Chief Editor

Dharmendra Singh

Office address -: hanuman colony gole ka mandir gwalior (m.p.) Production office-:D304, 3rd floor sector 10 noida Delhi Mobile number-: 9806239561, 9425909162

June 2025
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30  
June 18, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

लोकेशन – आष्टा

 

पर्यूषण महापर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म मनाया,

जैन दर्शन में गुरु और गुणवान की पूजा होती है,

इस संसार से तरना है तो विनय धारण करें — मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज

 

 

जैन दर्शन में गुरु और गुणवान की पूजा होती है।यह दसलक्षण महापर्व दस दिन अपने स्वभाव और विभाव से परिचित कराते हैं। इस संसार से पार,तरना चाहते हो तो विनय धारण करें, विनय ही मोक्ष का पथ है।हमें अपने अंदर सौम्यता, सभ्यता, सहजता आदि लाकर विनयवान बनना होगा। अकड़ मुर्दों के पास होती है। दोनों गुरु और शिष्य आचार्य ज्ञानसागर महाराज एवं विद्यासागर महाराज एक से बढ़कर एक थे। आचार्य भगवंत हमें सूत्र दे गए हैं। आज पदों की ओड़ और दौड़ लगी है।इस संसार से तरना है तो विनय धारण करें।पहली बार गुरु आचार्य शांति सागर महाराज ने मान का मर्दन कर विद्यासागर महाराज को अपना गुरु बनाया। प्रवचन सदियों से सुन रहे हो धारण करों, आचरण में लाओं। कोरोना ने सभी को वैराग्य सीखा दिया था और कोरोना गया तो वैराग्य भी चला गया।मान के भ्रम में मत उलझो।तीन खंड वाले दसानन रावण की दुर्गति मान के कारण हुई।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने दसलक्षण महापर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर बोलते हुए कहीं।मुनि श्री निष्पक्ष सागर जी महाराज ने कहा कि मृदुता का भाव ही मार्दव भाव है। मृदुता सीखना है तो आचार्य ज्ञान सागर महाराज से सीखे, जिन्होंने अपने आचार्य पद पर मुनि विद्यासागर जी महाराज को अपने आसन आचार्य पद पर बैठाया था ओर आचार्य पदवी से विभूषित किया था ।आज मान के समन का दिन है मान न करो ,मान मन का भ्रम मन मिला लो मान के भ्रम में दसानन उलझा तो उसकी दुर्दशा हो गई।इस अवसर पर निष्प्रह सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहा कि क्रोध आदि विकार है जो बाहर से आए। ह्रदय रोगियों एवं बीपी वालों को क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध। हमेशा-हमेशा नहीं रहता है ।श्रीफल बाहर से पिता की तरह कठोर और अंदर से मां की तरह नरम है।राम तो राम थे, लक्ष्मण को रावण के पास राम ने ज्ञान प्राप्त करने हेतु भेजा। उन्होंने वापस आकर कहा कि भैय्या रावण की अकड़ नहीं गई, उन्होंने मुझे ज्ञान नहीं दिया।राम ने कहा कुछ भी प्राप्त करना है तो सीर पर नहीं चरण के समीप बैठो, लक्ष्मण ने ऐसा ही किया तो रावण ने ज्ञान दिया।

विनय मोक्ष का द्वार है। हमेशा-हमेशा पीछे चलना विनय नहीं, हमारी प्रत्येक क्रिया भावों के अनुरूप होना चाहिए। विनय और चापलूसी में अंतर बताया।विनय आने पर किसी के प्रति भी विकार भाव नहीं आते हैं। आचार्य श्री का तो पग- पग विनयवान था।

बिना झुके कुछ नहीं मिलता है।दाता के सात गुणों में एक विनय भी है। वृद्धों की सेवा नित्य घरों में करें।यह सेवा आजकल लोगों ने छोड़ दी है।घर के बड़े- बुजुर्गो के चरण स्पर्श करें।विनय प्रदर्शित अवश्य करें।उत्तम मार्दव यानी विनम्रता। यह केवल बाहरी व्यवहार में ही नहीं, बल्कि हमारे हृदय और आत्मा की गहराई में भी होनी चाहिए। अहंकार को त्यागकर, हम अपने जीवन में सरलता, सहजता और सच्ची मधुरता को स्थान देते हैं।इस दिन हम यह संकल्प लें कि दूसरों के साथ व्यवहार में हमेशा विनम्र रहेंगे, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। विनम्रता से न केवल हमारा मन शांत रहता है, बल्कि हम अपने आस-पास के वातावरण को भी सकारात्मक बनाते हैं। परम पूज्य मुनि श्री निष्प्रह सागर जी महाराज ने कहा कि हम इतने कठोर हो गए है कि किसी को कुछ समझने को तैयार नही हमारी मृदुता चली गई है ।हम राम नही बने ,कब रावण बन गए पता ही नही चला। अकड़ शब्द में कोई मात्रा नही है पर प्रत्येक व्यक्ति में थोड़ी थोड़ी मात्रा में अकड़ विद्यमान है। अभी तो हमने क्षमा सुनी है, अपना नजरिया बदल गया है।ईगो ने हमे अकड़ सीखा दी है प्राउड से गर्व महसूस करना आगम में सर्वार्थसिद्धि में बतलाया गया है। सम्यकदर्शन प्राप्त करने के लिए विनय गुण आवश्यक है ।विनय करने के लिए

विनय का अर्थ आगे पीछे होना नही है, हमेशा -हमेशा बड़ों के पीछे चलना ही विनय है। किसी की आगवानी करते है तो आगे -आगे खड़े होकर करते है। जो क्रिया जिस तरह की जानी चाहिए उसी तरह करना चाहिए। द्रव्य को भाव की आवश्यकता है और भाव को द्रव्य की आवश्यकता होती हैं ,बाहर से हमने इस परम्परा को चलाने के लिए हमारी प्रत्येक क्रिया भावों के अनुरूप होना चाहिए ,विनय के प्रतीक है ।विनय सिर्फ शब्दों से नही प्रकट की जाती। आचार्य श्री हमेशा कहते थे फूल तो फूल किसी शूल को भी मेरे द्वारा कष्ट न पहुंचे ,इतना विनम्रपना था आचार्य श्री में। कई बार हम अपनी बात पर अड़े रहते है, हम अनेकांत स्याद्वाद धर्म को भूल जाते है ।देने वाले के हाथ ऊपर ओर लेने वाले के हाथ हमेशा नीचे होते है ।यह उसी का विनय है ,दाता के सात गुणों में एक विनय गुण भी होता है। वैय्यावर्ती विनय का सबसे अच्छा साधन है ,अपने घर मे हमेशा वैय्यावर्ती करना चाहिए।साधर्मी के प्रति विनय रखना चाहिए, बुजुर्गों के पैर छूने की परम्परा होना चाहिए ।झुकना सीखो प्रत्येक अंग से विनय प्रकट करो। संवेदना के साथ विनय रखो विनय जो करता है वह इन्द्रिय विजेता बनता है। पूज्य मुनिश्री निष्पक्ष सागर जी महाराज की प्रेरणा से विद्योदय प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है।

उक्त प्रतियोगिता प्रतिदिन पाँच वैकल्पिक प्रश्नों के साथ आयोजित की जा रही है,जिसके पांच विजेताओं को आकर्षक रजत मय उपहार से सम्मानित किया जा रहा है।

 

आष्टा से किरण रांका की रिपोर्ट