Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

June 2025
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
June 18, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

बी.एल.सूर्यवंशी रिपोर्टर

जिले की बदनावर तहसील के अंतर्गत ग्राम बेगन्दा में वन्यजीव नीलगाय का आतंक तेजी से क्षेत्र में बढ़ रहा है। करीब 20 से 30 के झुंड में जिस खेत में घुस जाते हैं। वहां की पूरी फसल चौपट कर देते है। उधर लेबड़-नायगांव फोरलेन को क्रास करने के दौरान वाहन चालकों को भी दुर्घटनाग्रस्त कर देती है। खेतों में किसानों पर कभी-कभी हमला भी कर देते हैं। सक्षम और उद्यानिकी खेती करने वाले किसान जालीदार तारों की बागड़ लगा रहे हैं। तो कुछ झटका यंत्र का प्रयोग भी कर रहे हैं। लेकिन अधिकांश किसानों की फसलें इनसे असुरक्षित ही रहती हैं। पिछले एक दशक में नीलगाय की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। यदि समय रहते इनकी रोकथाम नहीं की जाती है। तो किसानों को खेती करना मुश्किल हो जाएगा। एक दशक पहले कुछ नीलगाय क्षेत्र में यदा-कदा दिखाई देती थी। हिरण जैसी दिखने वाले इस पशु को देखकर शुरू में किसानों को कोतुहल होता था। लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या में वृद्धि होती गई। और 10 से 12 साल में ही यह किसानों के लिए सिरदर्द साबित होने लगी हैं।
फलन से पहले ही झुंड ने फसल रौंदी
हाल ही में बेगंदा के किसान राजेंद्रसिंह डोडिया ने 4 बीघा मटर की फसल लगाई थी। फलन से पहले ही नीलगाय के झुंड ने पूरी फसल को रौंद डाली है। किसान को करीब 50 हजार का घाटा उठाकर दोबारा बोवनी करना पड़ी हैं। इसके समीप ही ग्राम छोटा कठोडिया के किसान लाखनसिंह डोडिया की मटर की फसल भी नीलगाय के झुंड ने तहस-नहस कर दी हैं। उन्होंने इनके डर से मटर की बजाय लहसुन की बोवनी की है। बलवंतसिंह की मटर की फसल भी रौंद दी गई है। किसान इनसे बचाव के लिए खेतो की मेड़ पर बांस बल्ली लगाकर तार लगाने की जुगाड़ में लगे हैं। गांव में रोज रात में किसान जंगल में आतिशबाजी कर नीलगाय को भगाने के जतन करते हैं। हालांकि शासन द्वारा किसानों को तार फेंसिंग करने के संबंध में कोई अनुदान राशि का प्रावधान नहीं है। किसानों का कहना कि खेतों की मेड़ पर नीलगाय से सुरक्षा के लिए तार फेंसिंग व जाली लगाने का अनुदान का प्रावधान कर देना चाहिए। जिससे छोटे किसान भी अपनी फसलों को नीलगाय के आतंक से बचा सकते हैं।
हर तीसरे चौथे खेतों में नजर आती है नीलगाय
नीलगाय को स्थानीय किसान रोजड़ा कहते हैं। इन्हें तुवर और मक्का की फसल अधिक प्रिय है। इस कारण क्षेत्र के अधिकांश किसानों ने मक्का और तुवर लगाना ही बंद कर दिया है। इनकी आबादी इतनी अधिक हो गई हैं कि हर तीसरे चौथे खेत में यह दिखाई देने लगी है। पहले एक-दो तहसील तक नीलगाय सीमित थी। जो अब रतलाम,उज्जैन,धार,झाबुआ और इंदौर की सीमावर्ती तहसीलों तक दिखने लगी है। जिस खेत में नीलगाय का झुंड इकट्ठा हो जाता है। वहां पर व्यापक स्तर पर नुकसान कर देती है। गाय शब्द जुड़ा होने और संरक्षित वन्य प्राणी होने के कारण इसका शिकार भी नहीं किया जाता है।
मुआवजे का प्रावधान नहीं
नुकसानी पर शासन-प्रशासन द्वारा उचित मुआवजे का प्रावधान नहीं है। वन विभाग मुआवजे के प्रकरण लेता भी है। तो कार्रवाई इतनी जटिल है कि क्षेत्र के किसी भी किसान को अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिल पाया है। पीड़ित किसानों ने स्थानीय विधायक, सांसद से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक अपनी व्यथा पहुंचा दी हैं। सीएम हेल्पलाइन पर नीलगाय से हुई नुकसानी का शिकायतो का अंबार लग चुका है। लेकिन संगठित आवाज या प्रदर्शन नहीं होने के कारण सरकार ने अभी तक कोई ठोस योजना या कार्यवाही नहीं की हैं।