देश का चौथा स्तंभ की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में क्या भूमिका निभायेगी सरकार…?
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बिना वेतन के पत्रकार आज हालात के आगे मजबूर, शासन प्रशासन की मदद कोसो दूर….?
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राष्ट्रीय ग्रामीण पत्रकार संघ के जिलाध्यक्ष ललितचौहान .
मिडिया प्रभारी योगेश गुप्ता
न्यूज़ 24×7 इंडिया जिला बैतुल
बात हकीकत की ✍️
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बैतुल । पत्रकारिता …जिसे देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है। लेकिन उस स्तंभ की नींव को कोरोना वायरस ने इतना कमजोर कर दिया । पत्रकारों को उसके बावजूद इन जड़ो में एक बूंद पानी डालने के लिए आज कोई सामने नहीं आ रहा है। जिन पत्रकारों के सामने लोग अपनी फोटो खिंचवाने और समाचार लगवाने के लिए आगे-आगे आते थे । आज उन्हीं पत्रकारों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता । फिर चाहे वह राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार या फिर कोई सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन कोई भी यह पूछना भी मुनासिब नहीं समझ रहा है कि लाकडॉउन् के दौरान उन्हें अपने परिवार के पालन पोषण मे इतनी परेशानी का सामना करना पड़ा की कूछ पत्रकारों को परिवार चलाने के लिए कर्ज में डूब गए । चूंकि पत्रकार नाम सुनते ही लोगों को यह लगता है कि साधन संपन्न व्यक्ति लेकिन लोग यह भूल जाते है कि पत्रकार जगत में साधन संपन्न वही होता है जो मालिक होता है लेकिन अखबार या टीवी चैनल केवल मालिक से नहीं चलता उसे चलाते हैं रिपोर्टर, ऑपरेटर, कैमरा मैन, जिले, नगर व ग्रामीण क्षेत्र के संवाददाता, हॉकर तब जाकर कोई भी अखबार या चैनल पर सभी क्षेत्रों की खबरे प्रकाशित व दिखाई जाती है। चूंकि नगरीय क्षेत्र के संवाददाता हो या ग्रामीण क्षेत्र इन्हें ना तो अखबार के मालिक द्वारा कोई वेतन दिया जाता है और ना ही राज्य या केन्द्र सरकार के द्वारा। यह संवाददाता बेचारे बिना वेतन के ही अपने क्षेत्र में खबरों की तलाश में भटकते है और अपना ही पेट्रोल, डीजल खर्च करके पूरी उमंग और उत्साह के साथ खबरों का संकलन कर जनता तक पहुंचाते है । कुछ ऐसा ही कार्य लाकडॉउन् के दिनों में कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाकडॉउन् के दौरान प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को समाचारों के संकलन के लिए छूट तो दी है। पर संकलन के दौरान संक्रमण का शिकार होने पर जवाबदारी किसी ने नहीं ली है। और ना ही इनके परिवार के भविष्य के बारे में किसी ने सोचा है । इसलिए जो उच्च वर्ग के पत्रकार हैं। वे तो अपने घर अपने परिवार के बीच लाकडॉउन् के दिनो मे अपने परिवार का गुजारा तो ठीक ठाक से कर लिए किन्तु जो गरीब वर्ग के पत्रकार हैं । जो रोज कमाने रोज खाने वाली श्रेणी में आते हैं। ऐसे पत्रकार ही अपनी जान जोखिम में डालकर कार्यक्षेत्र में काम किए और कोरोना से सम्बंधित सभी जानकारियां लोगों तक पहुंचाकर उन्हें जागरूक कर रहे थे। एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदी से लेकर स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन पत्रकारों ,मीडियाकर्मी को कोरोना वायरस कहकर उनका सम्मान करते हैं । लेकिन दूसरी तरफ उन्ही पत्रकारों व उनके परिवार के बारे में कोई चिंता नहीं करते हैं । कि कम से कम पत्रकारों का बीमा किया जाये या उन्हें आर्थिक मदद दी जानी चाहिए। एक बड़ा उदाहरण जिला बैतूल के आदिवासी एक मात्र पत्रकार समाचार पत्र हरिभूमि के जिला ब्यूरो संतोष भलावी को ब्लैक फंगस जैसी भयंकर बीमारी होने पर इस बात का एहसास जिला बैतूल के पत्रकारों को मन ही मन जरूर हुआ होगा । उस वक्त भी पत्रकार संगठन ही आगे आकर उनके इलाज के लिए व्यवस्था बनाई थी जिसमें व्यक्तिगत रूप से ही आर्थिक मदद समाज सेवक एवं जनप्रतिनिधि द्वारा करी गई थी। लाकडॉउन् के दिनों में गरीब पत्रकारों को परिवार को जो परेशानी उठानी पड़ी उसे भुलाया नहीं जा सकता । चूंकि लाकडॉउन् के दिनों में उच्च वर्ग के लोगों के पास धन संचय होने के कारण वे अपने दिन आराम से व्यतीत कर रहे थे ।वहीं पर गरीब पत्रकार का परिवार परेशानियों से जूझ रहा था। किसी संगठन और प्रशासन ने कोई मजबुत मदद नहीं किया। अपना परिवार चलाने के लिए कर्ज से मध्यम वर्गीय पत्रकार डूब गया । कौन सुनने वाला किन्तु इन सबके बीच में मध्यम वर्गीय परिवार कहाँ जाये जिनके लिए ना तो शासन प्रशासन सोच रहा है। और ना ही कोई अन्य संगठन ने कि आखिर पत्रकार जगत भी इसी मध्यम वर्गीय परिवार में आता है । क्योंकि मध्यम वर्गीय परिवार अपने आत्म सम्मान के साथ जीना पसंद करता है। इसलिए वह निम्न वर्ग की तरह संगठनों की राह नहीं देखता इसलिए संकट की इस घड़ी में वह शासन प्रशासन की ओर उम्मीद से देख रहा है। कि उन्हें किसी तरह की आर्थिक मदद मिले जिससे वह अपने परिवार का पालन पोषण कर सके । लगभग 2 वर्ष से कोरोना की चपेट में देश में पत्रकारों की कुछ आस विज्ञापन में टिकी रहती थी। लेकिन कोरोना महामारी के कारण वह भी आस खत्म हो गई । अब कर भी क्या सकते हैं… इस विषय पर मंथन करने की आवश्यकता है क्योंकि तीसरी लहरी भी आज नहीं तो कल सरकार लहरायेगी जरूर ???🙏🏻
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