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June 18, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

क्या कपिल सिब्बल राजनीति के चलते वकील के मूल ज्ञान को भी भूल गये लगते हैं ?

न्यूज़ 24x 7 इंडिया के लिए
ब्यूरो चीफ योगेश गुप्ता ✍️

कलम से ..राजीव खण्डेलवाल लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष हैं

बैतुल । पंजाब में विगत कुछ दिवसों से जो कुछ नाटकीय सियासी घटनाक्रम चल रहा है, वह अनपेक्षित और पूर्व में हुये राजनैतिक घटनाक्रम से कुछ हटकर है। इस कारण से सिर्फ कांग्रेस पार्टी की ही नहीं, बल्कि गांधी परिवार की बची कुची साख पर भी बट्टा लग रहा है, और किरकिरी हो रही है। भाजपा विगत कुछ समय से अल्पमत सरकारों को बहुमत में बदलकर कैसे सफल सरकारें चला रही हैं, मध्यप्रदेश, हरियाणा सहित कई राज्यों के उदाहरण आपके सामने है। कहीं भी “साझे की हंडिया चौराहे पर फूटने की नौबत” नहीं आयी। स्वयं कांग्रेस के प्रधानमंत्री नरसिंह राव के जमाने में अल्पमत सरकार को चलाना और मध्यप्रदेश के दिग्विजय सिंह का अर्जुन सिंह द्वारा अलग होकर नई पार्टी बनाने के बावजूद, अपनी अल्पमत सरकार को पांच साल चलाने के कई उदाहरण रहे है। लेकिन पंजाब में दो तिहायी से ज्यादा बहुमत पाने के कारण विपक्ष के लगभग अस्तित्व मेें न होने के कारण, शायद कांग्रेस स्वयं ही विपक्ष का रोल भी अदा करना चाह रही है, ऐसा लगता है। परन्तु इस तरह की राजनीति की नीति के चलते कही कांग्रेस सत्ता से हटकर विपक्ष का भाग भी न रह पाये, प्रबल प्रभावी विपक्ष की बात तो दूर; कांग्रेस हाईकमान की असफलता (फैलुयर) ने इसकी बड़ी आंशका पैदा कर दी है कि कहीं “हक़ीमों की फ़ौज़ मरीज़ की मौत का सबब” न बन जाये।
इन परिस्थितियों में जी 23 ग्रुप के महत्वपूर्ण सदस्य पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कानून व संविधान विशेषज्ञ कपिल सिब्बल का पंजाब की उत्पन्न मौजूद स्थिति पर बयान आना आश्चर्यजनक नहीं है, बल्कि यह बयान आना आश्चर्यचकित कर देने वाला है कि वर्तमान में पाटी में अध्यक्ष ही नहीं है, तो (पंजाब के संदर्भ में) फैसले कौन ले रहा है? यह समझ नहीं आ रहा है। राजनीति में विरोधियों पर तंज कसे जाते है। लेकिन अपनी ही पार्टी नेतृत्व के विरूद्ध वास्तविकता के विपरीत बयान न तो शोभायमान होते है और न ही ऐसे बयानों से नेतृत्व की गलतियों को सुधारा जा सकता है, जिसके लिए तंज कसे गयेे है। ऐसे बयान तो “कुल्हाड़ी में पैर दे मारने के समान” हैं। तथ्य यह है कि 16 दिसम्बर 2017 को कांग्रेस के लोकतांत्रिक रूप से चुने गये अध्यक्ष राहुल गांधी के 3 जुलाई 2019 को इस्तीफा दे देने के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी के द्वारा 10 अगस्त 2019 को अंतरिम कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ती सोनिया गांधी की की गई है। तब सिब्बल साहेब को यह मालूम होना चाहिए और वास्तविकता में मालूम भी है (क्योंकि वे एक प्रसिद्ध विधि विशेषज्ञ है) कि कार्यकारी अध्यक्ष के अधिकार अध्यक्ष के समान ही होते है। इसलिए यह कहना कि अध्यक्ष न होने के कारण कौन निर्णय ले रहा है, बेहद ही हास्यादपद और अपरिपक्व बयान है, जो कहीं न कहीं राजनैतिक स्थिति का फायदा उठाकर नेतृत्व को कटघरे में खड़े करने का प्रयास मात्र ही है। जैसा कि कहा गया है; “अविवेक: परम् आपदाम् पद्म:”। कपिल सिब्बल जैसे संविधान व कानूनी विशेषज्ञ, राजनीतिज्ञ से उक्त गलत बयान बाजी की उम्मीद नहीं की जा सकती है। तथापि नेतृत्व के निर्णय की आलोचना करने का पूर्ण अधिकार उन्हे है, जो निर्णय न केवल गलत था, बल्कि गलत सिद्ध होकर पार्टी वहीं पुनः निर्णय लेने की मजबूरी की स्थिति में पहुंच गई है।
स्वस्थ्य लोकतंत्र में पार्टी नेतृत्व के द्वारा उठाये गये कदमों को या गलत तरीके से उठाये गये कदमों को सही तरीके से उठाने का लोकतांत्रिक अधिकार पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं को है और होना ही चाहिए। जी 23 ग्रुप के सदस्य कपिल सिब्बल ने कई महत्वपूर्ण वैधानिक, संवैधानिक मुकदमें जीते है। वे जानते हैं कि “विभूषणम् मौनम् पंडिताणाम्”, लेकिन इस तरह की तथ्यहीन, तथ्यों के विपरीत अर्नगल बातें कर कपिल सिब्बल; नवजोत सिंह सिद्धू के कारण पंजाब में उठती राजनैतिक ‘‘आग को ठंडा’’ करने के बजाय उसमें ‘‘घी ड़ालने’’ का ही कार्य कर रहे है। जो कार्य पंजाब की विपक्षी पार्टी भाजपा या आप पार्टी भी नहीं कर पाई है।
नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेट के सफल ओपनर खिलाड़ी होने के बाद टीवी के लाफटर कार्यक्रमों के कारण उन्हे देश भर में प्रसिद्धि मिली। परन्तु उन्होंने हंसी-हंसी में “अपनी मुर्ग़ी की डेढ़ टांग” वाली पृष्ठभूमि के चलते न केवल कांग्रेस के मंच को ही लाफटर कार्यक्रम के मंच में परिणित कर दिया है, बल्कि स्वयं भी इससे अछूते नहीं रह पाये है। यह समझ के बाहर है कि वे कांग्रेस के “नादां दोस्त हैं या दानां दुश्मन” । नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री नियुक्ती के बाद सिद्धू स्वःनिर्णय का वह अधिकार वे स्वयं द्वारा नियुक्त अपने मुख्यमंत्री को नहीं देना चाहते है, जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में निर्णय के अधिकार वे स्वयं के लिये कांग्रेस हाईकमान से मांग रहे है, जिन्होंने सिद्धू की पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की है। मुख्यमंत्री चन्नी से सिद्धू की नाराजगी के जो कारण राजनीति क्षेत्र में सूत्रों के माध्यम से बाहर प्रकट होकर आयें हैं, वह यही है कि मुख्यमंत्री ने मंत्रियों के विभागों के बंटवारें व कुछ प्रमुख महत्वपूर्ण प्रशासनिक नियुक्ति के मामलों में न केवल सिद्धू से कोई चर्चा ही नहीं की, बल्कि उनकी इच्छा के विरूद्ध नियुक्ति कर अपनी स्वतंत्र कार्य करने की शैली का आभास राजनैतिक क्षेत्रों में कराया है। वे शायद सिद्धू को “सही सिद्ध” करने में जी जान से जुट गये है, जिस कारण सेे सिद्धू के बताये गये रास्ते के अनुसार ही वे भी एक कठपुतली मुख्यमंत्री नहीं रहेगें, जैसा कि सिद्धू एक कठपुतली प्रदेश अध्यक्ष नहीं रहना चाहते हैं। ‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ मुहावरा यहां पर सटीक बैठता है।