महाराष्ट्र -:
मराठी भाषा विभाग, महाराष्ट्र शासन व महाराष्ट्र राज्य साहित्य और संस्कृती मंडळ मुंबई अनुदानित

वनवैभव शिक्षण मंडळ अहेरी द्वारा संचालित महात्मा ज्योतिबा फुले कला महाविद्यालय आष्टी, जि. गडचिरोली आयोजित आदिवासी साहित्य सम्मेलन….
जंगलों और प्रकृति से जुड़ाव, अपनी संस्कृति और पहचान का जश्न, शोषण के खिलाफ संघर्ष, और ‘जय जोहार’ जैसे नारे जो आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की बात करते हैं, जैसे “धरती माँ की संतान हैं हम, प्रकृति के रक्षक महान हैं हम” “संस्कृति हमारी शान है, आदिवासी होने पर गर्व है”. ये संदेश मुख्यधारा से हटकर आदिवासी भाषाओं और जीवनशैली को महत्व देते हैं, और साहित्य को आवाज़ उठाने का एक माध्यम मानते हैं.
आदिवासी साहित्य सम्मेलन मे अपनी जड़ों से जुड़ें, अपनी संस्कृति का उत्सव और अपनी आवाज़ को बुलंद करें।” आव्हाहन किया गया l
“हम धरती के मूल मालिक हैं, प्रकृति के रक्षक हैं। इस आदिवासी साहित्य सम्मेलन में अपनी विरासत और अधिकारों की बात की गई l जय जोहार!” के नारो से परिसर गुंज उठा l
“आदिवासी साहित्य सिर्फ़ शब्द नहीं, हमारी पहचान है, हमारा संघर्ष है। इस सम्मेलन में अपनी कहानियों, कविताओं और दर्शन को आदिवासी लोगो द्वारा साझा किया गया ।”
“जंगल है तो जीवन है, आदिवासी है तो संस्कृति है। इस सम्मेलन के माध्यम से अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाने का संदेश दिया गया ।
“आदिवासी साहित्य सम्मेलन: अपनी माटी, अपनी भाषा, अपनी पहचान का महाकुंभ! अपनी जड़ों की बात, सबके साथ।” लोगो को वनवैभव शिक्षण संस्था के संस्थापक श्री बबलू भैया हकीम द्वारा आयोजित सभा मे संबोधीत करते हुवे
“आदिवासी हिंदू नहीं हैं,” “आदिवासी ही देश की आत्मा हैं”. “धरती माँ की संतान,” “प्रकृति के रक्षक”.अपनी जमीन और हकों के लिए आवाज़ उठाना.”जय जोहार,” “जय आदिवासी,” आदिवासी भाषाओं और वाचिक परंपराओं को सम्मान
इस कार्यक्रम पर वनवैभव शिक्षण संस्था के बबलू भैया हकीम, श्रीमती शाहीन हकीम, लीना शेख, शेख सर नाट्य कलावंत परशुराम खुणे और प्रतिष्टीत महिला सरपंच श्रीमती बेबीताई बुरांडे, सामाजिक कार्यकर्ता, टीचर स्टाफ गाव के लोगो उपस्थिती मे शांतता पूर्ण संपन्न हुवा l
महेश पांडुरंग शेंडे की रिपोर्ट…

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