18 अगस्त 2024 जयपुर अमर जवान ज्योति पर राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र नेता संजीव गुर्जर द्वारा देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारत माता के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि के उपलक्ष में मोमबत्तियां जलाकर नमन संध्या श्रद्धांजलि कार्यक्रम रखा गया । कार्यक्रम में भूतपूर्व सैनिक सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष कर्नल देव आनंद , पूजा लोहामरोड़ एवं बड़ी संख्या में राजस्थान विश्वविद्यालय के विद्यार्थीयो ने भाग लिया । कार्यक्रम के अंतर्गत नागरिक एवं विद्यार्थियों द्वारा मोमबत्ती जलाकर नमन संध्या में हिस्सा लिया।
कर्नल देव आनंद ने अपनी बात रखते हुए बताया कि भारत के इतिहास में 18 अगस्त 1945 की तारीख कभी नहीं भुलाई जा सकती। ये वह तारीख है जब स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्लेन लापता हो गया था । पूरा देश आज उनकी पुण्यतिथि पर नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित की । नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 कटक, ओड़िशा सम्भाग, बंगाल प्रान्त, ब्रितानी भारत (वर्तमान के भारतीय राज्य ओडिशा का कटक जिला) मे हुआ। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर अंतिम निर्णायक प्रहार किया था। बात 18 अगस्त 1945 की है जब जापान दूसरा विश्व युद्ध हार चुका था एवं अंग्रेज तथा एवं उनके चाटुकार यह कभी नहीं चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस भारत को आजाद करवाने में सफल हो सके । माना जाता है कि 18 अगस्त 1945 के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विमान हादसे में मारे गए थे, उस हादसे की खबर जापान ने 5 दिन बाद सार्वजनिक की जिसके फल स्वरुप मौत की सच्चाई पर आज भी रहस्य बना हुआ है. भारत में नेताजी के निधन के रहस्य को जानने के लिए 3 जांच आयोग बने, जिनमें से दो जांच आयोग का कहना है कि उनका निधन विमान हादसे में हुआ, जबकि तीसरे जांच आयोग का कहना है कि उनका निधन विमान हादसे में नहीं हुआ था.
21 अक्तूबर, 1943 को नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में अखंड भारत की पहली सरकार का सिंगापुर में गठन किया गया जिसको जापान और जर्मनी सहित नौ देशों की सरकारों ने ने मान्यता दी थी। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर इस सरकार ने 30 दिसंबर को भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा फहरा कर आजाद भारत की घोषणा कर दी थी। यह कहने में कोई भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नेताजी द्वारा गठित सरकार स्वतंत्र भारत की पहली सरकार थी। नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे । देखा जाए तो 30 दिसंबर, 1943 ही वास्तव में अखंड भारत की घोषणा करने के साथ-साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में सरकार का गठन किया गया जिसको स्वतंत्र देश के रूप में दुनिया के कई देशों ने मान्यता दी थी । दुर्भाग्य से अगले ही साल कांग्रेस द्वारा देश का विभाजन स्वीकार कर लिया गया जिसके फल स्वरुप 30 दिसंबर अखंड भारत के स्वतंत्रता दिवस की जगह की जगह 15 अगस्त को खण्डित भारत का स्वतंत्रता दिवस स्वीकृत हो गया। उपरोक्त तथ्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में झांक कर देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि स्वतंत्रता संग्राम के इस महत्वपूर्ण एवं निर्णायक अध्याय को जानबूझ कर इतिहास के कूड़ेदान में डाल देने का राष्ट्रीय अपराध किया गया। कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक अन्याय वीर सावरकर, सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रासबिहारी सैकड़ों देशभक्त क्रांतिकारियों एवं आजाद हिन्द फौज के 30 हजार बलिदानी सैनिकों के साथ किया गया है. आर्य समाज, हिन्दू महासभा इत्यादि के योगदान को भी नकार दिया गया. लखनऊ से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ के नवंबर 2009 के अंक में के.सी. सुदर्शन जी का एक लेख ‘पाकिस्तान के निर्माण की व्यथा’ छपा था जिसमें लिखा था – “जिस ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली के काल में भारत को स्वतंत्रता मिली, वे 1965 में एक निजी दौरे पर कोलकत्ता आए थे और उस समय के कार्यकारी राज्यपाल और कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी सी.डी. चक्रवर्ती के साथ राजभवन में ठहरे थे । बातचीत के दौरान चक्रवर्ती ने सहजभाव से पूछा कि 1942 का आंदोलन तो असफल हो चुका था और द्वितीय विश्वयुद्ध में भी आप विजयी रहे, फिर आपने भारत क्यों छोड़ा? तब एटली ने कहा था कि हमने 1942 के कारण भारत नहीं छोड़ा, हमने भारत छोड़ा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के कारण। नेताजी अपनी फौज के साथ बढ़ते-बढ़ते इंफाल तक आ चुके थे और उसके तुरंत बाद नौसेना एवं वायु सेना में विद्रोह हो गया था। अगर उस समय कांग्रेस ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ संयुक्त संग्राम छेड़ा होता तो देश स्वतंत्र भी होता और भारत का दुःखद विभाजन भी नहीं होता.
श्रीमती पूजा लोहा मरोड़ ,रूप सिंह जी कुमावत , संजीव गुर्जर, दुर्गेश , रौनक, गजराज , चित्रांशु ,लोकेंद्र , मनमोहन महेश्वरी कमांडो मुकेश आदि कार्यक्रम में मौजूद रहे ।।।
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