Chief Editor

Dharmendra Singh

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June 2025
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June 18, 2025

सच दिखाने की हिम्मत

आज ही के दिन 5 वर्ष पूर्व जम्मू-कश्मीर के हालात में बदलाव की सोच के साथ एक ऐतिहासिक पटकथा लिखी गई थी जिसके अंतर्गत 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए के संवैधानिक प्रावधानों को निरस्त करते हुए विशेष दर्जा खत्म कर राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था तथा लद्दाख जो कि जम्मू कश्मीर का ही हिस्सा था उसे एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। 11 दिसंबर 2023 को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्तीकरण पर अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का सरकार का निर्णय—जिसने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जा को समाप्त कर दिया—संवैधानिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये लिया गया था न कि विघटन के लिये। न्यायालय ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि अनुच्छेद 370 अपनी प्रकृति में ‘अस्थायी’ था।
अनुच्छेद 370 का क्या मतलब था ?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता मिली थी. इसका मसौदा भारतीय संविधान सभा के सदस्य एन. गोपालस्वामी आयंगर ने तैयार किया था और इसे वर्ष 1949 में ‘अस्थायी उपबंध’ के रूप में संविधान में जोड़ा गया था । अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था, लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए थी । इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। 1976 का शहरी भूमि कानून राज्य पर लागू नहीं होता था । भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे । भारतीय संविधान की धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है लेकिन यह जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था। इस धारा की वजह से कश्मीर में आरटीआई और सीएजी जैसे कानून लागू नहीं होते थे । जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी । जम्मू-कश्मीर का अलग राष्ट्रध्वज था । जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता था,जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का था । जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता था। भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं थे । भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के संबंध में सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती थी। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले लेती थी तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान(पीओके) के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी.
अनुच्छेद 35A का क्या मतलब था ?
35A जम्मू-कश्मीर राज्य विधानमंडल को ‘स्थायी निवासी’ परिभाषित करने और उन नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता था। यह भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया। राष्ट्रपति ने 14 मई 1954 को इस आदेश को जारी किया था । यह अनुच्छेद 370 का हिस्सा था। जो जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं था, राज्य में संपत्ति नहीं खरीद सकता था, सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकता था, वहां के विश्विद्यालयों में दाखिला नहीं ले सकता था और न ही राज्य सरकार की कोई वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता था।

5 अगस्त 2019 के बाद कितना बदला जम्मू कश्मीर…….
अनुच्छेद 370 खत्म होने के 4 सालों में जम्मू-कश्मीर में काफी बड़े बदलाव आए हैं। वह चाहे सुरक्षा से जुड़े हो ,राजनीतिक हो, आर्थिक हो या फिर विकासात्मक हो। प्रदेश को मुख्यधारा से जोड़कर देश के अन्य राज्यों के बराबर संवैधानिक स्तर पर देखा जा सकता है तथा वहां अब आतंकी घटनाये, भड़काऊ नारेबाजी तथा पत्थराव जैसी घटनाएं कम हो गई है।

एक संविधान एक निशान….
विशेष दर्जी के तहत जम्मू और कश्मीर को प्रदेश का झंडा और एक संविधान की अनुमति थी । जम्मू कश्मीर की सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता था कि भारतीय संविधान के कौन से हिस्से जम्मू कश्मीर में लागू होगे, इसकी अपनी दंड संहिता थी जिसे रणबीर दंड संहिता कहा जाता था। अब नागरिक सचिवालय समेत सभी सरकारी कार्यालयो में सिर्फ भारतीय तिरंगा फहराया जाता है एवं भारतीय संविधान पूरी तरह से स्थापित हो चुका है।

पत्थर बाजी इतिहास की बात…..
अब पत्थर बाजी की घटनाएं इतिहास की बात बन चुकी है। सरकार ने पथराव समेत विध्वंसक और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को भारतीय पासपोर्ट जारी नहीं किया जाता है । जम्मू कश्मीर पुलिस के आपराधिक जांच विभाग ने एक आदेश जारी कर अपनी स्थानीय इकाइयों को पासपोर्ट सेवाओं से संबंधित सत्यापन के दौरान पथराव या विध्वंसक गतिविधियों में शामिल लोगों को पासपोर्ट और अन्य सरकारी सेवाओं के लिए सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार कर देगा।NIA भी लगातार आतंकी ठिकानों पर छापेमारी कर उनके नेटवर्क को ध्वस्त करने में लगी हुई है। साल 2018 में 58, साल 2019 में 70 और साल 2020 में 6 हुर्रियत नेता हिरासत में लिए गए। 18 हुर्रियत नेताओं से सरकारी खर्च पर मिलने वाली सुरक्षा वापस ली गई। अलगाववादियों के 82 बैंक खातों में लेनदेन पर रोक लगा दी गई।

आतंकी घटनाओं में कमी….
अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद से जम्मू-कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आई है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, पिछले चार वर्षों में आतंकवादी घटनाओं की संख्या में 50% से अधिक की कमी आई है और सुरक्षा बलों ने 300 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया है। इसका श्रेय भारतीय सुरक्षा बलों के साथ-साथ कई कारकों के संयोजन को दिया जा सकता है, जिनमें सुरक्षा उपायों की वृद्धि, खुफिया सूचनाओं का बेहतर संग्रहण और उग्रवाद के लिये सार्वजनिक समर्थन में गिरावट शामिल । जम्मू कश्मीर पुलिस ने एक आंकड़ा साझा किया था इसमें पुलिस में 5 अगस्त 2016 से 4 अगस्त 2019 और 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2022 के बीच हुई आतंकी घटनाओं अपने जीवन का बलिदान देने वाले जवानों और मारे गए आम लोगों की संख्या की तुलना की इसके मुताबिक 5 अगस्त 2016 से 4 अगस्त 2019 के बीच 930 आतंकी घटनाएं हुई थी जिसमें 290 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे और 191 आम नागरिक मारे गए थे वहीं 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2024 के बीच में 616 आतंकी घटनाओं में 174 जवान वीरगति को प्राप्त हुए और 110 नागरिकों की मौत हुई। हालाँकि, पिछले दो वर्षों से चरमपंथी हमलों के ज़्यादा मामले कश्मीर के दक्षिण में स्थित जम्मू क्षेत्र में हुए हैं. सुरक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कश्मीर में चरमपंथी गतिविधियाँ ज़रूर कम हुई हैं लेकिन जम्मू क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है, वो अच्छे संकेत नहीं हैं।

केंद्र के कानून और योजनाएं लागू किया जाना ..
जम्मू कश्मीर में पहले केंद्र के बहुत से कानून और योजनाएं लागू नहीं होती थी तथा केंद्र के कानून और योजनाएं लागू करने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी जरूरी थी। लेकिन अब वहां केंद्रीय कानून और योजनाएं लागू है। 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में केंद्र के 890 से अधिक कानून लागू हो गये है। बाल विवाह कानून, जमीन सुधार से जुड़े कानून और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू नहीं थे लेकिन अब लागू कर दिए गए हैं।

राजनीतिक मैप मे बदलाव….
जम्मू कश्मीर में नए परिसीमन के बाद माता वैष्णो देवी समेत 90 विधानसभा सीट होगी। परिसीमन की फाइनल रिपोर्ट के मुताबिक 114 सदस्य विधानसभा में फिलहाल 90 सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे बाकी सिट पाक के अवैध कब्जे वाले इलाके में है । नवगठित सीटों में रियासी जिले में श्री माता वैष्णो देवी और कटरा विधानसभा क्षेत्र भी होंगे । नई विधानसभा के जम्मू क्षेत्र में 46 और कश्मीर घाटी संभाग में 47 सिट होगी । लोकसभा की 5 सीटों में दो-दो सिट जम्मू और कश्मीर संभाग में होगी जबकि एक सीट दोनों क्षेत्र में होगी यानी आधा इलाका जम्मू संभाग और बाकी आधा कश्मीर घाटी का हिस्सा होगा । पहली बार जम्मू कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए सीट आरक्षित की गई है। एसटी के लिए 9 सीट आरक्षित की गई है जिसमें से 6 जम्मू क्षेत्र में और तीन सीट कश्मीर घाटी में आरक्षित की गई है । वहीं अनुसूचित जाति के लिए पहले से आरक्षित 7 सीटों को बरकरार रखा गया है। जम्मू कश्मीर से दोहरी नागरिकता को भी समाप्त कर दिया गया जहां पहले जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता था वहीं अब 5 साल कर दिया गया है। प्रदेश से विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया है ।

आर्थिक विकास:
भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें लागू की हैं, जैसे प्रधानमंत्री विकास पैकेज (PMDP) और औद्योगिक विकास योजना (IDS)। इन पहलों से क्षेत्र में निवेश, रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास में वृद्धि हुई है। केंद्रशासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर में कर राजस्व में 31% की वृद्धि देखी गई। वर्ष 2022-23 के दौरान जम्मू-कश्मीर की GSDP स्थिर कीमतों पर 8% की दर से बढ़ी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 7% रही।

सड़के ……
पहले जम्मू कश्मीर में रोड कनेक्टिविटी सही नहीं थी श्रीनगर से जम्मू जाने में 12 से 14 घंटे का वक्त लगता था लेकिन अब श्रीनगर से जम्मू तक 6 से 7 घंटे में पहुंचा जा सकता है सरकार के मुताबिक अगस्त 2000 19 से पहले हर दिन औसतन 6.4 किलोमीटर सड़क ही बन पाती थी लेकिन अब हर दिन 20.6 किलोमीटर सड़क बन रही है जम्मू कश्मीर में सड़कों का जाल 4141 किलोमीटर लंबा है। यही नहीं जम्मू कश्मीर को जोड़ने के लिए चुनाव पर विश्व का सबसे ऊंचा पुल निर्माण किया जा चुका है और जल्द ही रेल कश्मीर घाटी जाने लग जाएगी तथा सीमाओं के नजदीक हजारों किलोमीटर सड़क निर्माण बड़ी तेजी से किया जा रहा है।

पर्यटन एवं रोजगार में वृद्धि:…
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर आने वाले पर्यटकों की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई है। बेहतर सुरक्षा, बेहतर विपणन और नई पर्यटन पहलों की शुरूआत सहित विभिन्न कारकों के संयोजन से यह संभव हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2023 में 1.62 करोड़ पर्यटक आए, जो भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्षों में सर्वाधिक है। यह आंकड़ा हर वर्ष बढ़ता जा रहा है। कश्मीर के पर्यटन उद्योग पर हम कह सकते हैं कि ये बहुत बेहतरीन तरीक़े से चल रहा और ये सिर्फ़ दिखावे वाली बात नहीं है. 2021, 2022 और 2023 में बड़ी तादाद में पर्यटक कश्मीर आए. साथ ही कश्मीर के बाग़बानी सेक्टर, जिसमें सेब का कारोबार शामिल है, इन दोनों को मिलाकर क़रीब 20,000 करोड़ रुपए सालाना की आमदनी होती है.” एक रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से लगभग 30,000 युवाओं को नौकरियां दी गई है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने 29,295 रिक्तियां भरी है। भर्ती एजेंसियों ने 7,924 रिक्तियों का विज्ञापन दिया है और 2,504 व्यक्तियों के संबंध में परीक्षाएं आयोजित की गई है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने जम्मू- कश्मीर में कई योजनाएं भी शुरू की है। अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास रहने वालों के लिए सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में 3% आरक्षण का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से जम्मू कश्मीर में 188 भारी निवेशकों ने जमीन ली है। वहीं, इसी साल मार्च में जम्मू कश्मीर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पहला प्रोजेक्ट मिला है। यह प्रोजेक्ट 500 करोड़ रुपये का है। इस प्रोजेक्ट के पूरे होते ही कश्मीर में 10,000 नौकरियां मिल सकेंगी। जानकारी के मुताबिक ये प्रोजेक्ट संयुक्त अरब अमीरात के ‘एमआर’ ग्रुप का है।

बाहरी लोगों के लिए संपत्ति के अधिकार….
2019 से पहले विशेष दर्जा के चलने चलते जम्मू कश्मीर में बाहर के लोगों को जमीन खरीदने की इजाजत नहीं थी । जम्मू और कश्मीर विकास अधिनियम में संशोधन किया और स्थाई निवासी शब्द को हटाने से अब बाहरी लोग जम्मू कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं अगर वह कृषि भूमि ना हो तो।

महिलाओं के लिए घरेलू समानता….
2019 से पहले जम्मू कश्मीर की महिला निवासी अगर किसी गैर स्थानीय पुरुष से शादी करती थी तो वह यहां संपत्ति खरीदने का अधिकार खो देती थी। उनके पतियों को जम्मू कश्मीर का निवासी नहीं माना जाता था और उन्हें विरासत में संपत्ति खरीदने की भी अनुमति नहीं थी । अब केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए केंद्र सरकार की अधिसूचना के साथ महिलाओं के जीवनसाथी को गैर स्थानीय होने पर भी अधिवास का दर्ज मिलता है वह अब संपत्ति खरीद सकते हैं और सरकारी नौकरी को लिए भी आवेदन कर सकते हैं

अमरनाथ यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या में बढ़ोतरी……
साल 2021, 2022 और 2023 में बड़ी तादाद में पर्यटक कश्मीर आए हैं। साथ ही कश्मीर के बागबानी सेक्टर में सब का कारोबार शामिल है। इन दोनों को मिलाकर करीब 20,000 करोड़ रुपये सालाना की आमदनी होती है। वहीं, इसी साल शुरू की गई अमरनाथ यात्रा में भी श्रद्धालुओं की संख्या में बीते सालों के मुकाबले रिकॉर्ड तोड़ इजाफा हुआ है। इस साल अमरनाथ यात्रा में 4 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं।

मोहर्रम जुलूस की आजादी ….
अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से 27 जुलाई 24 को तीन दशकों के प्रतिबंध के बाद पैगम्बर मुहम्मद के पोते हज़रत इमाम हुसैन की जय-जयकार के बीच, सीना ठोककर और हज़रत इमाम हुसैन को याद करते हुए मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को 34 साल बाद मुहर्रम के जुलूस को निकालने की आजादी मिली है।

अनुच्छेद 370 और 35ए की बेड़ियों से आजादी के बाद जम्मू कश्मीर में आए सुखद बदलाव को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है । वहां, अब शिक्षा का स्तर दिन पर दिन बेहतर होता जा रहा है, शिक्षण संस्थानों पर अब ताला नजर नहीं आता, किसी क्षेत्र में शिक्षण संस्थानों को जलाए जाने की वारदात बंद हो चुकी है, स्कूल-कालेजों में छात्रों की उपस्थिति बढ़ चुकी है, अकादमिक सत्र भी नियमित हो चुका है, परीक्षाएं निर्धारित समय पर हो रही हैं, पर्यटन फल फूल रहा है, नागरिक पहले की वनस्पति अपने आप को अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, प्रदेश भर में अच्छी सड़क एवं रेल व्यवस्था में प्रगति के साथ सुधार हो रहा है, 7:10 को तक वंचित रहने के उपरांत पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी (डब्ल्यूपीआर) को भारत की नागरिकता प्रदान कर दी गई है । देश के कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 370 के हटने से आतंकवाद में कमी जरूर आई है लेकिन देश को समझाना पड़ेगा की इतने बड़े काम को इतने कम समय में पूरा नहीं किया जा सकता है क्योंकि इस उग्रवाद की जड़ पाकिस्तान में होने के कारण जब तक पाकिस्तान की सोच नहीं बदलेगी तब तक आप ये उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि आप चरमपंथ को पूर्ण रूप से समाप्त कर सकते हैं । अब समय आ गया है की उग्रवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए भारत में उग्रवादियों के साथ-साथ उनका पालन पोषण करने वाले पाकिस्तान में बैठे सैन्य अधिकारी तथा राजनीतिक व्यक्तियों को चिन्हित करते हुए एलिमिनेट करना पड़ेगा।

कर्नल देव आनंद लोहामरोड
रक्षा विशेषज्ञ