नरेन्द्र राय ब्यूरो चीफ रायसेन
बोझ तले दब रहा बचपन पेट की खातिर सुबह से काम करने निकल जाते है नौनिहाल ग्राम पंचायतों में भी कर रहे बाल मजदूर काम।
रायसेन:- सिलवानी। जिन नन्हे हाथों में कापी. कितावे होना चाहिए वह हाथ कहीं कचरा बीन रहे है या होटल तथा ग्राम पंचायतों में मजदूरी का बोझ उठाने को मजबूर है। कई नौनिहाल तो दो वक्त की रोटी की खातिर जोखिम भरे काम करने से भी नहीं चूक रहे है।
पेट की आग बुझाने के लिए सुबह से ही बच्चे अपने घर से काम के लिए निकल जाते है। गरीबी के साथ .साथ महंगाई की मार झेल रहे गरीब परिवारों के बच्चे पेट भरने के लिए सिर पर बोझ ढोने को मजबूर है। कॉपी किताबों के स्थान पर हाथ में कुल्हाडी जूठे बर्तन तथा हाथ में फावड़ा लेकर सुबह से निकल पडते हैं प्रशासन की लापरवाही के कारण सिलवानी क्षेत्र में नाबालिगों से धड़ल्ले से मजदूरी कराई जा रही है। लेकिन प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं करता। सिलवानी जनपद पंचायत के अंतर्गत कई ग्राम पंचायतों में गौशाला का निर्माण कार्य कराया जा रहा है निर्माण कार्य मैं नाबालिगों से मजदूरी कराई जा रही है। लेकिन पेट की खातिर यह वजन को ढोना उनकी मजबूरी बन गया है। वहीं मजदूरी नहीं करेंगे तो उनका घर का चूल्हा नहीं जल पाएगा। कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके बच्चों के साथ .साथ बूढे भी जंगल में लकडियां बीन कर अपना घर चला रहे है। सरकार भले ही बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा कानून बनाकर बच्चों को शिक्षित करने की बात कहती है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आज भी बच्चे पिछडे हुए है,उन्हें न तो अच्छा खाना मिल पा रहा है न ही भरण. पोषण हो रहा है। ऐसे में बेचारे पहले पेट को देखें या क्तिर किताब को। सरकार को चाहिए कि अनिवार्य शिक्षा के साथ इन्हें व इनके परिवारों को रोजगार की व्यवस्था करें। निश्चित रोजगार नहीं मिलने से हजारों की आबादी अब सिर्क्त जंगल से चोरी छिपे लकडियों का गट़ठा सिर पर रखकर व साईकिल से शहर में बेचने के काम पर निर्भर है। भारी मशक्कत के बाद लकडी को शहर में बेचा जाता हैए सिलवानी तहसील के आसपास के अधिकांश गांवो में कई परिवार व सिलवानी के भी कई परिवार लकडी बेचकर अपना पेट पाल रहे है। कई नाबालिगों से होटल तथा किराना दुकान निर्माण कार्य में भी खुलेआम मजदूरी कराई जाती है और स्थानीय प्रशासन को सब जानकारी होने के बाद भी आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। कलम की जगह कर रहे मजदूरी केंद्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही है जिन हाथों में कलम होना चाहिए उन हाथों उन हाथों से पंचायत जैथारी मजदूरी कराई जा रही है। वही जिस उम्र में बच्चों के कंधों पर स्कूल बैग होना चाहिए उस उम्र में अनेकों कंधों पर काम का बोझ डाला जा रहा है। श्रम विभाग की उदासीनता का यह आलम है कि नगर तथा ग्रामीण अंचल व ग्राम पंचायतों में बाल श्रम जोरों पर है लेकिन विभाग में पदस्थ अधिकारियों को इससे कोई मतलब नहीं है। श्रम विभाग और स्थानीय प्रशासन बाल मजदूरों को देखकर अनदेखा कर देते हैं। उक्त मामले को श्रम निरीक्षक के संज्ञान में लाया गया है। बाल श्रम प्रतिषेध अधिनियम,1986 के तहत 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों से उपबंधित अनुसार कार्य लेना कानूनन अपराध है। मामले की जांच संबंधित विभाग द्वारा की जाएगी इस हेतु श्रम विभाग एवं पुलिस विभाग दोनों से चर्चा हुई है,नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
संघमित्रा बौद्ध,एसडीएम सिलवानी।
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