इऱफान अन्सारी रिपोर्टर

🔴 झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि मुस्लिम कानून के तहत धारणा है कि लोग ’15 वर्ष’ की उम्र में यौवन (Puberty) प्राप्त कर लेते हैं और इसे प्राप्त करने पर वे अपने अभिभावकों के हस्तक्षेप के बिना अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं।
🔵 जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल पीठ ने 15 साल की लड़की से शादी करने के लिए व्यक्ति के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए कहा, “…यह स्पष्ट है कि मुस्लिम लड़की का विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है।
सर दिनशाह फरदूनजी मुल्ला’ की किताब ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मुस्लिम लॉ’ के अनुच्छेद 195 के अनुसार, विपरीत पक्ष नंबर 2 लगभग 15 साल उम्र की लड़की है, तो वह अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह करने के लिए सक्षम है।
🛑 तथ्य और विवाद:
विपरीत पक्ष नंबर 3 लड़की का पिता है (विपरीत पक्ष नंबर 2), जिसने ग़लतफ़हमी के तहत अपनी बेटी के लापता होने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई। तदनुसार, आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366ए और 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया।
🟤 हालांकि,
बाद में लड़की की ओर से पेश वकील ने कहा कि शादी हो चुकी है और दोनों परिवारों ने शादी को स्वीकार कर लिया है। इस मामले को देखते हुए पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द की जा सकती है। इसी तरह लड़की के पिता के वकील ने प्रस्तुत किया कि पिता की ओर से जवाबी हलफनामा दायर किया गया, जिसमें यह खुलासा किया गया कि उनकी बेटी को अल्लाह की मेहरबानी से नेक जोड़ीदार मिला है।
🟠 याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मुस्लिम कानून के अनुसार यौवन और बहुमत समान हैं और यह धारणा है कि व्यक्ति 15 वर्ष की आयु में वयस्कता प्राप्त कर लेता है। आगे यह तर्क दिया गया कि मुस्लिम लड़का या मुस्लिम लड़की, जो यौवन प्राप्त कर चुका है, अपनी पसंद के अनुसार किसी से भी शादी करने के लिए स्वतंत्र है और अभिभावक को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
न्यायालय की टिप्पणियां: कोर्ट ने यूनुस खान बनाम हरियाणा राज्य व अन्य, 2014 (3) आरसीआर (क्रिमिनल) 518 का संदर्भ दिया, जिसमें यह माना गया कि मुस्लिम लड़की का विवाह पर्सनल लॉ द्वारा शासित होता है।
🟣 इसमें कोर्ट ने सर दिनशॉ फरदूनजी मुल्ला की पुस्तक ‘प्रिंसिपल्स ऑफ मुस्लिम लॉ’ के अनुच्छेद 195 का भी हवाला दिया,
जिसमें लिखा है: “195. विवाह की क्षमता –
(1) स्वस्थ मस्तिष्क का प्रत्येक मुसलमान , जिसने यौवनारंभ प्राप्त कर लिया है, विवाह के अनुबंध में प्रवेश कर सकता है।
(2) पागल और अवयस्क, जिन्होंने यौवन प्राप्त नहीं किया है, उनके संबंधित अभिभावकों द्वारा विवाह में वैध रूप से अनुबंधित किया जा सकता है।
(3) एक मुस्लिम का विवाह, जो स्वस्थ मन का है और युवावस्था प्राप्त कर चुका है, यदि उसकी सहमति के बिना किया गया तो विवाह शून्य है।
स्पष्टीकरण – पन्द्रह वर्ष की आयु पूरी होने पर साक्ष्य के अभाव में यौवनारम्भ माना जाता है।”
🟢 तदनुसार,
अदालत ने पाया कि मौजूदा मामले में लड़की की उम्र लगभग 15 वर्ष है। इस प्रकार, वह अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह करने के लिए सक्षम है। याचिकाकर्ता की उम्र प्रासंगिक समय में 24 वर्ष से अधिक बताई गई। इसलिए यह माना गया कि याचिकाकर्ता और लड़की दोनों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा परिभाषित विवाह योग्य आयु प्राप्त की है।
🟡 उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर और पक्षकारों के साथ-साथ दस्तावेजों के लिए पेश होने वाले वकील की दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने इसे लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए उपयुक्त मामला माना और तदनुसार आदेश दिया।
⚪ केस टाइटल:- मो. सोनू @ सोनू बनाम झारखंड राज्य व अन्य।
केस नंबर: सीआरएमपी नंबर 1171/2022 आदेश दिनांक: 25 नवंबर, 2022
कोरम : जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी
याचिकाकर्ता के वकील: अनुज कुमार त्रिवेदी, प्रेम मरदी और अब्दुल्ला उमर
उत्तरदाताओं के वकील: समन अहमद और जैद इमाम
LEGAL UPDATE IN HINDI
By – Hemant Wadia, Advocate , Ujjain
Mob. no. +91-9977665225, 8817769696
Email : hemant.wadia89@gmail.com
More Stories
नपाध्यक्ष हेमकुंवर मेवाड़ा ने सौंपे हितग्राहियों को संबल अनुग्रह सहायता राशि के स्वीकृति पत्र
दक्षिण पन्ना वन विभाग का ग्राम विकास में अभिनव प्रयास : सौर ऊर्जा से रोशन हुए 10 गाँव
आष्टा जूनियर त्रिकोणीय सीरीज लेदर बॉल क्रिकेट का हुआ समापन