संसार में रहकर व्यक्ति धर्मात्मा तो बन सकता है लेकिन परमात्मा नहीं, जहां तक संत नहीं पहुंच सकते वहां श्रावक पहुंचकर धर्म आराधना और महावीर का परचम लहराते हैं–मुनिश्री विनम्र सागर महाराज
आष्टा/किरण रांका
जहां तक संत नहीं पहुंच सकते वहां श्रावक पहुंचकर धर्म आराधना और महावीर का परचम लहरा देते हैं। आचार्य विद्यासागर महाराज ने जीवन के चार बड़े सुख बताए,जो घर पर बिस्तर में पड़े रहने से नहीं मिलते है। जबकि दोयम छोटे-छोटे सुख घरों पर मिल जाते हैं। साधना – आराधना के लिए मंदिर जी है।संयमी को क्या देगा और एक संयमी असंयमी से क्या लेगा। संसार में रहकर व्यक्ति धर्मात्मा तो बन सकता है ,लेकिन परमात्मा नहीं बन सकता है।
उक्त बातें संत शिरोमणि आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री विनम्र सागर महाराज ने श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आशीष वचन देते हुए कहीं। समाज के नरेन्द्र गंगवाल ने प्रवचन की जानकारी देते हुए बताया कि मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति को स्वयं पुरुषार्थ करना होगा।
लौकिक – पारलौकिक शिक्षा के लिए घर से बाहर निकलना होगा
मुनिश्री ने कहा कि गुरुदेव आचार्य विद्यासागर महाराज कहते थे कि चार बड़े सुख बिस्तर पर पड़े -पड़े नहीं मिलता है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपको लौकिक हो या पारलौकिक शिक्षा के लिए घर से बाहर ही जाना पड़ेगा। अर्थात शैक्षणिक संस्थानों व मंदिरों पर।सुख बिस्तर पर नहीं मिलता, प्रेम का सुख कहां मिलेगा, दीवारों को चाटने से प्रेम का सुख नहीं मिलता। तीसरा परोपकार का सुख दूसरों पर परोपकार करने पर मिलेगा।
साधुओं ने प्राण न्यौछावर कर दिए लेकिन धर्म नहीं छोड़ा
मुनिश्री विनम्र सागर महाराज ने कहा कि सालों पहले करीब दो हजार साधुओं को सूली पर चढ़ाया। उन्होंने प्राण न्यौछावर कर दिए,लेकिन धर्म नहीं छोड़ा।राहतगढ़ में सूली वहां की नदी के समीप बनी हुई है। सुदर्शन सेठ को सूली पर चढ़ना पड़ा। परोपकार से जैन धर्म मिला है। अनेक तपस्वियों के गर्म खून के कारण यह जिनालय,जैन धर्म मिला है।
पहले 8 घंटे के लिए संयुक्त रूप से बिस्तर मिलता था, आज 24 घंटे लग्जरी बिस्तर तैयार
मुनिश्री ने कहा पहले माता बिस्तर बिछा देती थी शाम के समय,लेकिन उठाना अपने को पड़ता था । पहले आठ घंटे के लिए बिस्तर मिलता था। लग्जरी कमरे में आज चौबीस घंटे बिस्तर बिछा रहता है।
प्रेम का सुख मोक्ष मार्ग पर मिलता है
मुनिश्री ने कहा प्रेम का सुख तो मोक्ष मार्ग पर मिलता व दिखता है। चौथा भक्ति का सुख जो घर पर नहीं मिलता है। साधना के माहौल के लिए मंदिर जी है।जो हमारी बातों को ध्यान से सुनता है, वह हमारे परिवार का सदस्य है, उसे बचाना हमारा दायित्व है। अगर भक्ति करते समय मन- ह्रदय एकाग्रचित्त रहेगा तो पुण्य अर्जित होता है ।आप अगर गूंगा बनकर भक्ति करते हैं तो भगवान बहरे है, एकाग्रता से भक्ति करोंगे तो भगवान भी प्रसन्न होंगे।सत्य की प्राप्ति एकांत में होती है।
जिसका पुण्य जिसके काम आएगा
मुनिश्री ने कहा कि आपके पुण्य से पूरा परिवार नहीं
तरता, परिवार के सदस्य को स्वयं पुण्य करना होगा।हम मिथ्यात्व से बचा सकते हैं। किसी भी साधु को स्वार्थ नहीं रहता और लोभ भी नहीं रहता है।एक असंयमी व्यक्ति संयमी को क्या देगा और एक संयमी असंयमी से क्या लेगा। मंदिर से कषाय रहित जीवन, शांति मिली उसके बदले में श्रद्धालु ने धन संपदा मंदिर में अर्पित की।आज फर्स्ट जनरेशन के साधु और श्रावक चलें गए।आज सेकंड जनरेशन पर जिम्मेदारी है ,उसमें आप और हम है।
भू-गर्भ से निकली एक प्रतिमा क्या संकेत देती है
मुनि विनम्र सागर महाराज ने कहा कि भू -गर्भ की निकली प्रतिमा बताती है कि यहां पर हमारी आराधना करने के लिए हजारों लोग थे। माता शत्रु और पिता बेहरी है जो अपने बच्चों को धर्म आराधना से नहीं जोड़ते हैं। मुनिश्री ने कहा मिथ्या दृष्टि को सम्यक दृष्टि बना सकते हैं ऐसे उपनयन संस्कार के आयोजन से ।
किसी भी श्रावक चलें गए।
किला मंदिर में संपन्न हुआ श्री पंचपरमेष्ठी विधान
श्री पंच परमेष्ठी विधान के आयोजक श्री राजेश कुमार जैन – इंजीनियर मयूर जैन बुधवारा थे।श्री पंचपरमेष्ठी महामण्डल विधान पूजन( संगीतमय) परम पूज्य मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज ससंघ के पावन सानिध्य में गुरुवार 4 जुलाई को प्रातः 7:30 बजे से प्रारंभ होकर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर जी में अर्ध्य अर्पित कर सम्पन्न हुआ।अधिक से अधिक संख्या में श्री जिनेंद्र देव की भक्ति आराधना में श्रावक – श्राविकाओं ने शामिल होकर पुण्य अर्जन किया।


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