नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की,,भगवान की शरण में जाने पर उद्धार होता है महंत रामकिशोर दास शास्त्री,,,
पोरसा,,,,,,,,,
, नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं पर जमकर झूमे भक्त,,,,,,,,,,
शीतला माता मंदिर साठोंपर श्रीमद् भागवत कथा में कथा व्यास महंत रामकिशोर दास शास्त्री जी ने श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया कथा क्रम आगे बढ़ाते हुए कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा की जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। नंद बाबा के घर में कन्हैया के जन्म की खबर सुन कर पूरा गोकुल झूम उठा,श्रीशास्त्री जी ने कथा का वृतांत बताते हुए पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए कहा की वह कंस द्वारा भेजी गई एक राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। पुतना कृष्ण को विषपान कराने के लिए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची थी। जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, क्योकि जब कोई एक बार भगवान की शरण में आ जाता है तो उसका उद्धार निश्चित है। परन्तु भगवान को दिखावा, छलावा पसंद नहीं हैं आप जैसे हो वैसे आओ। रावण भी भगवान श्री राम के सामने आया परन्तु छल से नहीं शत्रु बन कर, कंस भी सामने शत्रु बन आया तब भगवान ने उनका उद्दार किया। लेकिन जब पूतना और शूपर्णखा आई तो प्रभु ने आखे फेर ली क्योंकि वो मित्र के भेष रख कर शत्रुता निभाने आई थी। मौका पाकर पुतना ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया।
कथा में आंगे श्री शास्त्री जी ने कहा कि भगवान जो भी लीला करते हैं वह अपने भक्तों के कल्याण या उनकी इच्छापूर्ति के लिए करते हैं। श्रीकृष्ण ने विचार किया कि मुझमें शुद्ध सत्त्वगुण ही रहता है, पर आगे अनेक राक्षसों का संहार करना है। अत: दुष्टों के दमन के लिए रजोगुण की आवश्यकताहै। इसलिए उनने व्रज की रज के रूप में रजोगुण का संग्रह किया,कथा व्यास ने कहा पृथ्वी का एक नाम ‘रसा’ है। श्रीकृष्ण ने सोचा कि सब रस तो ले चुका हूँ अब रसा (पृथ्वी) रस का आस्वादन करू भगवान ने जब मिट्टी का रसास्वादन किया तो अन्य बाल गोपाल ने इसकी शिकायत माता यशोदा से की तब माता यशोदा ने उन्हें डांटा तब श्रीकृष्ण ने कहा–‘मैया ! मैंने माटी कहां खायी है।’ यशोदामैया ने कहा कि अकेले में खायी है। श्रीकृष्ण ने कहा कि अकेले में खायी है तो किसने देखा? यशोदामैया ने कहा–ग्वालों ने देखा। श्रीकृष्ण ने मैया से कहा–’तू इनको बड़ा सत्यवादी मानती है तो मेरा मुंह तुम्हारे सामने है। तुझे विश्वास न हो तो मेरा मुख देख ले।’‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। भगवान के साथ ऐश्वर्यशक्ति सदा रहती है। उसने सोचा कि यदि हमारे स्वामी के मुंह में माटी निकल आयी तो यशोदामैया उनको मारेंगी और यदि माटी नहीं निकली तो दाऊ दादा पीटेंगे। इसलिए ऐसी कोई माया प्रकट करनी चाहिए जिससे माता व दाऊ दादा दोनों इधर-उधर हों जाएं और मैं अपने स्वामी को बीच के रास्ते से निकाल ले जाऊं। श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदाजी ने देखा कि मुख में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। आकाश, दिशाएं, पहाड़, द्वीप,समुद्रों के सहित सारी पृथ्वी, बहने वाली वायु, वैद्युत, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण ज्योतिर्मण्डल, जल, तेज अर्थात्प्रकृति, महतत्त्व, अहंकार, देवगण, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, त्रिगुण, जीव, काल, कर्म, प्रारब्ध आदि तत्त्व भी मूर्त दिखने लगे। कन्हैया के मुख में पूरा त्रिभुवन था, उसमें जम्बूद्वीप था, उसमें भारतवर्ष था और उसमें यह ब्रज, ब्रज में नन्दबाबा का घर, घर में भी यशोदा और वह भी श्रीकृष्ण का हाथ पकड़े थी तब बड़ा विस्मय माता को हुआ अब श्रीकृष्ण ने देखा कि मैया ने तो मेरा असली तत्त्व ही पहचान लिया है उन्होंने अपनी माया से माता की स्मृति को भुला दिया जिससे उनको लिखा हुआ याद ना रहे कथा के अंत में भागवत जी की आरती उतारी गई,,,
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