प्रदोष काल के पश्चात सम्पूर्ण रात्रि अमावस्या होने से 31 अक्टूबर को दीपोत्सव मनाना चाहिए- डाक्टर पण्डित राजेन्द्र उपाध्याय
राजोद।
दीपावली के पर्व को लेकर बनी उपापोह की स्थिति को लेकर अलग अलग स्थानों से अनेक जानकारियां आरही है। इसी मुद्दे पर राजोद क्षेत्र के विद्वान पण्डित व आचार्य श्री किशोरी लाल जी उपाध्याय के जेष्ठ पुत्र भूगर्भ शास्त्री डाक्टर पण्डित राजेन्द्र उपाध्याय ने बताया की भारत के अनेक पंचांगों में दीपावली पर्व मनाने को लेकर तारीखों में असमंजस की स्थिति निर्मित हुई है,जनमानस भृमित है। वास्तविकता यह है कि भारत में व्रत व त्योहारों को लेकर तिथि निर्धारण के समय सूर्योदय एवं सूर्यास्त के ध्यान रखा जाता है। जो स्थान भेद के कारण परिवर्तित होता है। भारत की पूर्वी सीमा की दूरी से पश्चमी सीमा की दूरी 2900 किलोमीटर है वही उत्तरी सीमा ओर दक्षिणी सीमा के बीच 3200 किलोमीटर का फासला है। इस कारण पूर्वी राज्यो एवं पश्चिमी राज्यो में एक घण्टे से ज्यादा का अंतर है। श्री उपाध्याय कहना है कि दीपावली पर्व कार्तिक मास की अमावस्या के प्रदोष काल अथवा उसके पश्चात काल मे मनाया जाता है।
इस वर्ष अमावस्या 31 अक्टूबर गरुवार को दोपहर पश्चात 3 बजकर 54 मिनट से आरम्भ होगी,जो 1 नवम्बर शुक्रवार को शाम 5 बजकर 15 मिनिट तक रहेगी। ऐसे में दो दिनों तक प्रदोष काल में अमावस्या व्याप्त है। अगर इन दो दिनों की तुलना की जाए तो 31 अक्टूबर को यह काल 2 घण्टे से अधिक रहेगा जबकि,1 नवम्बर को एक घण्टे से भी कम समय का होगा। श्री उपाध्याय जोर देकर बताते है कि 31 को प्रदोष काल पश्चात रात्रि पर्यन्त अमावस्या है। जबकि 1 नवम्बर को इस काल के पश्चात अमावस्या समाप्त हो जाती है।
सरदारपुर से राहुल राठोड़
सरदारपुर- राजोद श्री उपाध्याय का कहना है कि दीपोउत्सव रात्रिकालीन त्योहार है,जो कि प्रदोष काल या पश्चात मनानी चाहिए। इस त्योहार की परंपरा को ध्यान रखा जावे तो 31 को प्रदोष काल के साथ ही सम्पूर्ण रात्रि अमावस्या व्यापिनी है,जिसे रजनियोग भी कहा जा रहा है। इस लिए 31 अक्टूबर गुरुवार को ही दीपावली मनाना उचित होगा। धन तेरस 29 अक्टूबर,नरक चतुर्दशी 30 अक्टूबर को, 1 नवम्बर को पितृ पूजन व देव पूजन,तथा 2 नवम्बर को सुहाग पड़वा, गो पूजा,गोरधन पूजा,एवं अन्नकूट व 3 नवम्बर को भाई दूज मनाना श्रेयस्कर होगा।

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