स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में भी जैन समाज के लोगों ने निभाई की महत्वपूर्ण भूमिका=विन्रम सागर=अम्बाह
== जैन बगीची में आचार्य विन्रम सागर महाराज ने शुक्रवार को अपने प्रवचन में बताया कि जैन धर्म को शांति और अहिंसा का संदेश देने के लिए ही ज्यादा पहचाना जाता है। लेकिन आज मैं विश्व के इस महान धर्म के अनुयायियों के एक और उज्जवल एवं गौरवशाली पक्ष को आप सभी के सामने ला रहा हूं। आचार्य श्री ने कहा कि भारत की आजादी एवं राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा में जैन समाज के महान योगदान को इतिहास की प्रचलित पुस्तकों में ज्यादा स्थान नहीं मिला है। लेकिन यह सर्व विदित एवं ऐतिहासिक तथ्य है कि स्वतंत्र भारत के निर्माण में जैन समाज में जितना योगदान दिया है उससे कहीं अधिक महत्त्व भूमिका देश के स्वतंत्रता संग्राम में निभाई थी। 9 मई 1857 से 15 अगस्त 1947 तक देश की आजादी की लड़ाई चली थी जिसमें देश के सभी समाजों के 7 लाख 72 हजार 780 लोगों ने सक्रियता पूर्वक हिस्सा लिया था इसमें एक बड़ी तादात राष्ट्र के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वालों की भी थी। ब्रिटिश पार्लियामेंट एवं लंदन स्थित कामन इंडिया हाउस की लाइब्रेरी में रखी पुस्तक में उल्लेखित है कि स्वतंत्रता संग्राम में सभी धर्मों संप्रदायों के कुल 732785 लोग मारे गए। देश के लिए यह बलिदान देने वालों में 4500 से लेकर 5000 तक की संख्या में जैन महिला पुरुष भी थे।1857 में ग्वालियर के खजांची का कार्य कर रहे जैन समाज के अमरचंद बांठिया ने झांसी की रानी की सेना को 4 माह तक अपने खुद के कोष से वेतन दिया था आचार्य श्री ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने अहिंसा को कायर नहीं बताया था इसी तरह देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के लिए अपना खजाना खोल देने वाले भामाशाह भी भगवान महावीर के अनुयाई थे भामाशाह का बेटा सुंडा भी उदयपुर में मुगलों के खिलाफ महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा था आचार्य श्री ने कहा कि जैन समाज ने अध्यात्म के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है
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