
आशीष जौहरी के साथ राजू देवड़ा की रिपोर्ट
श्राद्ध करने से पितरों की मुक्ति होती है और उनके द्वारा हमे आशीर्वाद मिलता है।
मनावर
भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाना चाहिए ।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरो को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री योगेश जी महाराज एवम श्री सुधाकर जी महाराज ने बताया कि भाद्र शुक्ल पक्ष की प्रथम दिवस पर पूर्णिमा शनिवार को बालीपुर में श्राद्ध तर्पण हुआ ।श्री श्री 1008 श्री गजानन जी महाराज श्री अंबिका आश्रम, श्रीबालीपुर धाम में माता कस्तुरी देवीजी एवम पिता घनश्याम जी पहाड़े का 72 वर्षो तक श्राद्ध, तर्पण,पिंडदान किया था । उसी के अनुरूप योगेश जी महाराज , विगत 15 वर्षो से बाबा जी का श्राद्ध कर रहे हैं।
मार्कंडेय ऋषि मुनि के अनुसार श्राद्ध कर्म करना अति आवश्यक है। भारतीय सनातन संस्कृति में श्राद्ध का विशेष महत्व है ।श्राद्धकर्म करने से परिजन को दीर्घायु ,आरोग्य ,धन, संपत्ति, स्वर्ग से सुख की प्राप्ति होती है ।श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र जीवन में पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है ।माकणडेय ऋषि कहते हैं कि पितृ सुक्ष्म स्वरूप में श्राद्ध तिथि को
अपनी संतान के घर के द्वार पर सूर्योदय से ही आकर बैठ जाते हैं ,और उन्हें उम्मीद रहती है कि उनके पुत्र -पौत्र भोजन से तृप्त करवाएंगे ,किंतु सूर्यास्त होने तक पर पितरों को जब तक भोजन प्राप्त नहीं होता तब तक निराश होकर पितृ लोक मे लौट जाते हैं। इसलिए शास्त्रों में श्राद्ध करने की अति आवश्यकता है। श्राद्ध 16 दिनों तक मनाया जाता है।ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है कि इस संसार में दैहीक, दैविक और भौतिक तीनों तापों से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध से बढ़कर कोई अन्य उपाय नहीं है। यह पक्ष ब्रह्मा जी ने पितरों के लिए बनाया है। पितृलोक अधिकारी सूर्यपुत्र यम रहता है। श्राद्ध पक्ष में देव ,पीपल ,गाय,कुत्ते और कौवे को अन्न, जल देने से पित्र देव प्रसन्न हो जाते हैं। गीता जी का पाठ एवं ” ऊं पितृ देवताभयो नम: ” का मंत्र जाप कर आहुति देना चाहिए। हिंदू संस्कृति में मनुष्य पर माने गए सबसे बड़े ऋण पितृ ऋण ,देवता ऋण, ऋषिऋण से मुक्त होने के लिए श्राद्ध करना चाहिए । वसु,रुद्र और आदित्य श्राद्ध के देवता माने जाते हैं ।श्राद्ध में जल ,काला तिल ,अक्षत और कुशा का सर्वाधिक महत्व है ।देवताओं को पसंद करने के लिए पहले मनुष्य को अपने पितरों को प्रसन्न करना चाहिए। हिंदू ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष को सबसे जटील कुंडली दोषो में से एक माना जाता है ।हिंदू संस्कृति एवं समाज मे अपने पूर्वजों एवम दिवंगत माता-पिता के स्मरण श्राद्ध पक्ष में करके उनके प्रति असीम श्राद्ध के साथ तर्पण, पिंडदान, यक्ष तथा ब्राह्मणों के भजन का प्रावधान किया गया है ।माना जाता है।कौवे को पितरो का वाहक रूप माना जाता है।
श्री हिंदू शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं।उनकी याद मे श्राद्ध करते है। श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में पितर धरती पर आते हैं ,इसलिए उनकी याद में तर्पण करते हैं ,ताकि उन्हें शांति मिले। श्री सतगुरू सेवा समिति के जगदीश पाटीदार ने बताया कि विश्व की ऐसी कोई संस्कृति नहीं है जिसमें पूर्वजों को याद नहीं किया जाता है। यह बात बाबा जी(गुरूदेव) श्री बालीपुर धाम ने बताया था। बंटी महाराज, जितेंद्र शर्मा ,नवीन पाटीदार का इस पुण्य कार्य मे सहयोग रहा।पश्चात भंडारा हुआ।
राजू देवड़ा जिला रिपोर्टर धार बालीपुर धाम
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