बाला प्रसाद साहू रिपोर्टर


*लोकेशन सतना /उचेहरा*
बाला प्रसाद साहू
जिले के पठारी अंचल में सरकारी स्कूलों की हालत बदतर,शहरी विद्यालयों में वर्षों से जमे पद से अधिक शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ शिक्षक शहर से करते हैं अप डाउन।
सतना। सरकार भले ही शिक्षा का स्तर सुधारने के लाभ दावे करे पर जमीनी स्तर पर उसके दावों का कोई प्रभाव नहीं दिख रहा। हालत यह है की शहरी क्षेत्र के विद्यालयों में स्वीकृत पद से अधिक स्टाफ है तो ग्रामीण क्षेत्र में आधे से अधिक पद खाली पड़े हैं। जिले के पठारी क्षेत्र के विद्यालयों की हालत तो और दयनीय है। उचेहरा के आदिवासी बाहुल्य परसमनियां पठार में तो कोई जाना ही नहीं चाहता। जो शिक्षक वहां पदस्थ भी हैं वे रोजाना शहर से अपडाउन करते हैं जिहाजा पढ़ाई के स्थान पर उनका समय शाम होने का इंतजार करते बीतता है। यहां कई विद्यालयों में तो पढ़ाने के लिए नहीं बल्कि शिक्षक बच्चों को ताके रखने के लिए हैं।
इन्हीं में से एक पिपरिया विद्यालय है जहां प्राथमिक और माध्यमिक में 200 बच्चों में सिर्फ 2 शिक्षकों ही है इतने छात्रों की संख्या में केवल 2 शिक्षक होने से उनका शैक्षणिक भविष्य दांव पर लगा है। आने वाले दिनों में यहां के शिक्षा के स्तर और परीक्षा परिणामों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है । बच्चों का भविष्य कितना उज्जवल होगा। विद्यालय में शिक्षक नहीं होने से अभिभावक अपने बच्चों को मजबूरी में निजी विद्यालयों की ओर रुख करने लगे हैं। विद्यालय में पदस्थ शिक्षक लाखन सिंह ,और संतलाल प्रजापति है एक शिक्षक पर स्कूल के पूरे रिकार्ड का संधारण का भी दायित्व है और बैठकों में भी जाना पड़ता है। यदि किसी दिन आवश्यक कार्य अथवा बीमारी के कारण छुट्टी लेनी पड़ती है तो ऐसे में उस दिन स्कूल को बंद करने की नौबत तक आ जाती है। कुल मिलाकर यह विद्यालय रामभरोसे चल रहा हैं।
*समूचे क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे*
बहरहाल यह तो एक बानगी है यहां पहाड़ी अंचल में केवल उचेहरा ब्लाक के ही करीब 84 गाव आते हैं अगर नागौद को मिलाया जाए तो डेढ सैकड़ा गांव हो जाते हैं। और इन गांवों से मुख्यालय काफी दूरी होने से अधिकारियों का बहुत ही कम निरीक्षण होता है । या कहे कि बड़े अधिकारी कार्यालय के चेम्बर का मोह नहीं छोड़ पाते उन्हें भ्रमण करना काफी बेगारी वाला कार्य लगता है। स्कूलो में छुट्टी के जैसे हालत ही रहते हैं इसका कारण है की शिक्षक देरी से पहुंचते हैं। जिनमे अधिकांशतः शिक्षक सतना ऊँचेहरा,नागौद, मैहर ,जैसे शहरों में रहते हैं मोटरसाइकल से आवागमन कर स्कूल पहुंच दस्तखत करते हैं व कुछ ही घण्टो में पुनः जाने की तैयारी बना लेते हैं
*इनका कहना है*
1- शिक्षा विभाग का पिपरिया स्कूल के प्रति कोई ध्यान नहीं दिख रहा है। शिक्षक की कमी होने से एक ही कमरे में एक साथ 1 से 5 तक लगती है ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना व्यावहारिक रूप से असंभव है।
*जीतेंद्र दाहिया- सरपंच ग्राम पंचायत पिपरिया*
2- इस संबंध में उचेहरा जनपद शिक्षा अधिकारी को लिखित रूप से अवगत कराया गया है
*लाखन सिंह – पिपरिया स्कूल शिक्षक*
3- ऐसा लगता है जैसे सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्राथमिक स्तर की शिक्षा को खत्म करना चाहती है। जानबूझकर शिक्षकों की कमी की जा रही है जिससे निजीकरण को बढ़ावा दिया जा सके।
*सुरेंद्र दाहिया- सामाजिक कार्यकर्ता*
4- इस संबंध में विकासखंड शिक्षाधिकारी द्वारा जानकारी मिली है अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति करने हेतु पोर्टल में रिक्ति डाली गई है
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