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Dharmendra Singh

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August 9, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

श्री बालीपुर धाम में देव भूमि पर “बाबा जी “के समक्ष “शरद पूर्णिमा का पर्व ” उनके शिष्य श्री योगेश जी महाराज ने गुरू- भक्तो के साथ मनाई।


सरिता पाटीदार रिपोर्टर

देव भूमी एवम पुण्य भूमि नर्मदा के उत्तरी कोख पर 15 किलोमीटर दूरी पर बसे श्री बालीपुर धाम में श्री श्री 1008 परमहंस प्रातः स्मरणीय, वंदनीय ,यज्ञाचार्य, तपोनिष्ठ श्री गजानन जी महाराज के परम शिष्य ,ईश्वर समतुल्य श्री योगेश जी महाराज एवम सुधाकर जी महाराज के सानिध्य में शरद पूर्णिमा का महोत्सव का कार्यक्रम आयोजित हुआ। सर्वप्रथम गुरुदेव की प्रतिमा पर पूजन , अर्चन कर पुष्प चढ़ाए गए।प्रति वर्षानुसार इस वर्ष श्री सत्यनारायण भगवान की कथा जगदीश पाटीदार अध्यापक एवम् नवनीत पाटीदार द्वारा करवाई गई। ब्राह्मणों की टीम द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ किया गया। भक्तों द्वारा गुरुदेव के दर्शन एवम वंदन का लाभ लिया गया । गुरुदेव से प्रभावित होकर "एक नन्हा सा बालक जयदीप " ने पंडित की भांति वस्त्र त्याग कर यज्ञ करते हुए लाल सोलया की वेष -भूसा मे होने से गुरू देव के साथ मे आरती की गई। । सामुहिक गुरू जाप एवं आराधना की गई। श्री सदगुरुदेव सेवा समिति के जगदीश चंद पाटीदार ने शरद पूर्णिमा के महत्व के संबंध में प्रकाश डालते हुए बताया कि ऋतु का आगमन पर " "चारु चंद्र की चंचल किरणें ,खेल रही थी जल थल में " उक्त कविता की पंक्तियों से शरद ॠतु का आगमन होता है।। केसर युक्त दूध "बाबा जी "को भोग समय - 1:00 बजे लगाया गया। हिंदू पंचांग के शरद पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर धरती पर अमृत वर्षा करता है ।इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले। इस उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले केसर युक्त दूध ,खीर रखी। जिसका सेवन समय अल सुबह 4:00 बजे पश्चात किया गया। ।चंद्रमा की कलाएं स्वास्थ्य अमृत्व की चाह में फिर दूध शरद-चंद्र की चांदनी में रखा। इस दिन जहां चंद्र भगवान के पूजा कर भोग लगाया गया। चंद्रमा की सारी कलाएं रात में धरती पर दिखाती है। इसलिए रात्रि के समय दूध रखा जाता है । श्री योगेश जी महाराज ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शंकर और पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगाता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा के दिन रासलीला की थी ।राजा लंकेश रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इससे उन्हें पुनर यौवन शक्ति प्राप्त होती है । वैज्ञानिक कारण भी है कि पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होने कारण प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछार करती है ,जिसमें लवण और विटामिन होते हैं ।कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणे से नाग का विष भी अमृत बन जाता है। कई प्रकार के पुष्पों की सुगंधि रात्रि में बढ़ जाती है ,जो मन को लुभाती है, वही तन को भी मुग्ध करु देती है । रात्रि जागरण के महत्व को के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसी कारण से कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। जब द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुई ।भगवान श्री कृष्ण और राधा के अद्भुत रासलीला का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है ।दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है ।ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में दूध- खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। इससे योन शक्ति और रोग- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। आज तक मनुष्य ने जो कुछ हासिल किया है, वह सब प्रकृति से सीख कर ही किया है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित चंद्रमा के 27 नामों वाले चंद्रमा स्त्रोत का पारयण करने का भी विधान है ,जिसमें प्रत्येक श्लोक का 27 बार उच्चारण किया जाता है। शरद पूर्णिमा की कथा भी सुनाई गई। गीत:-

“राधा संग गोपिया चली कृष्ण के द्वार,
सांवले रंग के कान्हा की बिखरे छटे अपार।
पूर्णिमा के उज्जवल प्रकाश में मिली वो कृष्ण से ।
रासलीला होगी और आज नाचेगा संसार।
उल्लेखनीय है कि श्री धाम बालीपुर में बाबा जी द्वारा भी 74 वर्षों से अस्थमा ,डायबिटीज की दवाई निःशुल्क वितरण की जाती थी। उसी की राह पर चलते हुए आयुर्वेद के ज्ञानी एवम भक्तों के हमदर्द श्री श्री सुधाकर जी महाराज द्वारा भी विगत 15 वर्षों से पुण्य भूमि ,देव भूमि पर ” शरद पूर्णिमा उत्सव “के अन्तर्गत दवाई निःशुल्क दे रहे है। प्रति अनुसार इस वर्ष भी कार्यक्रम मे ब्राह्मणो को दक्षिणा,श्रीफल एवम् साल भेंट की गई। ।इस दिन जहां चंद्र भगवान की पूजा कर भोग लगाते हैं। चंद्रमा की सारी कलाएं रात में धरती पर दिखाती है ।इसलिए रात्रि के समय दूध रखा जाता है ।
शरद पूर्णिमा का चांद सबसे सुंदर होता है और सबसे ज्यादा आशीर्वाद देता है। 11 क्विंटल दूध मे बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, मिस्त्री मिलाई गई । 1500 भक्तों ने दूध पीकर स्वास्थ्य का लाभ लिया ।। कार्यक्रम में अरूण भार्गव, रविंद्र महाराज, जिला पंचायत सदस्य” कपिल सोलंकी ,मनोज शर्मा, पत्रकार दिलीप राठौड ,ओम प्रकाश राठौड़, सामाजिक कार्यकर्ता एवम राजगढ़ के प्रथम नागरिक -गोविंद भाई पाटीदार, आय. ए. एस. अधिकारी काव्या पाटीदार, जयदीप पाटीदार, अनिल भाई, नवनीत पाटीदार, राधेश्याम भूत, रमेश वकील, राजू देवड़ा,लल्लू भाई,लखन राजपूत कंजरोटा, उपस्थित थे।