जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वर्ष 2005 से nhm के तहत क्षेत्रीय जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए आशा और सहयोगी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई है।लेकिन कोविड-19 के नाम पर सबसे निचले स्तर के इन जमीनी कार्यकर्ताओं को बगैर वेतन के ही कभी भी कहीं भी ड्यूटी देने के लिए आदेशित कर दबाव बनाया जाता है जिसमें सर्वप्रथम कार्यवाही का भय दिखाया जाता है और नौकरी से निकाले जाने तक की धमकी भी दी जाती है। अभी वर्तमान में स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोविड-19 वेक्सीनेशन के लिए कॉल सेंटर चलाए जा रहे हैं जिनमें आशा एवं सहयोगिनी कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाई जा रही है इस ड्यूटी के दौरान एक कार्यकर्ता को 1 दिन में 100 से अधिक हितग्राहियों को वैक्सीन की जानकारी देना है और वेक्सीन लगे हुई व्यक्ति की जानकारी लेना है इसके लिए कार्यकर्ता को स्वयं के निजी नंबर से खुद का बैलेंस करवा कर हितग्राहियों को फोन करना है।यही नहीं खुद का किराया लगाकर कॉल सेंटर तक पहुंचना है कॉल सेंटर की घर से दूरी 30 से 40 किलोमीटर तक की है इस दौरान आने जाने में किसी के ₹100 व किसी के ₹150 तक खर्च हो रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है की कॉल सेंटर पर कार्य करने के लिए इन कार्यकर्ताओं को ₹200 का बैलेंस और ₹3000 से ₹4000 तक किराए में खर्च करने होंगे। और यह सारे कार्य निशुल्क सेवा के रूप में इन कार्यकर्ताओं से करवाए जा रहे हैं।न करने की स्थिति में कार्यवाही और नौकरी से निकाले जाने की धमकी दी जा रही है। यह भली-भांति ज्ञात है कि कोविड-19 से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली आशा एवं आशा सहयोगिनी कार्यकर्ताओं को ना कोई मास्क दिया गया ना ही सैनिटाइजर दिया गया और ना ही आज तक कोई क्लब्स दिए गए और वैक्सीनेशन में काम करने के लिए ₹200 का भुगतान और ₹100 चाय और नाश्ते के लिए दिए जाने थे वह भी आज तक नहीं दिए गए हैं जिसके कारण आशा और सहयोगनी कार्यकर्ताओं के द्वारा कई बार विरोध स्वरूप धरना प्रदर्शन एवं हड़ताल भी की जा चुकी है। विभागीय अधिकारियों सहित प्रशासनिक अधिकारी इस मामले पर आंख बंद किए हुए हैं और लगातार हर प्रकार के कार्य में इस अमले की भूमिका और दायित्व बढ़ाते चले जा रहे हैं।कॉल सेंटर पर काम करने के बहुत गम्भीर दुष्परिणाम सामने नजर आ रहे हैं जिन हितग्राहियों को इन महिला कार्यकर्ताओं के द्वारा फोन किए जाते हैं उनमें से कुछ लोगों के द्वारा अपशब्द और अभद्रता की भाषा का प्रयोग किया जाता है बात यहीं तक होती तब भी यह महिला कार्यकर्ता सहन कर सकती थी लेकिन कुछ मनचले प्रवृत्ति के लोगों द्वारा इन महिला कार्यकर्ताओं को देर रात्रि तक फोन करके परेशान किया जाता है एवं व्हाट्सएप पर अनर्गल मैसेज भेजे जाते हैं जब इस घटना का संज्ञान उच्च अधिकारियों को कराया गया तो उनके द्वारा समझाइश दी गई कि ऐसे नंबरों को आप लोग ब्लॉक कर दें लेकिन विरुद्ध में आज तक कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की गई यह बहुत ही गलत और गैर जिम्मेदाराना रवैया है अधिकारियों का एवं प्रशासन का।यदि इन महिला कार्यकर्ताओं के साथ कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो इसके लिए दोषी कौन होगा विभाग या प्रशासन। अगर इन से कॉल सेंटर का कार्य कराना ही है तो इन्हें विभाग की ओर से नई सिम कार्ड प्रदान किए जाने चाहिए थे एवं उन में बैलेंस करवाना चाहिए था और लिखित तौर पर यह साफ बताना चाहिए कि कॉल सेंटर पर कार्य करने के बदले कितनी प्रोत्साहन राशि इनको प्रदान की जाएगी जिस प्रकार लिखित आदेश देकर कॉल सेंटर पर ड्यूटी लगाई गई है यदि फोन हीं लगाने का कार्य है तो यह कार्य तो घर बैठकर भी किया जा सकता है इसके लिए ₹100 से ₹150 तक खर्च कराने की क्या आवश्यकता है। इन महिला कार्यकर्ताओं को सुबह 9:00 बजे से 5:00 बजे तक संस्था पर भूखे प्यासे बिठा कर कार्य करवाया जाता है ना हीं भोजन का प्रबंध है ना ही पीने के पानी का प्रबंध है और ना ही अलग से महिला कार्यकर्ताओं के लिए महिला प्रसाधन की व्यवस्था है यदि यह महिला कार्यकर्ता अपने घर से लाया हुआ भोजन भी करना चाहे तो कहां बैठे। आशा और सहयोगिनी कार्यकर्ताओं के लिए आशा रेस्ट रूम जो कि, प्रत्येक स्वास्थ्य संस्था पर होने के आदेश वर्ष 2018 में जारी किए गए थे वह आशा रेस्ट रूम भी इनके लिए आज तक नहीं खोला गया है।
कभी भी समझ नहीं आता है कि, आखिर क्या मंशा है शासन की और प्रशासन की भी इन महिला कार्यकर्ताओं के साथ बंधुआ मजदूरों की तरह व्यवहार क्यों किया जाता है आखिर ऐसी भी क्या दुश्मनी है जिसके कारण फ्री में काम भी करवाएंगे घर का पैसा भी खर्च करवाएंगे और जो मुसीबत आएगी उसमें तमाशबीन बनकर तमाशा भी देखेंगे। प्रोत्साहन राशि देना बहुत आवश्यक है साथ ही उससे भी अधिक आवश्यक है इन महिला कार्यकर्ताओं के सम्मान, सुरक्षा, अधिकार,और गरिमा की गारंटी सुनिश्चित करना। लेकिन विडंबना यह है कि पूरे भिंड जिले में प्रोत्साहन पर चर्चा करना तो बहुत दूर की बात है फ्री में काम करवाने के साथ-साथ सम्मान और सुरक्षा के लिए भी कोई रणनीति या गाइडलाइन नहीं बनाई गई है लगभग 2 वर्ष पूर्ण होने पर है लेकिन आज तक कोविड-19 के नाम पर इन महिला कार्यकर्ताओं से निशुल्क कार्य कराया जाकर, बगैर किसी सुरक्षा संसाधन के कार्य कराया जाकर अमानवीय शोषण और अत्याचार किया जा रहा है जिसके लिए साफ तौर पर स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार है यदि इस ओर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो किसी बड़ी घटना के घटने की संभावना बिल्कुल बनी हुई है।सरकारी काम के लिए हर संस्था को सरकारी फोन और बेलेंस प्रदान किए गए हैं तो फिर इन कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाकर उनके निजी नंबरों का जबरन उपयोग क्यों करवाया जा रहा है??? प्रशासन की क्या मंशा है??? क्या कोई अधिकारी अपनी पत्नी या बेटी के फोन से इन हितग्राहियों को फोन करा कर जानकारी देने का समाज सेवा करवाने की दम रखते हैं यदि नहीं तो फिर इन कार्यकर्ताओं के साथ नौकरी के नाम पर इतना बड़ा खिलवाड़ क्यों???
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