सरदारपुर। सरदारपुर तहसील का छोटा सा आदिवासी बाहुल्य ग्राम बरमखेडी एक दशक पहले किसी परिचय का मोहताज था। तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबुलाल गौर के कार्यकाल मे जब भाजपा सरकार ने गोकुल ग्राम मे इसका चयन किया तो यह ग्राम तहसील क्षैत्र मे अलग पहचान बना सका। मुख्यमंत्री बाबुलाल गौर के जाते ही गोकुल ग्राम योजना भी ठंडे बस्ते मे समा गई और गांव की पहचान भी कम हो गई।
लेकिन वर्ष 2013 मे जब इस गांव मे समाज के एक ऐसे तबके का यह प्रवेश हुआ जब यह गांव कुछ समय मे ही जिले तो क्या प्रदेश और देश मे पहचाने जाने लगा। बरमखेडी मे कई वर्षो से विरान पडे छात्रावास भवन को तत्कालीन कलेक्टर ने मूकबधिर बौद्धिक दिव्यांग जन के लिये मुकबधिरो के लिये कार्य करने वाली आनंद सर्विस सोसायटी को सौपा। लेकिन कोरोना काल के बाद उपजी व्यवस्था ने इन मासुमो के भविष्य के रास्ते केे दरवाजे तो बंद ही कर दिये वही तमाम कोशिशो के बावजुद भी संस्था के संचालन के लिये जवाबदारो के ना कहने पर गुरूवार को संस्था के द्वारा नम आंखो के साथ भवन को खाली कर हमेशा के लिये इसे अलविदा कह दिया। अब न तो इस भवन मे अब कभी मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चों
की न तो तालीयो की आवाज गुंजेगी और ना ही कभी उनके मुस्कुराते चेहरे अब यहा नजर आयेगे।
13 सिंतबंर 2013 को जब तत्कालीन कलेक्टर ने बरमखेडी मे कई वर्षो से खाली पडे इस छात्रावास भवन को मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चो के आश्रम के संचालन के लिये सौपा तो विरान भवन आबाद हो गया। क्षैत्र मे कई समाजसेवी और जागरूक नागरिको ने इस संस्था के साथ जुडकर मुकबधिरो के लिये सेंवा कार्य किया। शायद इसके पहले जिले मे संचालित होने पर इन मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चो को इतना खुला वातावरण नही मिला जो बरमखेडी मे मिला। जिले के करीब 80 बालक-बालिकाये यहा पर अध्यनरत रहे। लेकिन कोरोना के बाद से छात्रावास के संचालन के बाद इस वर्ष सामान्य बच्चो के लिये छात्रावास आरंभ हो चुके है लेकिन मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चो की पढाई के लिये छात्रावास के संचालन की अनुमति नही मिलने पर मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चो के पालको ने बच्चों की पढाई के लिये कलेक्टर तक से गुहार लगा दी I यही नही संचालक ने यह तक कह दिया की यदि शासन पैसा नही दे तो भी हम अपनी और से सहयोग कर इन बच्चो की पढाई जारी रख सकते है बस केवल छात्रावास संचालन की अनुमति दी जाये। अनुमति मिलना तो दुर बल्कि छात्रावास भवन खाली करने का आदेश थमा दिया गया।
गुरूवार को जब अचानक छात्रावास भवन को खाली करते देखने पर संचालक ज्ञानेन्द्र पुरोहित से मोबाईल पर चर्चा की तो बताया की क्या करे आदेश मिला है। हमने हमारी और से सारी कोशिशे करी लेकिन कुछ नही मिला कलेक्टर से लेकर मंत्री तक गुहार लगाई लेकिन मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चों के लिये कोई भी आगे नही आ पाया। शायद इन बच्चो के भाग्य मे पढाई करना ही नही लिखा हो।
धार जिले मे करीब 80 से अधिक मुकबधिर बच्चे इस छात्रावास भवन मे रहकर पढाई करते थे। अब वै केवल अपने घरो मे ही रहेगे। क्योकी इन्हे पढाने के लिये न तो कोई प्रशिक्षीत शिक्षक इनके गांवो मे और ना ही विद्यालय मे है जो सांकेतिक भाषा मे इनकी पढाई जारी रख सके।
एक और तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चैहान शिक्षा को लेकर बढे बढे दावे करते है लेकिन दुसरी और मुकबधिरो के आश्रम को बंद कर इन बच्चो की पढाई पर अंकुश लगाना क्या दर्शाता है। ऐसा नही की पहली बार इस आश्रम को बंद करने का आदेश मिला हो इससे पहले भी कई बार इस तरह के प्रयास हो चुके है लेकिन तब जागरूक जनप्रतिनिधीयो और मुकबधिरो के हितैषी अफसरो ने ऐसा नही होने दिया।
वैसे पुरे भारत वर्ष मे शायद धार जिला ही ऐसा होगा जब कोरोना काल के बाद अब शायद मुकबधिरो के आश्रम का संचालन नही होगा। पुरे भारत मे हर जिले वर्तमान मे मुकबधिर बौद्धिक दिव्यांग बच्चों की पढाई के लिये आश्रम का संचालन आरंभ है। बस न है तो केवल धार जिले मे
राहुल राठोड़ की रिपोर्ट
More Stories
खनिज के अवैध परिवहन पर नियंत्रण हेतु जिला प्रशासन द्वारा की जा रही नियमित कार्यवाही
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवसः उद्योग मंत्री श्री देवांगन कोरबा के योग कार्यक्रम में होंगे शामिल
वन सीमा सुरक्षा सप्ताह -2025 में वन परिक्षेत्र सरदारपुर अमले द्वारा 02 ट्रैक्टर जप्त किए गए