याज की वसूली करते हैं, धनराषि की वसूली हो जाने के बाद भी अमानत बतौर चैंक लौटाते कभी नहीं हैं। मामला इसके आगे बढ़ चुका हैं जिसमें एक गैरंटर का भी चैंक लेकर रख लेते हैं। गैरंटर से 03 लाख की वसूली अमानती चैंक के माध्यम से करते हैं तो ऋणी व्यक्ति से 04 लाख की वसूली करते हैं। यह एक कारोबार हैं जिसमें एक ही अदालत में 10 से अधिक मामलों में परिवादी एक ही व्यक्ति हैं जो कि 50 लाख रू0 से अधिक की रकम की वसूली चैंक बाउंस के मामलों के जरिए कर रहा हैं।

चैंक बाउंस कानून 1881 में धारा 139 एवं 118 में परिवादी के पक्ष में उपधारणाएं उपलब्ध हैं जो कि चैंक जारीकर्ता आरोपी के विरूद्ध हैं जिसका खंडन आरोपी को करना पड़ता हैं। उपधारणाओं का खंडन करने के लिए आरोपी को प्रतिपरीक्षण एवं दस्तावेजो की आवष्यकता होती हैं। कौन से दस्तावेज होगे जिसके चलते उपधारणाएं खंडित होती हैं ? यह मामला दर मामला निर्भर करता हैं।

बचाव पक्ष के दृष्टिकोण से आरोपी के लिए यह आवष्यक हैं कि वह चैंक धारक के मांग सूचना पत्र का जवाब अवष्य दें क्योंकि यह परिवाद का आधार होता हैं। चैंक जारीकर्ता को अपना संपूर्ण बचाव लिखते हुए मांग सूचना पत्र का जवाब देना चाहिए और अपना बचाव प्रकट करना चाहिए। जिला न्यायालय स्तर पर चैंक बाउंस के मामलों में आरोपी का पक्ष मजबूत हो जाता हैं जिसका आगे जाकर लाभ मिलता हैं। कुछ मामलों में यह भी देखा गया हैं कि चैंक बाउंस के मांग सूचना पत्र का जवाब देने पर कुछ चतुर चालाक चैंक धारक परिवाद पत्र में आवष्यक सुधार कर लेते हैं। कुछ मामलों में यह भी देखा गया हैं कि चैंक अनादरण का मांग सूचना पत्र के नाम पर एक रिक्त लिफाफा डाक द्वारा कोरा कागज भेज दिया जाता हैं ताकि चैंक जारीकर्ता अपना जवाब नहीं दे सके। चैंक धारक का प्रयास यही होता हैं कि चैंक जारीकर्ता मांग सूचना पत्र का कोई जवाब नहीं दें। चैंक बाउंस कानून में किसी विषेषज्ञ अधिवक्ता के माध्यम से जवाब चैंक धारक एवं उसके अधिवक्ता के डाक पते पर जरूर भेजे।

चैंक बाउंस मामलों मंे परिवाद पत्र में अक्सर यह कहा जाता हैं कि मित्रवत् ऋण दिया गया था या फिर मधुर पारिवारिक संबंधों के चलते नगद ऋण दिया गया था। ऋण अल्प अवधि के लिए दिया गया था। बचाव पक्ष के लिए पूछने योग्य कुछ सवाल हो जाते हैं मसलन क्या कोई कारोबारी संबध हैं, दोनो पक्ष समय समय पर एक दूसरे को धनराषि देते रहे हैं क्या ? धनराषि के लेन देन का कोई साक्ष्य मौजूद हैं। धनराषि बड़ी हैं अथवा छोटी धनराषि हैं। यदि धनराषि बड़ी हैं तो क्या उसकी कोई लिखा पढ़ी हैं? धनराषि की व्यवस्था कहॉ से की गई थी? क्या ऋण देने के लिए किसी से उधार रकम की मांग की गई थी तो वह व्यक्ति कौन हैं ? ऋण देते समय अन्य कोई व्यक्ति मौके पर मौजूद था अथवा नहीं था ? कानून में धनराषि की उपलब्धता को लेकर कोई उपधारणा चैंक धारक के पक्ष में उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए धनराषि का स्रोत बताना आवष्यक हैं।

चैंक धारक की आर्थिक स्थिति कैसी हैं ? क्या वह आयकर दाता हैं अथवा नहीं हैं ? आयकर विवरणी दाखिल करता हैं अथवा नहीं करता हैं ? ऋण राषि देने की दिनांक से न्यायालय में गवाही देने की दिनांक तक ऋण राषि को आयकर विवरणी में घोषित किया गया हैं अथवा नहीं किया गया हैं ? दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह कहा हैं कि चैंक बाउंस कानून के जरिए अघोषित रकम की वसूली नहीं की जा सकती हैं।

चैंक बाउंस के मामलों में चैंक जारीकर्ता को आरोपी को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 में अपना बचाव प्रकट करने का अवसर प्राप्त होता हैं। कुछ मामलों में यह पर्याप्त होता हैं, आरोपी के लिए स्वयं का परीक्षण करवाना आवष्यक नहीं होता हैं। ज्यादातर मामलों में वैधानिक आवष्यकता के अनुरूप अपना बचाव प्रकट करने के लिए धारा 315 में स्वयं का परीक्षण करवाना चाहिए एवं दस्तावेजी साक्ष्य को प्रमाणित करना चाहिए।

अक्सर यह भी देखने में आता हैं कि 10 हजार रूपए का ऋण दिया गया था लेकिन चैंक धारक ने 10 लाख रूपए रिक्त चैंक पर मनमानी रकम लिखकर बाउंस करवा लिया हैं। एैसी परिस्थिति में चैंक जारीकर्ता के लिए यह आवष्यक हो जाता हैं कि वह मांग सूचना पत्र प्राप्ति के 15 दिवस के भीतर जवाब चैंक बाउंस कानून के विषेषज्ञ अधिवक्ता के माध्यम से अवष्य दें। कई मामलों में यह भी देखने में आया हैं कि किसानों को कृषि उपकरण बेचने वाले डीलर ट्रैक्टर ट्राली विक्रय करते समय फायनेंस कंपनी से ऋण राषि दिलवाते समय 04 चैंक लेकर रख लेते हैं। बाद में इन चैंको के माध्यम से वसूली करते हैं। किसानों की अज्ञानता का फायदा उठाकर चैंक पर फर्जी हस्ताक्षर करके चैंक बाउंस का मामला चलाते हैं। इस तरह के मामलों में चैंक धारक के मांग सूचना पत्र का जवाब देने के साथ में पुलिस थाने में चैंक के दुरूपयोग करने का मामला दर्ज करवाना चाहिए।

चैंक बाउंस के मामलों में बड़ी संख्या फायनेंस कंपनी के मामलों की हैं जो कि ऋण देते समय हस्ताक्षर युक्त चैंक लेकर रख लेती हैं। वाहन को जप्त करने के ऋण राषि की वसूली चैंक के माध्यम से करती हैं एवं इसके अतिरिक्त मध्यस्था एवं सुलाह अधिनियम 1996 में धारा 36 के माध्यम से वसूली की जाती हैं। प्रष्न यह उठता हैं कि प्रष्नगत् चैंक तो पुराना हैं लेकिन इसे पुराना साबित किया कैसे जाए ? उस परिस्थिति में चैंक जारीकर्ता का बैंक स्टैटमैंट एक प्रमाण हो सकता हैं जिसके माध्यम से यह प्रमाणित होता हैं प्रष्नगत् चैंक के बाद क्रमांक के चैंक भुगतान हेतु खाते में पूर्व में प्रस्तुत किए जा चुके थें। चैंक पर अंकित दिनांक को चैंक जारीकर्ता के पास प्रष्नगत् चैंक उपलब्ध नहीं था तो वह अंकित दिनांक को हस्ताक्षर कर जारी करेंगा कैसे ?
विचारण न्यायालय के स्तर पर चैंक बाउंस के मामलों में दोषसिद्धि का प्रतिषत 96 प्रतिषत हैं। ज्यादातर मामलों में चैंक धारक के मांग सूचना पत्र का जवाब चैंक जारीकर्ता द्वारा दिया नहीं गया हैं तो यह मान लिया जाता हैं कि चैंक जारीकर्ता के पास स्वयं का कोई बचाव उपलब्ध नहीं हैं। कानून कहता हैं कि चैंक बाउंस के मामलों में मांग सूचना पत्र का जवाब देना आवष्यक नहीं हैं बल्कि प्रष्नगत् चैंक की धनराषि अदा करना आवष्यक हैं। आरोपी के पास अन्य कोई ठोस एवं विष्वसनीय दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध हैं जिससे परिवादी के पक्ष में उपलब्ध उपधारणा का खंडन संभव हैं तो विचारण में आरोपी के प्रस्तुत साक्ष्य पर विचार किया जाता हैं। आरोपी का आचरण चैंक बाउंस के मामलों बार बार पेषी दर पेषी अधिवक्ता बदलने का होता हैं जो कि दोषसिद्धि का एक कारण हैं।

चैंक बाउंस के मामलों में सिविल, राजस्व अथवा अन्य क्रिमिनल मामलों की तरह बचाव नहीं लिया जाता हैं क्योंकि यह एक विषेष कानून हैं जिसमें बचाव सीमित हैं। कानून कहता हैं कि संभाव्य प्रतिरक्षा करनी हैं और प्रतिरक्षा को संदेह से परे प्रमाणित करना आवष्यक नहीं हैं। इसका अर्थ यही हैं कि क्या संभावना हो सकती हैं? इसलिए प्रतिपरीक्षण की शैली एक विषिष्ट होती हैं। चैंक बाउंस मामलों में परिवादी की ओर से पैरवी करना आसान होता हैं लेकिन आरोपी की ओर से पैरवी करना का अर्थ हैं कि नदी के प्रवाह के विपरीत तैरना जो कि एक कठिन कार्य हैं, इसलिए अधिवक्ता का चयन सावधानी से करना चाहिए। चैंक बाउंस के मामलों में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 314 में सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्टस के न्यायदृष्टांतो पर आधारित लिखित तर्क अवष्य पेष करना चाहिए। चैंक बाउंस के मामलों में आरोपी की ओर से पैरवी करने के आदी हो चुके अधिवक्ता को नियुक्त करना ठीक रहता हैं क्योंकि एैसा अधिवक्ता बचाव पक्ष में पैरवी करने की सकारात्मक मानसिकता रखता हैं जिसे केवल आरोपी का बचाव नजर आता हैं।

सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता नूपुर धमीजा इन्दौर ऑफिस