मुरैना –
*मुरैना जिले की ऐतिहासिक धरोहर मितावली का चौसठ योगिनी मंदिर यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल -: मोनिका माहोर
ग्वालियर से लगभग 40 किलोमीटर दूर, मुरैना जिले के पड़ावली क्षेत्र में स्थित मितावली का चौसठ योगिनी मंदिर भारतीय स्थापत्य कला और धार्मिक परंपराओं का एक अद्भुत उदाहरण है।यह मंदिर अपने अद्वितीय गोलाकार स्वरूप और ऐतिहासिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, यह मंदिर 1323 ईस्वी (विक्रम संवत 1383) के एक शिलालेख में उल्लिखित है और इसका निर्माण कच्छपघात वंश के राजा देवपाल (1055-1075 ई) द्वारा करवाया गया था। मंदिर की संरचना और डिजाइन चौसठ योगिनी मंदिर एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है और लगभग 130 फीट व्यास में फैला हुआ है। यह मंदिर अपने अनूठे गोलाकार स्वरूप के कारण भारतीय संसद भवन के डिजाइन से मिलता-जुलता प्रतीत होता है, हालांकि इसे लेकर ठोस ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। इस मंदिर की परिधि में 64 छोटे मंदिर हैं, जिनमें प्रत्येक मंदिर एक योगिनी को समर्पित है। योगिनियाँ तांत्रिक परंपरा में शक्तिशाली देवियाँ मानी जाती हैं और इन्हें शक्ति (देवी पार्वती) के विभिन्न रूपों के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के केंद्र में एक बड़ा मंडप (मुख्य गर्भगृह) स्थित है, जिसमें एक शिवलिंग स्थापित है। इस कारण इसे एकत्तरसो महादेव मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि सूर्योदय से सूर्यास्त तक सूर्य की किरणें इसके विभिन्न भागों को स्पर्श करती रहती हैं।
*धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व*
ऐसा माना जाता है कि मितावली का यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि ज्योतिष, गणित और सौर प्रणाली की शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र भी था। मंदिर की संरचना और इसकी गोलाकार बनावट यह संकेत देती है कि यहां खगोलशास्त्र और तांत्रिक परंपराओं पर आधारित गूढ़शिक्षाएं दी जाती थीं।
*मंदिर से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भ*
यह मंदिर 10वीं और 11वीं शताब्दी के दौरान कलचुरी राजा युवराजदेव के शासनकाल में भी एक शक्तिशाली धार्मिक केंद्र रहा। इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान और योगिनी पूजा से जुड़े अनुष्ठान संपन्न होते थे, जो शक्ति उपासना का अभिन्न हिस्सा माने जाते हैं। इसकी भव्यता और निर्माण शैली यह दर्शाती है कि यह मंदिर उस समय के गुप्त ज्ञान और वास्तुकला के उच्चतम स्तर को प्रदर्शित करता है।
*पर्यटन और सांस्कृतिक महत्व*
आज, यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, बल्कि इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर से आसपास के खेतों, जंगलों और नर्मदा नदी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है, जो इसे प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर बनाता है।
*कैसे पहुंचे*
मितावली का चौसठ योगिनी मंदिर ग्वालियर से लगभग 40 किमी और मुरैना से 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता हैं।
*यूनेस्को की अस्थायी सूची क्या है*
अस्थायी सूची उन स्थलों की एक सूची होती है, जिन्हें कोई देश यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) को संभावित विश्व धरोहर स्थलों के रूप में प्रस्तुत करता है। इन स्थलों का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक या प्राकृतिक महत्व होता है और उन्हें विश्व धरोहर सूची में शामिल करने से पहले गहन मूल्यांकन किया जाता है।
*अस्थायी सूची का महत्व*
*विश्व धरोहर बनने की दिशा में पहला कदम*
किसी भी स्थल को विश्व धरोहर सूची में शामिल होने से पहले कम से कम एक वर्ष तक अस्थायी सूची में रहना आवश्यक होता है। इससे यूनेस्को यह मूल्यांकन कर सकता है कि स्थल की असाधारण सार्वभौमिक मूल्य है या नहीं।
*वैश्विक पहचान और प्रतिष्ठा*
अस्थायी सूची में शामिल होने से किसी स्थल की वैश्विक स्तर पर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक या प्राकृतिक महत्व को पहचान मिलती है। यह इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और संरक्षण विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित करता है, जिससे अधिक शोध और सुरक्षा उपाय किए जाते हैं।
*पर्यटन और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा*
भले ही कोई स्थल आधिकारिक रूप से विश्व धरोहर स्थल न बना हो, लेकिन अस्थायी सूची में शामिल होने से भी वहां पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगती है। यह स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार और आर्थिक विकास के अवसर पैदा कर सकता है।
*वित्तीय सहायता और संरक्षण के अवसर*
अस्थायी सूची में शामिल होने के बाद, कोई स्थल अंतरराष्ट्रीय अनुदान (निदकपदह) और यूनेस्को के संरक्षण कार्यक्रमों के लिए पात्र बन सकता है। यह सरकार और स्थानीय संगठनों को बेहतर संरक्षण उपाय अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
*संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा*
विश्व धरोहर स्थल बनने के लिए, किसी स्थल को यह साबित करना होता है कि उसके पास उचित प्रबंधन और संरक्षण योजनाएं हैं। इससे शहरीकरण, पर्यावरणीय खतरों या उपेक्षा से होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिलती है।
*अस्थायी सूची में शामिल होने के बाद की प्रक्रिया*
यूनेस्को की विशेषज्ञ संस्थाएँ, जैसे कि आईसीओएमओएस (अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद) या आईयूसीएन (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ), स्थल का मूल्यांकन करती हैं। यदि स्थल सभी आवश्यक मानकों को पूरा करता है, तो संबंधित देश नामांकन प्रस्तुत करता है। इसके बाद, यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति इसकी समीक्षा कर इसे आधिकारिक विश्व धरोहर स्थल घोषित कर सकती है।
दीपक सिंह गुर्जर की रिपोर्ट
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