कर्नल देव आनंद लोहामरोड़,
रक्षा विशेषज्ञ
जम्मू कश्मीर में16 अक्टूबर को नेशनल कांफ्रेंस की सरकार के गठन के उपरांत देखा गया है कि जम्मू कश्मीर में उग्रवादी हमले बढ़ गए हैं जिसमें विशेष कर छुट्टी पर आए सैनिक एवं प्रवासी नागरिकों को निशाना बनाया गया है। 20 अक्टूबर से अब तक पिछले 15 दिन में आठ आतंकी हमले हो चुके हैं जिसमे 9 आतंकवादी मार दिए गए है। इस प्रकार के बढ़ते आतंकी हमले और वो भी विदेशी आतंकवादियों द्वारा देशवासियों के लिए चिंता का विषय जरूर है।
कश्मीर मै 1 नवम्बर को बडगाम में हुए आतंकी हमले करने वाले आतंकी को सेना द्वारा ढेर किए जाने पर पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि दोशी को मारा नहीं जाना चाहिए था , बल्कि उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए, ताकि पता लगाया जा सके कि क्या उमर सरकार को अस्थिर करने का काम किसी एजेंसी को सौंपा गया है। इस तरह के बयान तीन बार मुख्यमंत्री रहे अलगाववादी पाकिस्तान समर्थक विचारधारा वाले नेता द्वारा पूर्व में भी कई बार दिए जा चुके हैं जो सुरक्षा बलों के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं ।
नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनते ही फारूक अब्दुल्ला चाहते हैं कि भारतीय सेना को आतंकवादियों से निपटने के लिए अलगाववादी विचारधारा समर्थकों से पूछ कर अपने संवैधानिक अधिकारों का निर्वाह्य करे तथा भारतीय सेना अपने सैनिकों को पाकिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों की परवाह किए बिना जिंदा पकड़ने का काम शुरू करे ? ऐसा ना कभी होने वाला है और सैद्धांतिक तौर पर सेना के ऑपरेशनल गतिविधियों में किसी भी प्रकार की ऐसी मानसिकता वाली दखलअंदाजी देश स्वीकार नहीं करेगा । देश भली भांति जानता है कि आतंकवादी भारतीय सेना या भारतीय सुरक्षा बलों के साथी नहीं है बल्कि दुश्मन है। आतंकवादी को पकड़ना है या ढेर किया जाना है यह फैसला सैनिक के अधिकार क्षेत्र में आता है और देशवासी भारतीय सुरक्षा बलों पर पूरा भरोसा करते है ।हमलों के लिए श्रीनगर सांसद रूहुल्लाह मेहदी ने केंद्र की भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराना तथा फारूक अब्दुल्ला द्वारा सरकार को अस्थिर करने की स्वतंत्र जांच जैसी मांगे भारतीय सुरक्षा बलों पर दबाव बनाने एवं अलगाववादियों का मनोबल बढ़ाने का एक प्रयास लगता है जिसका पूरे देश को विरोध करना चाहिए।
हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का पूरा-पूरा समर्थन है। यह दुर्भाग्य एवं चिंता की बात है कि कश्मीर के कुछ अलगाववादी राजनीतिक नेता जोधपुर में पाकिस्तान से बातचीत करने के पक्षधर होते थे वह अब पाकिस्तान की जगह देश की एजेंसीज का हाथ मान रहे हैं । आतंकवादी यकीनन भारत के सैनिक या भारतीय सुरक्षा बलों से पूछ कर हमले नहीं करता और जब भी हमले करता है। वह छुप कर आम नागरिकों को ढाल बनाते हुए हमले करता है। वारदात के बाद उस स्थान को छोड़ने की कोशिश करता है । आतंकवादियों से लड़ाई एवं उनको खत्म करना राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इस पर किसी भी प्रकार की राजनीति करना उचित नहीं है।
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