,साधना कभी बेकार नहीं होती; इसलिए हमें उत्साह के साथ कर्त्तव्य कर्म करते हुए मनुष्य जीवन के परम् लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए। अर्जुन ने जब भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि साधना पथ से भटके हुए साधक का क्या होता है? कहीं वह बादलों की तरह बिखर तो नहीं जाता?
तब भगवान ने कहा कि योगभ्रष्ट साधक उचित लोकों से होते हुए श्रीमान के घर में जन्म लेकर अपना साधना क्रम आगे बढ़ाता है, इसी प्रकार वैराग्यवान् भी ज्ञानियों के कुल में जन्म लेकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। हमें भी निराशा को पास नहीं फटकने देना चाहिए। मन को वश में करना वायु को रोकने के समान कठिन है परन्तु सतत् अभ्यास और वैराग्य से मन पर नियंत्रण संभव है।भगवान भाव के भूखे है बिना भाव के सब बेकार है। ध्यान के अभ्यास से सा…
गुना से मनोज शर्मा की रिपोर्ट
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