मुकेश अम्बे रिपोर्टर



ग्राम घुसगांव में समस्त ग्राम वासियों के सहयोग द्वारा चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन पं. तिवारी ने कहा जीवात्मा को मनुष्य शरीर परमात्मा को प्राप्त करने हेतु मिला है। सच्चे संत , सतगुरू सच्ची भक्ति का उपदेश करते हैं।वेद शास्त्र, उपनिषद, रामायण, गीता, भागवत पढ़कर सुनकर अपने जीवन को धन्य बनाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। पूण्य कभी किसी को दगा नहीं देता है और पाप कभी किसी का सगा नहीं होता है। कर्म बीज के समान होता है जैसा बोओगे,वैसा काटोगे।
श्रीमद्भागवत के आचार्य महामुनि सतगुरु श्री शुकदेव जी महाराज ने सम्राट परीक्षित जी को समझाया प्रत्येक मनुष्य मात्र को परमात्मा के ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास अवश्य ही करना चाहिए।इसके लिए कुछ समय निकालकर स्वाध्याय, सत्संग ,जप ,तप , ध्यान,संयम , त्याग अवश्य ही करना चाहिए। सत्संग दिव्य जीवन का मार्गदर्शन प्रदान करता है। सत्संग की महिमा है साधारण मनुष्य के जीवन में भी दिव्यता आ जाती है। परमात्मा कहीं और नही है, जहां तुम हो वहीं उसका अनुभव हो सकता है। सच्ची श्रद्धा, भक्ति, विश्वास के साथ दृढ़तापूर्वक साधना, उपासना सदाचार शिष्टाचार का पालन करतें रहे।जितने तुम एकांत में रहते हो ,उतने शांत रहते हो।जो अप्राप्त हे ,उसे पा लेना कठिन नहीं है, परन्तु जो प्राप्त हे , उसे खोकर फिर प्राप्त करना अत्यथिक कठिन हो जाएगा। संसार की नश्वर वस्तुओं को फिर से वापस पाया भी जा सकता है लेकिन दिव्य,देव दुर्लभ मनुष्य शरीर दोबारा प्राप्त करना बहुत कठीन हो जाएगा। संसार में कोई भी मनुष्य सर्व गुण संपन्न नहीं होता है, इसलिए कुछ कमियां को नजरंदाज करते हुए अपने घर परिवार, रिश्ते निभाते हुए जीवन बिताए। संसार में मनुष्य धन की कमी से दुखी नहीं है, प्रभु ध्यान की कमी से दुखी हैं और रहेगा ।
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