

परशुराम ऋषि मुनि द्वारा कावड़ यात्रा प्रारंभ हुई थी।
मनावर से एस पाटीदार
मनावर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नर्मदा किनारे उत्तरी तट सेमल्दा से नर्मदा जल भरकर बंकनाथ अटल दरबार मंदिर में कावड़ यात्री यो जल चडाया। कावड यात्रा के प्रारंभ होने के संबंध में अनेक मान्यताऐ है। कावड़ यात्रा के सूत्रधार लंका पति रावण ही है, जो प्रतिदिन लंका से गंगोत्री जाकर जल भरकर कैलाश में शिव को लंका ले जाने हेतु मनाने के लिए अर्पण करते हैं ।प्राचीन काल में कावड़ यात्रा का प्रारंभ शिव के परम भक्त परशुराम जी ऋषि मुनि, पुरुषोत्तम श्री राम जी से जोड़ते हैं। कुछ लोगों का कहना कि श्रवण कुमार ने कावड़ यात्रा की परंपरा की शुरुआत की थी। भक्ति काल के प्रारंभ में यह परंपरा साधु -सन्यासी के द्वारा संपादित की जाती थी।इन्हे हठयोगी की श्रेणी में रखा जाता था।हठयोगी” हर- शिव”, बम भोले, हर -हर महादेव “के जय घोष के साथ कंधे पर कावड लेकर भगवान भोलेनाथ को जल अर्पण करने करने के लिए दुर्गम मार्ग पर निकल पड़ते हैं। कावड यात्रा श्रावण मास से प्रारंभ की जाती है जिसका श्रेय मिथिलान्चलन के लोगों को जाता है ।इन सभी का अतुलनीय योगदान है और उसी से आज यह परंपरा चली आ रही है ।श्रावण मास में प्रतिदिन हजारों की संख्या में पैदल चलकर लोग शिव के मंदिर मे जल अर्पण करते है जिससे अश्वमेध फल के बराबर फल प्राप्ति होती है । मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।परशुराम ऋषि मुनि की तरह ही बंकनाथ अटल दरबार कावड़ यात्रा विगत 12 वर्षों से चल रही है जिसमें पाटीदार समाज का अहम योगदान रहा है। परमार कालीन वंश मे पांच पाण्डवो द्वारा बनाया गया प्राचीनतम बंकनाथ अटल दरबार मंदिर की कायाकल्प करने वाले समाज सेवी पार्षद मुकेश मुकाती एवं समाज सेवी भागचंद पाटीदार की ओर से इस धार्मिक कार्य में अग्रणी अपनी सेवा देकर पुण्य कमा रहे हैं। उनके सहयोगी देवदास पाटीदार,मांगीलाल पाटीदार, संजय बैटरी, सुदामा पाटीदार, देवदास भाई ,राकेश जाटपुर, मुकेश जाटपुर, सोहन जी, दीपक जी ,राहुल पाटीदार,रूपचंद जी,राजेंद्र पाटीदार, राजेश पाटीदार, आदि कावडियो ने रास्ते मे नाश्ता,दूध, केले, शर्बत तथा सायंकाल मे दाल बाटी खिलाई गयी। रात्रि कालीन समय में भजन संध्या हुई।
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