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Dharmendra Singh

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December 23, 2024

सच दिखाने की हिम्मत

ग्वालियर 05 दिसम्बर 2024/ ग्वालियर की समृद्ध संगीत विरासत सदियों पुरानी हैं। “ग्वालियर घराने” ने शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश को एक से एक नायाब नगीने दिए हैं। ग्वालियर घराने का प्रादुर्भाव  राजा मानसिंह तोमर के शासनकाल या संभवत: उससे पहले ही हुआ था। संगीत शिरोमणि तानसेन, बैजू बावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्यों और गायक गणों से सुशोभित राजा मानसिंह का दरबार हो अथवा फिर ग्वालियर के संगीतज्ञों से शोभायमान मुगल सम्राट एवं अन्य राजाओं के दरबार, ग्वालियर की सांगीतिक परंपरा के प्रमाणों से ऐतिहासिक ग्रंथ भरे पड़े हैं।
मुगल काल में ग्वालियर का संगीत के क्षेत्र में कितना अधिक योगदान था इसका जिक्र अबुल फजल ने बड़ी शिद्दत के साथ किया है। उसने आइन-ए-अकबरी में जिन 36 महान संगीतकारों का उल्लेख किया है उनमें तानसेन सहित 16 संगीतकार ग्वालियर के ही थे।
उर्दू इतिहासकार फरिस्ता द्वारा लिखित ग्रंथ “तारीख-ए-फरिस्ता” के शुरूआती अध्याय में ही ग्वालियर की संगीत विरासत के बारे में बड़ा रंजक वर्णन मिलता है। फरिस्ता लिखता है कि ग्वालियर में शास्त्रीय संगीत के प्रादुर्भाव में मालचंद ने बड़ा योगदान दिया। एक किंवदंती यह भी है कि मालचंद दक्षिण भारत से शास्त्रीय संगीत को लेकर ग्वालियर आया था। मालचंद लम्बे अरसे तक ग्वालियर में रहा और ग्वालियर से तलिंगी संगीतकारों के वंशज पूरे उत्तर भारत में फैल गए। फरिस्ता द्वारा लिखे गए इस वाकये से जाहिर होता है कि ग्वालियर की संगीत परंपरा बहुत पुरानी है और कई शताब्दियों से संबंध रखती है।
राजा मानसिंह तोमर के राज्यकाल में चर्मोत्कर्ष पर पहुँची ग्वालियर की संगीत परंपरा
ग्वालियर की संगीत परंपरा राजा मानसिंह तोमर के राज्यकाल में अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुंची। पन्द्रहवीं शताब्दी में राजा मानसिंह के प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र बना। राजा मानसिंह स्वयं भी संगीत के महान पारखी थे। उन्हें संगीत साधना में अपनी प्रेयसी रानी मृगनयनी से भी बहुत सहायता प्राप्त होती थी। जिसकी यादगार के रूप में चार रागों का सृजन भी हुआ। इन रागों को मृगनयनी के नाम के आधार पर गूजरी, बहुल गूजरी, माल गूजरी और मंगल गूजरी कहा गया।
राजा मानसिंह ने “मानकुतूहल” नामक एक संगीत ग्रंथ की रचना भी की। इस ग्रंथ में राजा मानसिंह द्वारा एक विशाल सगीत सम्मेलन कराए जाने का उल्लेख भी मिलता है। इसकी पुष्टि मुगल काल में अबुल फजल द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध पुस्तक आइन-ए-अकबरी से भी होती है। अबुल फजल ने लिखा है कि राजा मानसिंह द्वारा आयोजित किए गए सम्मेलन में राजदरबार के कलाकारों अर्थात नायक, बक्सू, मच्चू और भानु ने ऐसे गीतों का संकलन किया, जो भारतीय संस्कृति की गंगा जमुनी तहजीब के अनुकूल थे।
राजा मानसिंह का राजदरबार बैजू बावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गणों से सुशोभित था। इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। राजदरबार में बिख्शु, घोन्डी और चरजू के नामों का भी उल्लेख मिलता है। एम सी गांगुली द्वारा रचित “रागज एण्ड रागनीज” पुस्तक में जिक्र है कि इन्ही तीनों कलाकारों द्वारा रागों के भण्डार में एक नए प्रकार के मल्हार का प्रणयन किया, जो बिक्शु की मल्हार, धोन्डिया की मल्हार और चाजू की मल्हार के नाम से मशहूर हुई।
तानसेन का जादू भरा स्पर्श पाकर उच्च शिखर पर पहुँची ध्रुपद गायकी
ध्रुपद, धमार, ख्याल, टप्पा, ठुमरी, दादरा, लेदा, गजल, तराना, त्रिपट और चतुरंग आदि संगीत शैलियाँ ग्वालियर घराने की प्रमुख विशेषताएँ हैं। राजा मानसिंह द्वारा पोषित संगीत घराने की विशेषता यह थी कि उसने उत्तर भारत के लोकप्रिय लोक संगीत को अंगीकार किया और उसे उच्च कोटि के वैविध्यपूर्ण संगीत के रूप में सजाया। इससे लोक रागों, शास्त्रीय रागों और संगीत की पारंपरिक विविधता को एक नई और ओजस्वी अभिव्यक्ति मिली। इस घराने ने संगीत की ध्रुपद नामक एक नई शैली की आधारशिला रखी, जो तानसेन का जादू भरा स्पर्श पाकर लोकप्रियता के उच्च शिखर तक पहुंची।
कंठ संगीत में अद्वितीय थे तानसेन
कंठ संगीत में तानसेन अद्वितीय थे। अबुल फजल ने “आइन-ए-अकबरी” में तानसेन के बारे में लिखा है कि “उनके जैसा गायक हिंदुस्तान में पिछले हजार वर्षों में कोई दूसरा नहीं हुआ है” उन्होंने जहाँ “मियां की टोड़ी” जैसे राग का आविष्कार किया वहीं पुराने रागों में परिवर्तन कर कई नई – नई समधुर रागनियों को जन्म दिया। तानसेन द्वारा रचे हुए “संगीत सार” और “राग माला” ग्रंथ भी उनके संगीत सिद्धांत विषयक ज्ञान के परिचायक हैं।
कश्मीर के शासक जैन-उल-आबेदीन के साथ हुआ संगीत ग्रंथों का आदान-प्रदान
तोमर राजवंश द्वारा संगीत की विकास यात्रा में दिए गए योगदान के एतिहासिक प्रमाण ख्वाजा नजीमुद्दीन अहमद द्वारा लिखित “तबाकात-ए-अकबरी” में मिलते हैं। जिसमें उल्लेख है कि तोमर वंशी राजा डूंगर सिंह और कश्मीर के शासक जैन-उल-आबेदीन के बीच संगीत संबंधी ग्रंथो का आदान प्रदान हुआ था।
हद्दू खाँ-हस्सू खाँ व नत्थू खाँ को है ख्याल गायकी के आविष्कार का श्रेय
सिंधिया शासकों के समय भी ग्वालियर में संगीत कला खूब फली फूली। उनके आश्रय में ख्याल शैली के प्रथम शास्त्रीय घराने का भी जन्म हुआ। ग्वालियर शैली जिसे लश्करी गायकी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना का श्रेय हद्दू खाँ, हस्सू खाँ और नत्थू खाँ को जाता है। इन्ही तीनों भाईयों को द्रुत गति वाली ख्याल गायकी की शैली के आविष्कार का श्रेय है। इस शैली में “कलावंत” और “कब्बाली” का मिश्रण देखने को मिलता है। हद्दू खाँ और हस्सू खाँ के वंशजों और शिष्यों में रहमत खाँ और हुसैन खाँ ने भी संगीत के क्षेत्र में काफी ख्याति प्राप्त की।
ग्वालियर घराने ने दिए एक से बढ़कर एक मूर्धन्य गायक
ख्याल गायकी की संगीत परंपरा में शंकर पंडित जी ने आधुनिक काल में लोकप्रियता का परचम लहराया। उनके सुपुत्र श्री कृष्ण राव पंडित भी उच्च कोटि के संगीत कलाकार थे। कृष्णराव पंडित के सुपुत्र लक्ष्मण कृष्णराव पंडित व लक्ष्मण कृष्णराव पंडित की सुपुत्री मीता पंडित वर्तमान में ग्वालियर घराने का परचन लहरा रही हैं। ग्वालियर घराने में राजा भैया पूछवाले, बाला साहब पूछवाले, डॉ. प्रभाकर गोहदकर, पं. मार्तण्ड जोशी व उमेश कम्पू वाले भी बड़े नाम हैं। इनके अलावा बालाभाऊ उमड़ेकर (कुण्डल गुरू) व उनके सुपुत्र श्रीराम उमड़ेकर एवं पौत्रियाँ सुश्री गीता उमड़ेकर व राधिका भी ग्वालियर की संगीत परंपरा को ऊँचाईयां प्रदान करने में शुमार हैं।
पं. सीताराम शरण महाराज के नाम का उल्लेख किए बिना ग्वालियर की संगीत परंपरा अधूरी सी लगती है। उन्होंने रागायन संस्था का सृजन किया, जो वर्तमान में भी संगीत प्रतिभाओं को उभारने के लिये मंच उपलब्ध करा रही है। सुर सम्राट तानसेन द्वारा परिष्कृत ध्रुपद गायकी को ध्रुपद गुरू श्री अभिजीत सुखदाणे ध्रुपद केन्द्र के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं।
उस्ताद अमजद अली खाँ के सरोद वादन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली है ख्याति
ग्वालियर के महान संगीतज्ञ उस्ताद हाफिज अली खाँ को सरोद की उत्पत्ति व विकास का श्रेय है। उनके सुपुत्र उस्ताद अमजद अली खाँ ने अपने सरोद वादन से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्वालियर का नाम रोशन किया है। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ के सुपुत्र अमान अली खाँ व अयान अली खाँ बंगस वर्तमान में इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
विश्वविद्यालय के साथ 8 महाविद्यालय तैयार कर रहे हैं नए संगीतज्ञ
संगीत की नगरी ग्वालियर में वर्तमान में राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में संगीतज्ञों की नई पीढ़ी तैयार हो रही है। साथ ही शहर में लगभग 8 संगीत महाविद्यालय भी शास्त्रीय संगीतज्ञ तैयार करने में जुटे हैं।